शुक्रवार, अगस्त 07, 2009

देश काल और गोत्र विवाह

व्यंग्य
काल और गोत्र विवाह

वीरेन्द्र जैन
पता नहीं राखी सावंत के स्वयंवरियों को पता है कि नहीं है कि इस देश में एक धर्म होता है एक जाति होती है फिर उपजाति होती है और फिर गोत्र होता है तथा विवाह के लिए लड़का लड़की का गोत्र अलग अलग होना चाहिये। यदि उस़के वर का मैच नहीं होगा तो फिर हमारे जगतगुरू धर्मप्राण देश में उसका वही हाल हो सकने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है जो हरियाना के जींद में वेदपाल का हुआ है। पुलिस वुलिस कोर्ट फोर्ट क्या होता है और संविधान की तो क्या कहें! शाहबानो के पक्ष में आये फैसले के खिलाफ कानून बदल देने वाले देश में अयोध्या जैसा हाल हो गया है जहाँ आस्था का सवाल कानून के सवाल के आगे नहीं टिकता।
भले ही बाल्मीकि और तुलसीदास ने उसका जिक्र नहीं किया पर हमारे मुहल्ले के एक बाबा के सपने में अवतार ने स्वयं आकर बताया था कि रामकथा में जब सीता स्वयंवर होने को था तब बाहर एक बाबू बैठा था और दूर दूर से आये हुये राजा महाराजाओं का रजिस्ट्रेशन कर रहा था-
''महाराज कहाँ से पधारे हैं?''
देश का नाम बताते ही बाबू एक प्रपत्र(फार्म) आगे रख देता होगा कि महाराज इसे भर दीजिए, और अपने गोत्र का नाम लिखना न भूलिएगा वरना फार्म रिजैक्ट हो जायेगा। आप अपने हो इसलिए बता दिया। वैसे इस स्वयंवर का कोई शुल्क वुल्क नहीं है, पर आपकी श्रद्धा है आप जो कुछ इस सेवक को देंगे उसी के अनुसार हमारी शुभकामनाएं रहेंगी। देखिये देवभूमि के महाराज आये थे वे तो पाँच स्वर्णमुद्राएं दे गये। फिर चाहे प्रपत्र में लाख कमियाँ हों, पर मैं क्या अपने हाथों से उनका प्रपत्र अस्वीकार होने दूँगा? स्वयंवर अपनी जगह है पर गोत्र का कटना जरूरी है, भले ही आप धनुष तोड़ लें, उससे कुछ नहीं होता, गोत्र का मिलान जरूरी है। अर्जुन ने मछली पर निशाना साध लिया था तो वे 'अर्जुन पुरस्कार' के हकदार तो हो सकते थे पर द्रोपदी से विवाह पूर्व गोत्र का मिलान अवश्य ही किया गया होगा। कहते हैं कि श्रीकृष्ण की सोलह हजार पटरानियां थीं पर उनमें से किसी का भी गोत्र वही नहीं होगा जो कृष्ण का था। कुंज गलियों में रास रचाने से पहले उनकी टोली के सखा आगे आगे पूछते चलते होंगे -'' सखी, आपका गोत्र क्या है?''
''क्यों क्या बात है'' बृजबाला पूछती होगी
'' अरे कुछ नहीं वो जरा कृष्ण कन्हैया आने वाले थे सो सोचा कि जो सगोत्रीय हैं उन्हें रास्ते से हटाते चलें, ताकि वे न छिड़ें।''
बहुत संभव है कि पुराने जमाने में राजा लोग दूसरे राज्यों पर इसीलिए आक्रमण करते हों क्योंकि अपने राज्य में तो किसी भी के वैध या अवैध किसी भी तरीके से गोत्र मिलने की संभावना हो सकती होगी, हो सकता है कि धन के साथ साथ औरतों को लूटने की परंपरा भी इसीलिए पड़ी हो ताकि गोत्र का टकराव बच सके।
अतीत को छोड़िये आइये भविष्य की ओर देखें। वेद पाल की हत्या पर जिस तरह सरकार चुप है, पुलिस चुप है, प्रशासन चुप है उससे ये संभावना पक्की होने लगी है कि अब किसी भी तरह के प्रसंग में गोत्र का मिलान पहली प्राथमिकता होगा । आइए देखें कि हमारी हिंदी फिल्मों पर इसका क्या असर पड़ेगा।
कुछ गाने अब ऐसे बनेंगे-
महका महका रूप तुम्हारा, बहकी बहकी चाल
ऐ फूलों की डाल ये राही पूछे एक सवाल
तुम्हारा गोत्र क्या है
या
शायद गोत्र मिलाने का ख्याल
दिल में आया है
इसीलिए मम्मी ने मेरी तुम्हें चाय पै बुलाया है
या
आजकल तेरे मेरे गोत्र के चर्चे हर जुबान पर
सबको मालुम है और सबको खबर हो गई
या
मेरा नादान बालमा ना जाने मेरा गोत्र
ना जाने मेरा गोत्र हो ना माने मेरा गोत्र
मेरा नादान बालमा ना जाने मेरा गोत्र
फिल्मों में हीरो हीरोइन से कहेगा- डियर
''हाँ''
''मैं बहुत दिनों से तुम से एक बात पूछना चाह रहा था''
हीरोइन शरमा कर कहेगी '' और मैं भी तुमसे कुछ पूछना चाहती थी''
''तो पूछो ना''
'' नहीं पहले तुम पूछो''
'' नहीं पहले तुम पूछो''
इसी तरह बहुत दूर तक पहले तुम पहले तुम कह कर आखिर इक्कीसवीं शताब्दी की लड़की पहले पूछ लेती है- ''तुम्हारा गोत्र क्या है डियर?''
'' अरे यही सवाल तो मैं तुमसे पूछना चाहता था?''
फिल्मों में नायक नायिका से लेकर खलनायकों तक पूरे चरित्र बदले जाने की सिचुएशन बनती जा रही है।
मंत्रीमंडल में सम्मिलित होने से लेकर पुलिस, प्रशासन के सारे वरिष्ठ पद एक नये विकलांग कोटे में हिजड़ों के लिए आरक्षित हो सकते हैं व उनके ड्रैस कोड में चूड़ी पहिनना अनिवार्य बनाया जा सकता है। सांसदों को टिकिट देने से पहले उनकी जरूरत पर टीवी चैनलों के स्टूडियो से भाग सकने की क्षमता देखी जायेगी।
अगर किसी ने काल के प्रवाह में देश को बिना समझे अपना नाम गैलीलिओ रख लिया होगा तो उसकी आंखें फोड़े जाने की संभावनाएं बलवती हो गयी हैं।
वीरेन्द्र जैन
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