रविवार, सितंबर 13, 2009

ओबामा और गांधीजी का भोजन

व्यंग्य
ओबामा और गांधीजी
वीरेन्द्र जैन
ओबामाजी ने कहा है कि वे गांधीजी का बहुत सम्मान करते हैं और अगर अवसर मिला होता तो वे उनके साथ खाना खाना चाहते थे। उर्दू का एक शेर है-
हमने किये गुनाह तो दोजख(नर्क) हमें मिली
दोजख की क्या खता थी जो दोजख को हम मिले
ओबामा का तो ठीक है पर किसी ने यह नहीं पूछा कि गांधीजी ने आखिर ऐसा क्या अपराध किया था जो उन्हें ओबामा के साथ खाना खाने को मजबूर होना पड़ता और वे भी उनके साथ खाना खाना चाहते थे या नहीं! कल्पना करें कि गांधीजी ओबामा के साथ खाना खाने को तैयार भी हो जाते तो क्या ओबामा और गांधी अकेले होते? गांधीजी तो ठीक है कि वे किसी शासन के प्रमुख नहीं थे पर ओबामा के साथ तो उनका पूरा सलाहकार मंडल होता जिसमें उनकी भारतीय सलाहकार साधना शाह भी होतीं। ये वही साधना शाह हैं जो देश में साम्प्रदायिक दंगे कराने वाली विश्व हिंदू परिषद को मदद करने के लिए जानी जाती रही हैं और या तो उनकी जनरल नालेज इतनी कम है जैसा कि उन्होंने कहा था कि उन्हें पता ही नहीं कि विश्व हिंदू परिषद क्या काम करती है या फिर वे महान झूठी हैं। 'अल्लाह ईशवर एकहि नाम' गाने वाले गांधीजी उनके साथ कैसे खाना खाते जिन्होंने लार्ड माउण्ट बेटन को उनकी औकात बता दी थी। अगर ओबामा के सारे सलाहकार साधना शाह जैसी कमजोर जनरल नालेज वाले हों तो उन्हें याद दिला दूँ कि कि वे लापियर कालिन्स की किताब फ्रीडम एट मिड नाइट पढ लें। अगर नहीं पढना तो कोई बात नहीं मैं ही बताये देता हूँ कि उन्होंने क्या लिखा था-
गांधीजी जब माउंटबेटन से मिलने गये तो वहाँ कूलर चल रहा था। संभवत: वह उन दिनों हिन्दुस्तान का एकमात्र कूलर रहा होगा। गांधीजी बोले मुझे सर्दी लग रही है इसे बन्द करवा दो। इस तरह धोती लपेटने वाले उस व्यक्ति ने सूट टाई पहिनने वाले व्यक्ति को बराबरी पर बैठा लिया। वे सन्देश देना चाहते थे कि तुम्हारी चकाचौंध से मैं चमत्कृत नहीं हूँ मेरे साथ बात करना हो तो मेरे स्तर पर आकर बात करो। उनका एक चम्मच था जिससे वे दही खाते थे, वह चम्मच टूट गया था तो उन्होंने उसे फेंका नहीं अपितु उसमें एक खपच्ची बांध ली थी और लगातार उसीसे नाशता करते थे। जब लेडी माउंट बेटन ने मेज पर नाशता लगवाया तो उन्होंने थैली में से अपना टूटा चम्मच निकाल लिया और फिर बोले कि मैं अपना नाशता अपने साथ लाया हूँ। उन्होंने वहीं उसी मेज पर बैठ कर उसी चम्मच से अपना दही खाया और जिस साम्राज्य में सूरज नहीं डूबता था उसके प्रतिनिधि के सामने अपनी रीढ सीधी किये रहे।
साधना शाह की सलाहों पर चलने वाले ओबामाजी क्या अब भी गांधीजी के साथ खाना खाने की सोच सकते हैं? सोचिये सोचिये सोचने में क्या जाता है। पर यदि ऐसा ही सोचना है तो तरह तरह के देशी हिन्दुस्तानी कुत्ते पालने की जगह बकरी पालना शुरू कर दीजिये क्योंकि गाँधीजी उसी का दूघ पीते थे।
वीरेन्द्र जैन
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फोन 9425674629

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