शनिवार, नवंबर 28, 2009

हास्य व्यंग्य चोरी

व्यंग्य
चोरी
वीरेन्द्र जैन
चौर्य कला हमारे संस्कृति में वर्णित 64 कलाओं में से एक है। भले ही महावीर स्वामी ने आज से 2500 साल पहले अस्तेय अर्थात चोरी न करो कह कर हमारे सामने इस बात का एतिहासिक प्रमाण दे दिया कि उस ज़माने में भी चोरियां होती थीं। हमारी भारतीय संस्कृति की दुहाई देने का ठेका लिये हुये लोग भले ही मुग्ध होने की मुद्रा बना कर यह कहें कि पहले के ज़माने में घरों में ताले नहीं लगाये जाते थे पर सचाई यह है तब तालों का अविष्कार ही नहीं हुआ था।
हमारे धर्म प्रवर्तक भले ही कुछ भी कहते रहें, हम उनके कहे का बुरा नहीं मानते, पर सच तो यह है कि चोरी हमारे स्वभाव में है। मैथली शरण गुप्त ने कहा था-
जो पर पदार्थ के इच्छुक हैं
वे चोर नहीं तो भिच्छुक हैं
इसलिये हमारे यहां बौद्ध धर्म ने चोरी से बचने के लिये भिक्षा का मार्ग अपनाया था। मुझे वर्णाश्रम का सार भी यही लगता है कि जब आदमी चोरी कर पाने में असमर्थ हो जाये तो वो भिच्छुक हो जाये।
हमारे कृष्ण कन्हैया ने कभी भी चोरी से परहेज नहीं किया और ना ही ऐसा कोई उपदेश झाड़ा कि ये मत करो वो मत करो। वे बचपन में माखन चुराया करते थे तो युवा अवस्था में गोपियों का दिल ही नहीं चुराते थे, अपितु लेन देन में भी डण्डी मारी करते थे-
तुम कौन सी पाटी पढे हौ लला,
मन लेऊ पै देऊ छटाक नहीं
त्रेता युग में तो राक्षस और वानर दूसरे की पत्नियाँ चुरा लेते थे।
व्यापार में कर चोरी होती है तो आम जनता का बड़ा वर्ग बिजली चोरी करता है जिसमें बिजली विभाग के अधिकारी सहयोगी होते हैं। दफ्तर के बाबू दफ्तर से कागज़, पेंसिलें, आदि स्टेशनरी चोरी कर के ले जाते हैं ताकि उनके बच्चों को स्कूल में चोरी न करना पढे।
दरअसल आज बार बार चोरी की याद इसलिये आ रही है कि अखबार में खबर छपी है कि शिल्पा शेट्टी के बहिन शमिता ने अपनी बहिन की शादी में अपने जीजू राज कुन्द्रा के जूते चुराये और जूते चुराने के बदले में 51 लाख रुपये वसूले।
अब यह खबर पढ कर कौन सी लड़की होगी जो जूते चुराने को उतावली न हो रही होगी, आखिर लोग बाज़ार देख कर ही तो शेयर खरीदने लगते हैं।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
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