मंगलवार, सितंबर 29, 2009

भ्रष्टाचार को जड़ से ख़त्म करने का दर्शन

व्यंग्य
भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने का र्दशन
वीरेन्द्र जैन
हमारे कानून मंत्री ने कहा है कि भ्रष्टाचार का जड़ से खात्मा जरूरी है। वे भ्रष्टाचार से जुड़े अपराधों पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार में बोल रहे थे। मैंने बहुत खोज की पर कोई भी ऐसा नहीं मिला जो उनसे असहमत हो। उनके धुर विरोधियों ने भी उनके बयान के बाद यह नहीं कहा कि भ्रष्टाचार को पत्तियों से, या फलों से या तने से खत्म करके अपना काम चलाना चाहिये। भ्रष्ट से भ्रष्ट व्यक्ति ने भी यही कहा कि अगर जड़ से खत्म हो तो हम सबसे आगे हैं। करो न भाई जड़ से खत्म करो और अगर जनता को बता दो कि भ्रष्टाचार की जड़ कहाँ पर है तो वो भी थोड़ा बहुत मट्ठा उसमें डालने की कोशिश करेगी। राष्ट्रीय सुरक्षा कोष की तरह पूरे देश में से मट्ठा एकत्रित कर भ्रष्टाचार की जड़ों में डलवाया जा सकता है। राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री टीवी पर राष्ट्र के नाम संदेश दे सकते हैं ।
प्यारे देश वासियो, मैलाओ(महिलाओ), और बच्चो,
आज बहुत खुशी की गल्ल(बात) है कि हमारे देश में भ्रष्टाचार को जड़ से खत्म करने का विचार बना है। इस महायज्ञ में हम सबको आहुति देनी है इसलिए आप सब अपने अपने घर से यथा सम्भव मट्ठा लेकर प्रधानमंत्री कोष में जमा करवायें ताकि हम भ्रष्टाचार की जड़ों में डाल कर उसको जड़ से खत्म कर सकें। ध्यान रखें कि मट्ठा शुद्ध दूध से जमाये दही से निकाला गया हो।
प्रधानमंत्री आमने सामने होते तो जनता पूछती कि मट्ठा तो हम दे दें पर आप हमें भ्रष्टाचार की जड़ तो बता दो हम खुद ही डाल देंगे। दरअसल जनता को सरकार पर भरोसा नहीं है कि वह उसका दिया मट्ठा भ्रष्टाचार की जड़ों में डालेगी या धर ले जाकर कड़ी बनायेगी।
बस यही वह बिन्दु है जहाँ से दार्शनिक चिंतन प्रारंभ होता है, जिसका मतलब होता है कि बस चिंतन चिंतन करते रहो और किसी निष्कर्ष पर न खुद पँहुचो और ना ही किसी को पहँचने दो। दार्ाशनिक कहते हैं कि इस दुनिया में दो तरह के पदार्थ होते हैं एक जड़ तो दूसरा चेतन किंतु भ्रष्टाचार के मामले में देखा गया है कि जितना भी भ्रष्टाचार होता है वह सब चेतन ही करते हैं जड़ नहीं करते। जड़ तो केवल भ्रष्टाचार का माध्यम बनता है। मुद्राएं चाहे धातु की हों या कागज की हों वे ही भ्रष्टाचार का माध्यम बनती हैं। किंतु हमारी संस्कृति में उन्हें भी लक्ष्मी कहा गया है और चंचला कह कर उनकी दिशाहीन गति की ओर फिसलती रहने वाली माना गया है। फिर जड़ क्या है? यह शाश्वत चिंतन का विषय है।
पर कानून मंत्री को र्दशन से कोई मतलब नहीं है वे तो कानूनी भाषा में जड़ जिसे मूल कहा जाता है, वहाँ से सम्बंध जोड़ रहे थे। बीज जब अंकुरित होता है तो उसकी दो दिशाएं होती हैं एक तरफ उसका विकास नीचे की तरफ होता है तो दूसरी तरफ ऊपर की तरफ जिसे तना कहा जाता है जिसमें बाद में पत्तियां फूल व फल लगते हैं। फूल व फल तोड़ लिए जाते हैं पत्तियां झड़ जाती हैं और तना ठूंठ सा अपनी शाखाएं चारों ओर लगाये खड़ा रहता है पर ऐसे में भी जड़ें अपना काम निरंतर करती रहती हैं। वे नीचे की तरफ चुपचाप गति करती रहती हैं और अपना जाल फैलाते रहने के साथ तने को ताकत पहुँचाती रहती हैं। उनका आशय ऐसी ही जड़ों से रहा होगा। वे वहीं पर मट्ठा डालकर खत्म कर देना चाहते हैं- न होगा बांस न बजेगी बांसुरी।
पर सवाल यह है कि जड़ कहाँ है? किससे पूछूँ? सुखराम से पूछ कर उनके सुख में दखल देना नहीं चाहता तो क्या अमरेन्दर सिंह से पूछूँ या प्रकाश सिंह बादल के उत्तराधिकारी सुखवीर से पूछूँ? लालू प्रसाद से पूछूँ या शिबू सोरेन से पूछूं? जार्ज से पूछूं या जया जेटली से पूछूँ? शरद पवार से पूछना क्या ठीक रहेगा? डालर पसंद करने वाले बंगारू लक्ष्मण से पूछूं या पैसे को खुदा मानने वाले जूदेवों से पूछूं? अमरसिंह बीमार हैं और सचमुच में हैं ऐसे में ऐसे सवाल पूछना ठीक नहीं है? संसद में सवाल पूछने वालों से पूछूँ या सांसद निधि स्वीकृत करने वालों से पूछूं। कबूतरबाजी करने वालों से पूछूं या अविश्वास प्रस्ताव पर बीमार हो जाने वालों से पूछूं? तेलगी से पूछूं या राजू से पूछूं? शंकराचार्यों से पूछूँ या काले पैसे को सफेद करने वाले जादूगर बाबाओं से पूछूं? शेयर घोटाला करने वालों से पूछूं या नकली नोट बनाने वालों से? जब जिन्दा लोगों से नहीं पूछ पा रहे हैं तो मर जाने वालों से वैसे भी कुछ नहीं पूछा जाता बरना प्रमोद महाजन से पूछा जा सकता था। अजहरूद्दीन ने अब क्रिकेट खेलना छोड़ दिया है और अब उस क्षेत्र के बारे में बात भी नहीं करना चाहते बरना उनसे पूछता! फिर फिल्म वाले तो किसी को कुछ नहीं बताते कहते हैं कि हमारे क्षेत्र में तो सब कुछ गॉसिप पर चलता है। अफसरों से पूछूं या ठेकेदारों से पूछूं? सप्लायरों से पूछूँ या डुप्लीकेटरों से पूछूं? मध्यप्रदेश के मंत्रियों, भूतपूर्व मंत्रियों से पूछूँ या जन्मदिन मनाने वाली मायावती से पूछूं? जमाखोरों से पूछूं या मुनाफाखोरों से पूछूं? कहाँ जाऊँ किससे पूछूँ?
हे जड़ो! तुम कहाँ हो? हम लोग मट्ठा लिये खड़े हैं, कोई तो बतलाये कि कहाँ डालें? भारत के गड़े खजानों में डालें या स्विस बैंक में डालें? कोई भी कुछ नहीं बता रहा। और ठीक इसी अवस्था को र्दशन और इसे अपनाने वाले को दार्शनिक कहा जाने लगता है। जिसे कोई उत्तर नहीं मिलता कहीं से वह दार्शनिक होने लगता है। यदि जनता को इसी तरह मट्ठा लिये हुये बहुत देर हो गयी तो हो सकता है कि वह इस उम्मीद में बयान देने वालों के मुँह में ही मट्ठा डालने लगे कि शायद जड़ों तक पहुँच जाये।

रविवार, सितंबर 27, 2009

व्यंग्य रिटायर्ड और रफूगर

व्यंग्य
रिटायर्ड और रफूगर
वीरेन्द्र जैन

रफू करने वाला रिटायर लोगों को पहचानाता है।
वे उसके नियमित ग्राहक होते हैं। कभी पैंट ठीक कराने आते हैं तो कभी स्वेटर।
पुराने पुराने जमानों के पैंट देखने हों तो रिटायर्ड आदमियों को उनके घर पर मिलने चले जाइये। एकदम संकरी मोहरी की रंग उड़ी पैंट पहिने मिल जायेंगे। इसी पेंट में ये 'सूखे बेर' कभी खूब फबते थे। ये पेंट पहिन कर ही इन्होनें सक्सेना मैडम पर अपने प्रेम का इजहार किया था जिसकी शिकायत उसने दफ्तर के बड़े साहब से कर दी थी। सक्सेना मैडम के इस साहस से बड़ा साहब डर गया था क्योंकि वह खुद अगले ही दिन अपने प्रेम का इजहार करने वाला था।
फिनायल की गोलियों को वर्षो झेलने के बाद और सर्दियों में वार्षिक रूप से धूप देखने के बाद अब अपनी अंतिम यात्रा पर निकल ही आयी ऐसी पैंटें रिटायर्ड की सूखी टांगों पर और पुन: चिपक जाती हैं। पूरे प्रयास से अपनी रीढ़ सीधी किये ये अपने कंधों के हैंगर पर लटकाये रहते हैं उस कुर्ते पाजामें के सैट का वह कुर्ता, जिसका पाजमा घुटनों से फट चुकने के बाद अब पोंछा लगाने के काम आ रहा होता है।

रफू वाला जानता है कि इस बूढे क़े पास से कुछ मिलने वाला नहीं है, क्योकि उत्तराधिकार कानून के अन्तर्गत रफू वाला नहीं आता। यहॉ तक कि आशीर्वाद भी कुछ नियमों और धाराओं के अन्तर्गत असली वारिसों के लिए सुरक्षित होते हैं। हॉ जीवन अनुभव जरूर रफू वाले को मुफ्त मिल जाते हैं क्योकि इन अनुभवों को झेलने की फुरसत किसी भी असली वारिस के पास नहीं होती। रफू पर अपनी आंख गढ़ाये, वह कानों से सुनता रहता है। घर के, दफ्तर के, शहर दर शहर हुए ट्रांसफरों के, और न जाने कहॉ कहॉ के - पर सब अतीत के। वर्तमान के बारे में चुप लगा जाना चाहता हैं रिटायर्ड आदमी। क्यों करे अपने बेटों बहुओं की बुराई इस बाहरी रफूगर के सामने।

वर्तमान के बारे में बोलना होगा तो अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों पर बोलेगा। गाजा पट्टी पर दौड़ लगायेगा। क्यूबा पहुँच जायेगा। ज्यादा नजदीक आने का मन हुआ तो चीन अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बारे में बोलने लगेगा। अगर आपने किसी तरह उसे देश पर ही उतार दिया तो केन्द्र सरकार पर बोलेगा। पक्षधरता से बचेगा तथा यहॉ वहां निगाह डालने के बाद कहेगा कि सब चोर हैं। ऐसा कह कर वह असली चोर को चोर कहने से बच जाता है। यह बेहद आर्दश और प्रचलित वाक्य हो गया है। इसको बोलने से कोई खतरा नहीं रहता और गाली दिये जाने का साहस भी प्रगट हो जाता है, भले ही इस कूटनीति के कारण गिने चुने वे लोग भी पिस जाते हों जो कि जिन्दगी भर से ईमानदारी का चिरायता पी रहें हो और इसी कारण गिने चुने हों। राज्यों पर बोलना पड़ा तो वो जम्मू कश्मीर, असम, नागालैण्ड, त्रिपुरा आदि पर बोलेगा विदेशी आतंकवादियों को दोषी बतायेगा। अपने राज्य पर उतरेगा तो स्वर को धीमा कर लेगा- फुसफुसाने जैसा- इस सरकार के बारे में कुछ कहेगा तो लगे हाथ पिछली सरकार के भी दोष बताता जायेगा। परिस्थितियों को भी गिनाता रहेगा- भष्टाचार तो है, पर क्या करें बरसात भी नहीं हुयी, सोयाबीन का तो बीज ही सूख गया या बाढ़ आ गयी, भूकंप आ गया, बगैरह बगैरह।

रफू करने वाले को रोज ही ऐसे लोगों से वास्ता पड़ता है पतली सुई से पतले पतले धागों के सहारे उन छेदों को भरता रहता है, जो हो चुके हैं पर उसकी कलाकारी से वे हो चुके दिखायी न दें। वह एक ओर से सुई डालकर दूसरी ओर निकालता है और दूसरी ओर से डालकर पहली तरफ निकाल देता है उसी तरह वह रिटायर्ड लोगों की बातें एक कान से सुनकर दूसरी तरफ से निकाल देता है। रिटायर्ड लोग शिफ्टों में आते रहते हैं उसके पास। चाय वाय नहीं पीते कहते हैं बिना शक्कर की पीते है पर चाय वाले छोकरे के पास बिना शक्कर की चाय नहीं होती।

छेद भर कर लम्बी सांस छोड़ता है रफूवाला और ध्यान के केन्द्रीकरण को ऐसे विकेन्द्रित कर देता है जैसे बरसात आने पर बंधा हुआ छाता खोल लिया जाता है। छेद में सिमिट गयी दुनिया फिर फैल जाती है। अर्जुन को पूरी चिड़िया, पेड़ और पर्यावरण भी नजर आने लगता है। इसी के साथ रिटायर्ड आदमी सिमिट जाता है बड़ी मुश्किल से अपनी टांगों पर चिपके पेंट से दो और दो और एक मिला कर पाँच रूपये देता है और किसी अपराध बोध से उसकी प्रतिक्रिया जाने बिना अपना पैंट लेकर चला जाता है।
एकाध महीने बाद फिर किसी पुराने पैंट या स्वेटर को लेकर आयेगा।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629

शुक्रवार, सितंबर 25, 2009

व्यंग्य चाँद पर पानी की खोज

व्यंग्य
चाँद पर पानी की खोज
वीरेन्द्र जैन
बधाई हो
बधाई हो
बधाई हो
बधाई हो
''काहे की बधाई दे रहे हो रामभरोसे?'' मैंने सुबह सुबह राम भरोसे को बधाइयां देते लेते देख कर पूछा। उसके हाथ में कई अखबार थे।
''तुम्हें दुनिया की कुछ खबर तो रहती नहीं, क्या आज का अखबार नहीं देखा जिसमें हमारे वैज्ञानिकों ने सबसे पहले चाँद पर पानी खोज लिया है।''
'' क्या तुम्हारे जैसे किसी पंडित को चाँद पर ले गये थे जिसने पूजा पाठ कर के पानी खोज लिया?'' मैंने कहा
''तुम तो हाथ धोकर दिन रात पंडितों के पीछे पड़े रहते हो, बेचारे किसी तरह रो धोकर अपना डूबता धन्धा सम्हाले हुये हैं सो तुम्हें वो भी नहीं सुहाता। अरे भाई पंडितों ने नहीं वैज्ञानिकों ने खोज निकाला है। हमारे वैज्ञानिकों ने और तुम खुश हो जाओ कि उन सैकड़ों वैज्ञानिकों में भी दो प्रतिशत भी ब्राम्हण नहीं थे। अपुन ने वो जो चन्द्रयान-1 भेजा था उसी के मिनरलौजी मैपर ने संकेत भेजे हैं।'' वह बोला
'' पर उस चन्द्रयान ने तो काम करना बन्द कर दिया था।''
''हाँ कर दिया था पर ये सूचनाएं पहले भेज दी गयी थीं जिनका विश्लेषण अब हुआ है।''
'' पर हमारे वैज्ञानिक धरती पर पानी क्यों नहीं ढूंढ पाते! अब क्या हम चाँद से टैंकर बुलवायेंगे?'' अन्दर से मेरी पत्नी ने कहा
'' तुम भी भाभी इनके साथ रह कर इन जैसा ही सोचने लगी हो, इस उपलब्धि पर मिठाई खिलाने की जगह इनकी ही तरह नकारात्मक बातें कर रही हो। देखती नहीं कि हमारे प्रधानमंत्री ने अपनी इस उपलब्धि पर किस तरह देश को बधाइयाँ दी थीं और उसे चुनाव के दौरान भी बताया था।'' उसने शिकायत भरे स्वर में मेरी पत्नी से कहा।
'' हाँ और चुनाव के बाद ही वह चन्द्रयान हजारों करोड़ रूपयों समेत डूब गया। क्या पता कोई संथानम कल के दिन ये रहस्य भी बता दे या कोई जसवंत सिंह सारे कच्चे चिट्ठे खोल दे कि वह तो चुनावों के पहले ही फेल हो गया था।'' मैंने उसे छेड़ा।
''तुम हमेशा ही गलत दिशा में सोचते हो'' वह सचमुच भिनक गया।
'' हम तो इतना जानते हैं कि हमारी सरकार स्विस बैंक के खाते दारों को नहीं खोज पाती और जो स्विजरलैंड इसी धरती पर है उसके खातों का पता नहीं लगा पाती, भाजपा कार्यालय में हुयी चोरी में गये करोड़ों रूपयों का पता नहीं लगा पाती, अरूषि कांड के हत्यारों को नहीं खोज पाती, संसद में चालीस लाख लोगों द्वारा सीधे प्रसारण में सांसदों द्वारा लाये गये करोड़ों रूप्यों के स्त्रोत का पता नहीं चला पाती और ना ही उन सांसदों से पूछताछ ही कर पाती है, न अपने एक वरिष्ठ केन्द्रीय मंत्री की नारको टैस्ट की सलाह ही मान पाती है। देश में छुपा कई लाख करोड़ का काला धन बरामद नहीं कर पाती, जंगलों में छुपे आतंकवादी नहीं खोज पाती वह फेल चन्द्रयान से चाँद पर पानी खोज लेती है।''
''तुम कहना क्या चाहते हो?'' वह बिफरा
'' मैं क्या कहूँगा पर किसी शायर ने कहा है-
हम चाँद के बीराने को आबाद करें क्यों
इस धरती पर भी क्या कहीं वीराने नहीं हैं
जिन हाथों ने मयखानों की दीवार रखी है
ये सच है उन्हीं हाथों में पैमाने नहीं हैं
''तो क्या अमरीका और रूस बेबकूफ थे जिन्होंने पहले कुत्ता कुतिया और फिर आदमी चाँद पर भेजे''
'' पर क्या वहाँ भी हमारे यहाँ जैसे हालात थे? अब मान लो हमारा चाँद पर कब्जा भी हो गया तो नेताओं से सांठगांठ करने वाला माफिया वहाँ भी प्लॉट काटने लगेगा और भारत भवन पर सीमेंट के होर्डिंग लगाने वाले वहाँ भी अपना सीमेंट सप्लाई करवा दें भले ही वहाँ की चिमनियाँ भी पतित होने लगें''
रामभरासे ने अपने अखबार समेटे और बिना चाय पिये चला गया।
वीरेन्द्र जैन
२/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629

बुधवार, सितंबर 23, 2009

व्यंग्य - परमेश्वर की रिपोर्ट

व्यंग्य
परमेश्वर की रिपोर्ट
वीरेन्द्र जैन
''थानेदार साब कहां हैं?'' एक महिला ने थाने में प्रवेश करने के बाद कुर्सी पर बैठे हुये हैड कानिस्टबिल से पूछा।
''वे काम से गये हैं, कहिये आपको क्या काम है?'' कानिस्टबिल बोला।
''मुझे रिपोर्ट लिखानी है'' महिला ने कठोर स्वर में कहा।
''क्या हुआ है, किसके खिलाफ रिपोर्ट लिखाना है?'' कानिस्टबिल ने उसे कुर्सी पर बैठने का इशारा करते हुये कहा।
''परमेश्वर के खिलाफ लिखाना है'' महिला बोली।
कानिस्टबिल समझ नहीं पाया कि वह व्यक्तिवाचक संज्ञा का प्रयोग कर रही है या जातिवाचक संज्ञा का। उसने पूछा-''ये कौन हैं? कहां रहते हैं?और आपका इनसे क्या रिश्ता है?''
''ये पुरूष हैं, घर में रहते हैं और मेरे पति लगते हैं'' वह बोली
''पूरा नाम बताइये, परमेश्वर दास, या परमेश्वर सिंह, व उसके आगे क्या लगाते हें , मेरा मतलब जाति से है'' कानिस्टबिल ने पुलिसिया मनोविज्ञान के अनुसार सामने वाले को तोड़ने के लिये उपयुक्त कठोर स्वर का प्रयोग किया।
''देखिये मेरे पति का नाम तो आरबी यानि राम भरोसे शुक्ला है पर वे हमारे पति परमेश्वर हैं इसलिये मैं कह रही थी कि परमेश्वर के खिलाफ रिपोर्ट लिखाना है''
कानिस्टबिल ने महिला को घूर कर देखा और पूछा-''क्या शिकायत है तुम्हें उन से?''
''जी रात में उन्होंने मुझे जोर से डांटा, मूर्ख और गंवार कहा, मेरी शिक्षा को बेकार बतलाया जिससे मुझे बहुत मानसिक आघात पहुंचा। में रात भर रोती रही। सुबह मेरी पड़ोसिन ने बतलाया कि नया कानून लागू हो गया है जिसके अनुसार जोर से बोलने और डांटने पर भी रिपोर्ट लिखायी जा सकती है। मैं तो रात भर सो भी नहीं सकी और पड़ोसिन कह रही थी कि यह भी लिखा देना कि आत्महत्या करने का मन हुआ।''
''आखिर ऐसा तुम्हारे पति ने क्यों किया, क्या दहेज प्रताड़ना का मामला है?''
''नहीं दीवानजी ऐसा कुछ नहीं है। बात असल में ये है कि कल करवा चौथ थी सो मैंने सारे दिन उपवास रखा और शाम को परमेश्वर की प्रतीक्षा करने लगी ताकि उनकी पूजा करके व्रत तोड़ूं। पर वे जाने कहां कहां के कामों में फंसे रहते हैं सो देर से लौटे। और जब मैंने शिकायत के साथ पूजा के लिये कहा तो डांटने लगे और मुझे मूर्ख व दकियानूस बताने लगे। बिना पूजा कराये मेरा व्रत तुड़वा दिया व खाना खाकर सो गये। बस मैंने सोच लिया कि इन्हें सबक सिखा कर रहूंगी।''
''मैं अभी साले को पकड़ कर लाता हूं और घर से ही जूते मारता हुआ लाउंगा'' कानिस्टबिल बोला।
'' नहीं नहीं, ऐसा न करना दीवानजी। आप तो केवल इतना ही समझा दें कि जब मैं जैसा कहूं वे वैसा ही आचरण करते रहें- बस!''
कानिस्टबिल की समझ में सब आ गया। उसने अन्दर ले जाकर उसके बयान लिये और आश्वस्त किया कि पति की रिपोर्ट बताने के लिये कभी भी चली आया करे, वो उसके पति को ठीक कर देगा। हां अपनी पड़ोसिन को भेज दे ताकि थानेदार साब उसकी गवाही ले सकें
महिला की समझ में आ गया था कि कानून की मदद से घर के बाहर निकल कर 'घरेलू' हिंसा से मुक्ति पायी जा सकती है।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र फ़ोन 9425674629

शनिवार, सितंबर 19, 2009

व्यंग्य - हमारे बारे में नहीं कहा मजाकिया थरूर ने

व्यंग्य
हमारे बारे में नहीं कहा मजाकिया थरूर ने
वीरेन्द्र जैन
हम जब से स्कूल में जाने लायक हुये थे तभी से यह सुनना पड़ता रहा है कि मनुष्य एक सभ्य जानवर है। वो तो अच्छा है कि साँप के कान नहीं होते, या हो सकता है कि उसने भी मनुष्य की असभ्यताएं देख देख कर और फिर भी उसे सभ्य जानवर बतलाये जाने की बात से इतना ऊब गया हो कि उसने अपने कान ही छोड़ दिये हों- ये ले अपनी लकुटि कमरिया बहुतई नाच नचायौ।
यह उन दिनों की बात है जब बाप लोग अपने बच्चों को मास्टरों के हाथों में सोंप और अपने हाथ जोड़ कर कहते थे कि इसे आदमी बना दो, मैं आपका जिन्दगी भर अहसानमंद रहूँगा। उन दिनों मास्टरों के हाथों में चाक डस्टर नहीं अपितु छड़ी होती थी जो बिल्कुल सरकस के रिंग मास्टर की तरह हमें यह विश्वास दिलाती रहती थी कि हम अभी कौन हैं और बाप लोगों ने हमें सोंपते हुये क्यों आदमी बनाने की बात कही थी। पता नहीं वे हमें क्या समझते थे कि आदमी बनाने की हमारी शुरूआत हमें मुर्गा बनाने से होती थी। मास्टरों को अपने ज्ञान देने की क्षमता का पूरा पता होता था इसीलिए हमसे सुबह सुबह किसी ऊपर वाले से प्रार्थना करने को कहा जाता था और उससे ज्ञान मंगवाया जाता था- हे प्रभो आनंददाता ज्ञान हमको दीजिये। वो चूंकि आनंददाता था इसलिए हमारी इस गलत जगह की जा रही मांग ज्ञान देने की मांग पर आनंद लेता होगा। जैसे हम मनोरंजन वाली जगह पर राशन मांग रहे हों।
उस शिक्षा व्यवस्था से हम क्या बने इसकी जानकारी थरूर के बयान से जरूर मिलती है। हम लोग इतने जमीन से जुड़े रहे कि कभी हवाई यात्रा नहीं की पर इतना जरूर पता लग गया कि हवाईजहाजों में भी अपना सैकिंडक्लास और जनरल डिब्बा जैसा कुछ होता है जहाँ पर ब्रम्हचर्य की परीक्षा भले ही न हो पाती हो पर भारतीय रेल के आनन्द से वंचित नहीं होना पड़ता है।
दरअसल यदि पहले ही हमें हमारी ठीक सी पहचान करा दी होती तो इतना बखेड़ा खड़ा नहीं होता। बैल को भले ही हमने पिता तुल्य नहीं माना हो पर गाय हमारी माता होती है और बकौल अशोक सिंहल हरियाना के चार दलितों की हत्या की तुलना में एक गाय को मारने का सन्देह भी बड़ा अपराध है।
कभी भी किसी जानवर ने अपना नाम आदमी के नाम पर रखने की कोशिश नहीं की पर हमारे यहाँ कुल आबादी में से कम से कम बीस प्रतिशत तो अपने आप को सिंह कहते हैं और अपने नाम के साथ जोड़े रहते हैं। इतना ही नहीं उनमें से अधिकांश किसी कुर्सी की तलाश में नहीं अपितु सिंहासन की तलाश में रहते हैं।
प्रत्येक के अपने अपने आराघ्य होते हैं और वे हमारे आर्दश भी होते हैं। हम खुद तो उन जैसे नहीं बन पाते पर अपने बच्चों को उन जैसा बनने के उपदेश पिलाते रहते हैं। अब क्या किया जाये कि हमारे एक देवता का शरीर तो मनुष्य का है पर सिर हाथी का है। एक देवता का तो पूरा शरीर ही बन्दर का है। एक राजनीतिक दल ने तो अपने युवा संगठन का नाम ही उनके नाम पर रख छोड़ा है। वाराह अवतार और मत्स्य अवतार को तो छोड़ दीजिये, एक देवता ने अवतार लिया तो आधा मनुष्य और आधे सिंह का रूप धारण किया।
बफादारी में आगे रहने वालों में आदमी से भी आगे रहने वाला कोई जानवर ही हो सकता है। किसी शायर ने फर्माया भी है-
जमाने में बफा जिन्दा रहेगी
मगर कुत्तों से शर्मिन्दा रहेगी
इसलिए अपने को ज्यादा बफादार समझने के लिए अपने अपने पार्टी अध्यक्षों के आगे सभी सदस्य मनुष्य कहाँ रह पाते हैं। वे बिना कहे ही दुमदार हो जाते हैं।
मजाक न समझ पाने के कारण जो लोग थरूर के जूलॉजीकल ज्ञान से दुखी हैं उन्हें बता दूँ कि उन्होंने हम जमीन से जुड़े लोगों का कोई अपमान नहीं किया। दरअसल में वे अपने और जनता के बीच में उड़ने वालों को जब 'कैटल' समझ रहे हैं तो हमें तो वे कीड़े मकोड़े समझ रहे होंगे।
मैं तो अपने आप को चींटी समझा जाना पसंद करूंगा जिससे सूँड़ में आशियाना तलाश सकूँ। बुरा क्या मानना भाई सबके मजाक करने का सबका अपना ढंग है।
वीरेन्द्र जैन
21 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629

शुक्रवार, सितंबर 18, 2009

व्यंग्य- चंदा वसूलने वालों से प्रार्थना

चंदा वसूलने वालों से प्रार्थना
वीरेन्द्र जैन

हे चंदायाचक,
तुम्हैं (दूर से ही) प्रणाम है।
तुम हमारे घर और दुकान पर पधारे तथा साथ में कुछ ऐसे लोगों को भी साथ में लेकर आए जिनके आगे हमारी बोलती बंद हो जाती है।ऐसे अघोषित आपत्तिकाल एंव अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन पर बयान देने के लिए कोई भी मानव अधिकार आयोग कही भी सक्रिय नही है। आपके नक्कारखाने में मेरी तूती की आवाज को कोई सुनने वाला नहीं।
आप धर्मध्वजा के वाहक हैं एवं मैं उस महिला तस्लीमा नसरीन जैसा भी सबल नही हूँ कि धर्म के नाम पर होने वाले किसी भी किस्म के पांखडों का मुखर प्रतिवाद कर सकूँ। धर्म के नाम पर या राष्ट्रीयता के नाम पर कही पर भी झंडा फहराने के लिए आप आजाद हैं और वह भी विशेष रूप से विवादास्पद स्थानों पर झंडा फहराने या धर्म-ध्वजा ठोकने से आपकी राष्ट्रीयता और धार्मिकता मजबूत होती है। आप किसी भी दिन इस देश के बुद्विजीवियों, पत्रकारों, लेखकों और कलाकारों की खोपड़ी पर धार्मिक व राष्ट्रीय झंडे को ठोकेंगे और उनकी कराह के विरोध में उन पर एक लात जमाकर कहैंगे कि देशद्रोही धर्म और राष्ट्रीयता का विरोध करता हैं, तुझे तो बंगाल की खाड़ी में फेंक देगे।
हे प्रभो, आप जो कुछ कर रहे हैं उसे धर्म कह रहे हैं। आप विश्व के प्राचीनतम धर्म के वारिस होने का दावा करते हैं, भले ही जो कुछ आप आज कर रहे हैं धर्म के नाम वैसा किए जाने के प्रमाण आज से बीस वर्ष पूर्व भी प्राप्त नही होते हों। ऐसा करने के लिए आप हमारे पास साधिकार चंदा मॉगने आये। आप धर्म करेंगे तो आपका स्थान स्वर्ग में सुरक्षित रहेगा। मेरे पैसे पर आप स्वर्ग में अपना आरक्षण करा रहे हैं ओर मेरे लिए जीते जी नर्क तैयार कर रहे हैं।
मान्यवर, आपने उत्सव का कार्यक्रम बनाया, तब हमें नहीं पूछा।
आपने समिति का निर्माण किया तब हमें नही पूछा।
आप अध्यक्ष बन गए, सचिव बन गए, कोषाध्यक्ष बन गए तब भी हमें नही पूछा।
हमारा धार्मिक कर्तब्य केवल चंदा देने तक सीमित है और आपका अध्यक्ष तथा सचिव पद प्राप्त करने के लिए है। आप अपने कार्यक्रम में सत्तारूढ़ दल के नेताओं, मंत्रियों, आईएएस अधिकारियों एंव कष्ट पहुँचाने की क्षमता रखने वाले निरीक्षकों को आमंत्रित करेंगे, मेरे पैसे पर खरीदी हुई पुष्प मालाओं से आप उनका अभिनंदन करेंगे, फोटो खिचवाएँगे तथा हम ताली बजाएँगे। यह हमारा धार्मिक कर्तब्य है, और वह आपका।
आपके संबंध ऊपर तक बनेंगे और आपको सामाजिक आर्थिक लाभ देंगे पर आपके उत्सवों के कोलाहल से मेरे बच्चे अध्ययन से वंचित रहेंगे तथा उनका कैरियर नष्ट होगा। ऐसा होने से आपके पहुँचवाले बच्चों को और अधिक सुविधा होगी। आपके फोटो अखबारों में छपेंगे जिससे आपका प्रचार होगा, आप चुनाव जीतेंगे, पद प्राप्त करेंगे, जिससे हमें पददलित कर सकें।
हमने जब स्वाइन फ्लू की आशंका में अपने पड़ोस को सामूहिक श्रमदान से सफाई का अनुरोध किया था तो आप मेरे ऊपर मुस्कराए थे तथा आपके चमचों ने मेरे उपर खिलखिलाकर मेरी खिल्ली उड़ाई थी। मैं शर्मिंदगी के महासागर में डूब गया था। तरस खाकर पत्नी ने मेरे नहाने के पानी में दो-तीन बूँदे डिटोल डालने की अनुकंपा की थी। वह एक बूंद डिटोल की कंजूसी करती हैं, तुम 501- रूपये वसूल रहे हो।
महामहिम, तुम्हें मंहगाई की फिक्र नहीं हैं क्योकि तुम उससे लाभान्वित हो, तुम्हैं मिलावट की चिंता नही हैं क्योकि वह तुम तक नही पहुँचती। आर्थिक भ्रष्टाचार व सामाजिक शोषण के प्रति तुम उदासीन हो, सरकारी कार्यालयों में तुम्हारा प्रभाव हैं तथा नौकरशाही के भष्ट्राचार से तुम मुक्त हो। उत्सव आयोजनों में हमारे पैसे से आमंत्रित अतिथियों को तुमने समुचित प्रभावित कर रखा है। वे तुम्हारा कार्य तुरंत कर देते हैं।
धर्म की करूणा, दया, सच्चाई, प्रेम, सहायता, सहयोग, आभार, कृपा आपमें से सब गायब है। आपकी तरेरी हुई ऑखें, ऐंठी हुई मूँछें, भुजाओं पर खेलती हुई मछलियों, मुक्का ठोकती मुट्ठियों तथा पीसे हुऐ दॉत आपकी मुद्राओं का निर्माण करते हैं। इसके साथ साथ मेरी धर्मभीरूता, अदृशय का आतंक तथा उसके साथ आपके धार्मिक सबंधों का डर मुझे अपने बच्चों का पेट काटकर अपनी कमाई को आपको सौंप देने को बाध्य करते हैं।
हे राष्ट्र हितैषी, तुम नगर के प्रमुख मार्गो पर अस्थाई अतिक्रमण करके सैकड़ों मार्ग अवरूद्व करने जा रहे हो। जिससे मार्ग बदलने के कारण जाम लग जाने से लाखों लीटर पेट्रोल, जिसको आयात करने के लिए हमें विदेशी मुद्रा फूंकनी पड़ती हैं, फुँक जाता है। आपके इस अभियान से दफ्तरों, अदालतों और अस्पताल जाने वालों को आपके धर्म से कितनी सहानुभूति मिल रही है? काश, आपने इसका सर्वेक्षण कराया होता !
अशिक्षित महिलाएँ, रिटायर्ड वृद्व, निठल्ले प्रौढ़ तथा बेरोजगार दिशाहीन युवकों के बल पर चल रहा है आपका धर्मोत्सव।

आप ले जाइए और यदि भगवान से आपके सीधे सबंध हों तो कृपया मेरे लिए एक प्रार्थना अवश्य कीजिए कि मुझमें तस्लीमा नसरीन जैसा आत्मबल पैदा हो। मुझ केंचुए को एक रीढ़ प्रदान करने की कृपा करें हे प्रभु!
---- वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629

बुधवार, सितंबर 16, 2009

पितृ पक्ष में गरबा डांस प्रशिक्षण के खतरे

व्यंग्य
पितृ पक्ष में गरबा डांस का प्रशिक्षण लेने के दुष्परिणाम
जिस पितृ पक्ष में बाज़ार से खरीदारी नहीं की जाती ] पुरुषों द्वारा दाढी बनाने से लेकर अनेक प्रिय काम त्याग दिए जाते हैं तथा बामनों और कौओं को सुस्वाद पकवान खिलाये जाते हैं उस पितृ पक्ष में बड़े बड़े सेठों के अखबारों द्बारा उदारता से पैसा खर्च कर सकने वाली महिलाओं को गरबा नाचने का महंगा प्रशिक्षण दिया जाता है । ऐसे पवित्र पक्ष में गरबा नाचने पर ऊपर से पानी पीने के लिए उतरे पुरखे नाराज हो सकते हैं और वे महिलाओं को शाप दे सकते हैं जिससे उनके पति पुत्र प्रेमी प्रशंसक आदि को पीलिया हो जाने का खतरा है . सावधान रहें और फिर भी अगर गरबा सीखने के लिए जाएँ इन्तेर्नेटी महाराज का पुन्य स्मरण करती रहें पाप कम होगा
आचार्य वीरेंद्र महाराज

व्यंग्य -क्रास वाले सिक्के से बच गया रामभरोसे


व्यंग्य
क्रासवाले सिक्के से बच गया रामभरोसे
वीरेन्द्र जैन
राम भरोसे के हाथ में मिठाई का डिब्बा देख कर मेरे चौंकने में कुछ भी अस्वाभाविक नहीं था। जो लोग राम भरोसे को जानते हैं वे पूरे भरोसे के साथ यह भी जानते हैं कि राम भरोसे मिठाई तो दूर कभी चाय भी पिलाने के आग्रह पर चाय के दुर्गणों का पूरा पुराण बाँच सकता है और जब से चाय के माँसाहारी होने की खबरें प्रचलित हुयी थीं तब से उसे प्रचारित करने वाले भले ही उसे भूल गये हों पर राम भरोसे नहीं भूला। यह बात वह केवल तब भूल जाता है जब दूसरे उसे चाय पिला रहे हों।
'आज सूरज कहाँ से निकला है!' मैंने मुहावरेदार सवाल किया।
'पहले तो तुम अपना नीम चढा करेला अर्थात मुँह मीठा करो तब बताता हूँ कि कल में कितने बड़े हादसे से बाल बाल बच गया।
'क्यों क्या हुआ?' मेरे स्वर में मेरी जिज्ञासा चिंता का मुखौटा लगा कर बाहर आयी। साथ ही सावधानी के बतौर मैंने मिठाई का एक बड़ा सा पीस हाथ में उठा लिया ताकि बड़ी अफसोसनाक बात होने की दशा में कहीं उससे वंचित न हो जाना पड़े।
'अरे कुछ मत पूछो सब अखबार पढते रहने का दोष है। कल मैंने भाजपा के पूर्व सांसद वेदांती का बयान पढा- हाँ, हाँ वही वेदांती जिन्होंने तामिलनाडु के चुने हुये मुख्यमंत्री करूणानिधि की हत्या हेतु खुले बाजार में सुपारी का टेंडर नोटिस दिया हुआ था- कि सोनिया गाँधी ने दो रूपये के सिक्के पर क्रास का निशान छपवा दिया है जिससे पूरे देश में ईसाइयत का प्रचार हो सके। फिर मेरी पत्नी ने, जिसे मेरा अखबार पढना बिल्कुल नहीं भाता है, मेरे हाथ में सब्जी का थैला पकड़ा दिया और क्या क्या नहीं लाना है इसकी सूची सुना कर क्या क्या लाया जा सकता है उसके बारे में बताया। मैं एक परम आज्ञाकारी पति की भांति थैला लेकर बाजार में आया तो देखा कि एक आठ-दस साल का बच्चा गले में नींबू का थैला डाले दस रूपये के दस नींबू कह कर लगभग गिड़गिड़ा रहा था। मुझे उससे सहानिभूति हुयी, पर इतनी भी नहीं हुयी कि मैं मोलभाव करना भूल जाऊँ। बहरहाल मैंने सहानिभूति के तौर पर उससे ही नींबू खरीदने का दृड़ निश्चय किया और नींबू परखने के साथ साथ कहने लगा कि भाव सही बताओ। आखिरकर वह घटते घटते आठ रूपये के दस नींबू पर आ गया। वह हमारे महान देश का बालश्रमिक नहीं होता तो मैं एकाध रूपया और घटा लेता पर मुझ में भी थोड़ा सा इंसान तो बचा ही हुआ है सो मैंने छांट छांट कर बड़े बड़े दस नींबू ले लिये व दस ही लिये, और लोगों की तरह उसका गिनती ज्ञान परखने की कोशिश नहीं की। नींबू रखने के बाद मैंने पर्स निकाला व सहानिभूति से ओतप्रोत होकर उसे एक दस का करकरा नोट दिया, वैसे मेरे पर्स में दूसरे मुड़े तुड़े नोट भी थे। उसने भी मुझे एक चमचमाता सिक्का लौटा दिया और अगले ग्राहक की तलाश में बढ गया। सिक्कों को परखना जरूरी होता है क्योंकि बिना देखे एक और दो के सिक्के का फर्क पता नहीं चलता। गौर से देखा तो पाया कि सिक्का तो दो का था पर उस पर चौरस्ते की तरह कुछ बना हुआ था। थोड़ी देर पहले पढा हुआ अखबार एकदम से दिमाग में कोंध गया। अरे! यह तो वही सिक्का है जिसके बारे में विद्वान वेदांतीजी ने ज्ञान बांटा है। अब क्या होगा! मेरे पास क्रास वाला दो का सिक्का है, ये जब तक मेरे पास रहेगा मुझे ईसाई बनाने का प्रभाव डालता रहेगा। धातुएं प्रभाव डालती हैं। ऐसा नहीं होता तो लोग इतनी अंगूठियां इत्यादि क्यों पहने रहते! मुझे घबराहट होने लगी। कहीं ऐसा तो नहीं कि मैं मदर टेरेसा की तरह अनाथों बीमारों आदिवासियों को गले से लगाने लगूं और अपनी अपनी पाई-पाई लुटा दूं! कहीं अस्पताल खोल दूं, तो कहीं स्कूल खोलने लगूं। बगल में रहने वाले उस कमीने को माफ कर दूं जिसने वो सरकारी जमीन दबा ली जिसे मैं दबाने वाला था! हाय राम अब क्या होगा! सोचा फेंक ही दूं इसे। पर पैसा फेंका नहीं जाता। आखिर तो वह लक्ष्मी का रूप है भले ही उस पर मनमोहनसिंह ने सोनिया गांधी के इशारे पर क्रास बनवा दिया हो। मैंने तुरंत ही अकल से काम लिया। बगल में एक जवान सी लड़की धनिया बेच रही थी- मैंने उसका हाथ र्स्पश करने का बिना कोई प्रयास किये सिक्का उसे थमाया और दो रूपये का धनिया देने को कहा। उसने जितना भी दिया सो उतना ले लिया और ये भी नहीं कहा कि- दो रूपये का बस इत्ता!
ये मिठाई मेरे इसी बच जाने की खुशी में है।'

राम भरोसे ने अपनी कहानी खत्म की तो मैंने उससे कहा- राम भरोसे, मिठाई का एक डिब्बा ओर मंगवाओ'
'क्यों ?' उसके स्वर में आशंका की गूंज थी कि कहीं मैं उसका मजाक तो नहीं बना रहा हूँ।
मैंने कहा 'तुम सचमुच बच गये राम भरोसे, सोचो अगर तुम ईसाई हो गये होते तो बहुत सम्भव है कि फादर स्टेंस और उसके दोनों मासूम बच्चों की तरह तुम्हें भी जिंदा जला दिया जाता और तुम्हारे हत्यारे को बचाने वाले को राज्यसभा का सांसद बना दिया जाता तो ? क्योंकि ऐसा व्यक्ति पैसे को खुदा तो मानता है पर उस पैसे पर ईसाइयों के खुदा को खुदा नहीं देखना चाहता।'

राम भरोसे बोला- कल मैं मिठाई का एक डिब्बा और ले आऊंगा पर भगवान के लिए मुझे जिंदा मत जलवाओ! चलता हँ। जयश्री राम।'
मिठाई के डिब्बे की उम्मीद से भरे हुये मैंने भी कहा- जय श्री रामसेतु


वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629

रविवार, सितंबर 13, 2009

ओबामा और गांधीजी का भोजन

व्यंग्य
ओबामा और गांधीजी
वीरेन्द्र जैन
ओबामाजी ने कहा है कि वे गांधीजी का बहुत सम्मान करते हैं और अगर अवसर मिला होता तो वे उनके साथ खाना खाना चाहते थे। उर्दू का एक शेर है-
हमने किये गुनाह तो दोजख(नर्क) हमें मिली
दोजख की क्या खता थी जो दोजख को हम मिले
ओबामा का तो ठीक है पर किसी ने यह नहीं पूछा कि गांधीजी ने आखिर ऐसा क्या अपराध किया था जो उन्हें ओबामा के साथ खाना खाने को मजबूर होना पड़ता और वे भी उनके साथ खाना खाना चाहते थे या नहीं! कल्पना करें कि गांधीजी ओबामा के साथ खाना खाने को तैयार भी हो जाते तो क्या ओबामा और गांधी अकेले होते? गांधीजी तो ठीक है कि वे किसी शासन के प्रमुख नहीं थे पर ओबामा के साथ तो उनका पूरा सलाहकार मंडल होता जिसमें उनकी भारतीय सलाहकार साधना शाह भी होतीं। ये वही साधना शाह हैं जो देश में साम्प्रदायिक दंगे कराने वाली विश्व हिंदू परिषद को मदद करने के लिए जानी जाती रही हैं और या तो उनकी जनरल नालेज इतनी कम है जैसा कि उन्होंने कहा था कि उन्हें पता ही नहीं कि विश्व हिंदू परिषद क्या काम करती है या फिर वे महान झूठी हैं। 'अल्लाह ईशवर एकहि नाम' गाने वाले गांधीजी उनके साथ कैसे खाना खाते जिन्होंने लार्ड माउण्ट बेटन को उनकी औकात बता दी थी। अगर ओबामा के सारे सलाहकार साधना शाह जैसी कमजोर जनरल नालेज वाले हों तो उन्हें याद दिला दूँ कि कि वे लापियर कालिन्स की किताब फ्रीडम एट मिड नाइट पढ लें। अगर नहीं पढना तो कोई बात नहीं मैं ही बताये देता हूँ कि उन्होंने क्या लिखा था-
गांधीजी जब माउंटबेटन से मिलने गये तो वहाँ कूलर चल रहा था। संभवत: वह उन दिनों हिन्दुस्तान का एकमात्र कूलर रहा होगा। गांधीजी बोले मुझे सर्दी लग रही है इसे बन्द करवा दो। इस तरह धोती लपेटने वाले उस व्यक्ति ने सूट टाई पहिनने वाले व्यक्ति को बराबरी पर बैठा लिया। वे सन्देश देना चाहते थे कि तुम्हारी चकाचौंध से मैं चमत्कृत नहीं हूँ मेरे साथ बात करना हो तो मेरे स्तर पर आकर बात करो। उनका एक चम्मच था जिससे वे दही खाते थे, वह चम्मच टूट गया था तो उन्होंने उसे फेंका नहीं अपितु उसमें एक खपच्ची बांध ली थी और लगातार उसीसे नाशता करते थे। जब लेडी माउंट बेटन ने मेज पर नाशता लगवाया तो उन्होंने थैली में से अपना टूटा चम्मच निकाल लिया और फिर बोले कि मैं अपना नाशता अपने साथ लाया हूँ। उन्होंने वहीं उसी मेज पर बैठ कर उसी चम्मच से अपना दही खाया और जिस साम्राज्य में सूरज नहीं डूबता था उसके प्रतिनिधि के सामने अपनी रीढ सीधी किये रहे।
साधना शाह की सलाहों पर चलने वाले ओबामाजी क्या अब भी गांधीजी के साथ खाना खाने की सोच सकते हैं? सोचिये सोचिये सोचने में क्या जाता है। पर यदि ऐसा ही सोचना है तो तरह तरह के देशी हिन्दुस्तानी कुत्ते पालने की जगह बकरी पालना शुरू कर दीजिये क्योंकि गाँधीजी उसी का दूघ पीते थे।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629

बुधवार, सितंबर 09, 2009

व्यंग्य- राष्ट्र ऋषियों को मारनेवाली सरकार

व्यंग्य
राष्ट्र ऋषियों को मारने वाली सरकार

वीरेन्द्र जैन
हमारे प्रदेश में जब से राम राज्य आया है तब से सब कुछ पौराणिक काल में चल रहा है। राम पथ गमन की खोज करने में प्रदेश के इतने करोड़ रूपये फूंके जाने वाले हैं कि मायावती के हाथी तक चुल्लू भर पानी में डूब कर मर जायें। ऐसा लगता है कि कुछ ही दिनों में मंत्री तक नोटों की जगह स्वर्णमुद्राओं में रिश्वत मांगने लगेंगे। संज्ञाओं का यदि इसी तरह पौराणिकीकरण होता रहा तो मंत्री भी आमात्य के नाम से पुकारे जायेंगे।
मन में विचारों की यह खेप शिक्षक दिवस के दिन मास्टरों पर पड़े डंडों के बाद लगातार आ रही है। महाभारत की कथा में एक भीष्म थे जो पितामह के नाम से इतना प्रसिद्ध थे कि संभवत: उनकी वैध अवैध पत्नियां तक पितामह ही कह कर पुकारती रही होंगीं। वे इतने उत्तरदायी किस्म के जीव थे कि जिज्ञासु किस्म के हर एक बच्चे को उत्तर देना जरूरी मानते थे जिसका फायदा उठा कर अर्जुन ने उनसे उनके मरने का तरीका पूछ लिया था। प्रदेश में जैसे भूतपूर्व राजा महाराजाओं के परिवारों में बुआ भतीजा भले ही अलग अलग पार्टियों में हों पर एक दूसरे के खिलाफ चुनाव नहीं लड़ते इसी तरह भीष्म भी शिखंडी के आगे तीर नहीं चलाते थे, जिस राज को बता कर वे युद्ध के मैदान में खेत रहे थे। शिखंडी के पीछे से होकर उन्हें पीठ पर इतने तीर मारे गये थे कि उन तीरों की शैया तैयार हो गयी थी तब भी वे जीवित थे और उनका सिर लटक रहा था। जब उस लटकते हुये सिर के नीचे कौरवों ने तकिये लगाने की कोशिश की तो उन्होंने उन्हें मना कर दिया और अर्जुन से कहा कि उन्हें वीरों वाला तकिया लगा दे। तब अर्जुन ने उन्हें तीरों का ही तकिया लगा दिया। जब मास्टर भी गुरूजी और शिक्षक हो जाते हें तो वे भी अपनी जाति के पौराणिक युग में चले जाते हैं तथा अपना सम्मान कराने के लिए वेतनवृद्धि नहीं मांगते अपितु उसी बेंत प्रहार की मांग करते हैं जिसे उनके पूर्वज अपने छात्रों के लिए प्रयोग में लाते थे- हे पार्थ हमारा सम्मान उन्हीं बेंतों से करो।
प्रदेश सरकार की शिक्षा आमात्य को लगा होगा कि शिक्षक और गुरूजी होकर भी अगर वे पौराणिक काल में नहीं पहुँचते तब उन्होंने उन्हें और पीछे ले जाने के लिए राष्ट्रऋषि घोषित कर दिया। अब वे कह सकती हैं कि ऋषि होते हुये भी नश्वर द्रव्यों के लिए आन्दोलन करते हो छि: छि: छि: इतना पतन। द्रोणचार्य की याद करो जिसकी पत्नी पानी में आटा घोल अपने बच्चे को दूध का भ्रम देकर पिलाती थी। सरकार जो गुरू दक्षिणा दे उसे लेकर खुश रहो। दुष्यंत कुमार ने कहा ही है-
मुझको ईसा बना दिया तुमने
अब शिकायत भी की नहीं जाती
नामकरण एक संस्कार होता है जिसका बड़ा महत्व होता है। अतीत के गौरव से भर कर लोगों को वर्तमान कठिन समय में बरगलाया जा सकता है। कुपोषित बच्चियों को लाड़ली लक्ष्मी कह कर उनकी माँओं को भटकाया जा सकता है। स्कूल ड्रैस को गणवेष कह देने पर भ्रमित लोग इस बात पर ध्यान नहीं दे पाते कि उसमें घटिया कपड़ा लगा कर कितना कमीशन किनने खाया है। रोडशो को पथ संचालन कह देने और कांधे पर दण्ड रख मुँह ऊपर की ओर कर कदमताल करने वालों को सड़कों के गङ्ढे नजर नहीं आते। बालठाकरे के जय महाराष्ट्र की तर्ज पर जय मध्यप्रदेश का नारा लाया जा रहा है पर यह नहीं बताया जा रहा कि जय किस बात की! विकास में सबसे पीछे होने की या कुपोषण व स्वास्थ सेवाओं में सबसे आगे होने की।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629

नौ नौ नौ का महूर्त

नौ नौ नौ की भविष्यवाणी
जो जातक नौ नौ नौ का नौ बज कर नौ मिनिट नौ सैकिंड पर नैनो खरीदेगा उसकी नौकरी नौ सेना में लग जायेगी बाकी की बेरोजगारों की फौज यथावत चप्पल चटकायेगी
ज्योतिषाचार्य आचार्य वीरेंद्र महाराज

गुरुवार, सितंबर 03, 2009

ओबामा की इफ्तार पार्टी


ओबामा की इफ्तार पार्टी
भारतीय नेताओं की तरह ओबामा ने भी व्हाइट हाउस में इफ्तार पार्टी का आयोजन किया। हमारे देश में भी सभी पूंजीवादी दल ऐसी नौटंकी करते हैं यहाँ तक कि अल्पसंख्यकों को दो नम्बर के नागरिक बनाने को कृतसंकल्प भारतीय जनता पार्टी तक बड़ी बड़ी इफ्तार पार्टियाँ देती है। किंतु जैसे इफ्तार पार्टी में जाकर भी उनके दोहरे पन को समझने वाले उन्हीं पर हँसते हैं और कमेंट करते हैं वैसे ही भारतीय मूल की विश्व हिंदू परिषद को आर्थिक मदद देने वाली साधना शाह को सलाहकार बनाने वाले ओबामा के साथ भी हुआ होगा। लुक्मा तोड़ते हुये लोग कह रहे होंगे देखो चार बादाम और खजूर खिला कर यह समझ रहा है कि हम सब भूल जायेंगे।
हमारा पाखण्ड चारों दिशाओं में फैल रहा है और लगता है कि हम लोग फिर से पूरी दुनिया में छा जाने वाले हैं भले ही पाखण्ड के जगद गुरू के नाम से जाने जायें, व अपनी जेब में हनुमानजी की पीतल मूर्ति रखने वाले ओबामा हमारे श्री चरणों में बैठ कर हनुमानचालीसा का पाठ करते नजर आयें। संभावनाएं उज्जवल हैं। वैसे अभी तक पता नहीं चल सका है कि हमारे दिल्ली के दोस्तों ने ओबामा के चुनाव के दौरान जो विशाल मूर्ति ओबामा को भेजी थी वह उन्होंने व्हाइट हाउस में स्थापित करायी या नहीं! किसी को पता हो तो बताना।