सम्लेंगिकिता और नीरज
इन दिनों सम्लेंगिकिता पर चल रही बहस से याद आया की १९६७ के दौरान हिंदी के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि नीरजजी का गीत फिल्म नयी उम्र की नई फसल में आया था जिस के बोल थे - बस यही अपराध में हर बार करता हूँ . आदमी हूँ आदमी से प्यार करता हूँ . - तब हम लोग कालेज में पढ़ते थे और आपस में मजाक किया करते थे कि यह तो सम्लेंगिकिता के समर्थन का गीत है
मेरी जानकारी के अनुसार यह "पहचान" (1970) फ़िल्म का गीत है, मनोजकुमार पर फ़िल्माया हुआ… गाया है मुकेश ने…
जवाब देंहटाएंनई उमर की नई फ़सल का गीत है "स्वप्न झरे फ़ूल से, मीत चुभे शूल से………… और हम खड़े-खड़े गुबार देखते रहे…"
जवाब देंहटाएंआपके संशोधन के लिए धन्यवाद् अब इतने साल बाद कहाँ याद रहता है कि फिल्म का नाम क्या था और वह मूल विषय भी नहीं है
जवाब देंहटाएंthik hai
जवाब देंहटाएंफि्ल्म का नाम और सन तो ठीक कर ही दिजिये पोस्ट में. :)
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