गुरुवार, फ़रवरी 25, 2010

व्यंग्य- बड़ी लकीर खींचने की प्रतियोगिता

व्यंग्य
बड़ी लकीर खींचने की प्रतियोगिता
वीरेन्द्र जैन
‘’क्या आपके यहाँ कोई घूरा है?’’ उन्होंने पूछा
’’पहले तो था पर अब नहीं है, बिल्डरों ने उन पर कब्जा कर लिया है और सब पर बिल्डिंगें तन गयी हैं’’ मैंने उत्तर दिया
’’ तब तो बेकार है....’’ वे लम्बी साँस लेकर बोले
’’क्यों आपको घूरे पर क्या, किसे फैंकना है?’’ मैंने जानना चाहा
’’ अपनी पार्टी का अधिवेशन करना था...” उन्होंने बताया
’’ पर मैं तो घूरे के बारे में पूछ रह था?’’ मुझे उनकी श्रवण क्षमता पर अचानक सन्देह सा हुआ।
’’ वही बता रहा हूं, अगर आप सब्र रख सकें’’ कह कर उन्होंने मेरी ओर दया की दृष्टि से देखा। फिर ठंडी साँस लेकर बोले जब से फाइव स्टार संस्कृति पर मीडिया की उंगलियाँ उठने लगी हैं, तभी से हमारे अध्यक्ष भी कहने लगे हैं कि हम किसी की लकीर को मिटा नहीं सकते इसलिये बड़ी लकीर खींचो। सारी पार्टियों वाले सादगी की प्रतियोगिता पर उतर आये हैं सो हमने सोचा कि हम अपनी पार्टी का राष्ट्रीय अधिवेशन घूरे पर करेंगे,और नारा देंगे- जनता ने हमें घूरे पर फेंका पर हम घूरे से राज सिंहासन तक जायेंगे-, इसलिये कोई अच्छा सा, बड़ा सा घूरा तलाशते फिर रहे हैं’’
‘’ पर आप पूरे राज्य पर शासन कर रहे हैं और जब आपके मंत्रियों के यहाँ, छापे पड़ते हैं तो उनके ड्राइवरों तक के लाकरों से करोड़ों रुपये निकलते हैं, उनके नीचे काम करने वाले अफसरों के यहाँ से सोने की सिल्लियाँ निकलती हैं, तब आप अपना अधिवेशन चाहे टेंट लगा कर करें या घूरे पर करें क्या फर्क पड़ता है- ये जो पब्लिक है सब जानती है, ये जो पब्लिक है...!’’
‘’मैंने आप से घूरे के बारे में पूछा था अपनी पार्टी चलाने के बारे में आप से सलाह नहीं मांगी थी, हमारी पार्टी कैसे और काहे से चल रही है वह हमें पता है और पब्लिक तो तब जानेगी जब हम उसे चैन से जीने देंगे। अभी इन्दौर में भाजपा का अधिवेशन हुआ तो ऊपर से टेंट लगा कर अन्दर से एसी लगा दिया गया, गोबर में सेंट डाल कर लीप दिया गया, जर्सी गायें बंधवा कर गौग्राम बनवा दिया गया, मनेका गान्धी के लिये चारे का इंतज़ाम कर दिया गया जिसे उन्होंने हर एक घंटे बाद पशुओं को डाल कर उस ताकत की उम्मीद की जिससे वे अपने सपूत से मनुष्यों के हाथ कटवा सकें। बैलगाड़ी से चले, गन्ना चूसा, भुने कच्चे चने खाये, मटर की चाट चखी, घर लौट कर काफी पीते हुये बच्चों को बताया कि पिकनिक अच्छी रही। ’’ वे बोले।
‘’ पर बातें मोबाइलों से कीं और काम लेपटाप से किया’’ मैंने कहा।
‘’ हम लोग छवि सुधारने में भरोसा करते हैं चरित्र सुधारने में नहीं। सीता रूपी लक्ष्मी हरण करने के लिये रावण को भी साधु का भेष धारण करना पड़ता है, बरना मंत्रियों के ड्राईवरों तक के लाकरों में से करोड़ों रुपये यूं ही नहीं निकलते। कभी देशभक्ति का चोला ओढना पड़ता है तो कभी साधू साध्वी का चोला ओढे हुये को आगे करना पड़ता है, कभी धर्म की रक्षा करवानी पड़ती है तो कभी गाय की। भले ही दोनों पर कोई खतरा नहीं हो तो भी खतरों की कहानियाँ बनानी पड़ती हैं। पूजा से भी ज्यादा देर तक घंटी बजानी होती है ताकि दुनिया वालों को भ्रम हो जाये कि यहाँ बड़ा धार्मिक आदमी रहता है। सारे चोर उचक्के माथा ज़रूर पोत कर रखते हैं, सब ध्यान बँटाने का खेल है। इधर नज़र भटकी उधर माल यारों का। कहावतें यों ही नहीं बन जातीं। बगल में छुरी तभी काम कर पाती है जब मुँह में राम रख कर धोखा दिया जाये। राम नाम रटना पराया माल अपना तभी हो पाता है। राज कपूर की फिल्म का एक गीत है-
देखे पंडित ज्ञानी ध्यानी दया धर्म के बन्दे,
राम नाम ले हज़म कर गये गौशाला के चन्दे
अजी मैं झूठ बोल्याँ? अजि मैं कुफर तोल्याँ? कुई ना, हो कुईना, हो कुई ना।
अब तुम्हारे यहाँ घूरा नहीं है तो कोई बात नहीं अब हम फुट्पाथ पर अधिवेशन कर लेंगे पर बड़ी लकीर ज़रूर खींचेंगे।‘’
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629

गुरुवार, फ़रवरी 18, 2010

दो लघ कथायें

दो लघुकथाएं
वीरेन्द्र जैन
1
नकली नोट और असली मशीन
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एक प्रदेश के बड़े मंत्री ने प्रधानमंत्री द्वारा बुलायी गयी आंतरिक सुरक्षा की बैठक में कहा कि अगर हमें नकली नोटों के चलन से मुक्ति पानी है तो उसका उपाय हमारे पास है। यह सुनकर ज़िज्ञासा में सारी निगाहें उनकी ओर उठ गयीं।
इस ध्यानाकर्षण के बाद उन्होंने कहा कि नकली नोटों से बचने का इकलौता उपाय यह है कि हज़ार और पाँच सौ रुपयों के नोट बन्द कर दिये जायें। इससे विदेश से इन नोटों को लाने वालों को ट्रक में भरकर लाना पड़ेगा और हम ट्रक को ऐसे ही पकड़ लेंगे जैसे हाईवे पर खड़े रह कर हमारे ट्रैफिक इंसपैक्टर पकड़ लेते हैं।
उनका उत्तर सुनते ही सारे लोग मुस्करा दिये और बात आयी गयी हो गई। बैठक से लौटते हुये बड़े मंत्री के निजी सचिव ने कहा कि सर अगर हमारा प्रस्ताव मान लिया गया होता तो हमें तो बहुत मुश्किल हो जाती क्योंकि अपने यहाँ भी ट्रकों में भर कर नोट आते तो अपुन हिसाब कैसे रखते।
- तुम्हें पता नहीं कि हमने भी यह बयान सोच समझ कर ही दिया है। अपनी मेमसाब ने पहले ही नोट गिनने की मशीन खरीद कर रखी हुयी है- बड़े मंत्री ने राज बताया।







2
उस पार न जाने क्या होगा!
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बड़े मंत्री को अपने गुप्तचरों के द्वारा भनक लग गयी थी कि उसके प्रदेश के कुछ अफसरों पर आयकर विभाग का छापा पड़ने वाला है, इसलिये उन्होंने पहले से ही शोर मचाना शुरू कर दिया था एक एक को देख लूंगा, किसी को नहीं छोड़ूंगा। ये लोग ही हैं जो प्रदेश का विकास नहीं होने दे रहे हैं। मैं सबको सस्पेंड कर दूंगा, आदि आदि।
अफसरों को लगा कि वे सनक गये हैं, या दिखावे के लिये ड्रामा कर रहे हैं। हम जो कुछ भी कर रहे हैं सब सरकार की मर्ज़ी से ही तो कर रहे हैं और उनका सिंह भाग अर्थात लायन शेयर तो ठीक समय पर ठीक ढंग से पहुँचा रहे हैं। वे वर्षा के लिये यज्ञ कराते हैं तो हम ही पैसा जुटाते हैं, वे अपना अधिवेशन कराते हैं तो भी हम ही पैसा जुटाते हैं, वे गणेश बैठाते हैं, दुर्गा बैठाते हैं, रैली करते हैं प्रदर्शन करते हैं, चुनाव लड़ते हैं, बेटे बेटियों की शादी-व्याह करते हैं, सब के लिये हम ही तो पैसा देते हैं फिर ये फुफकार कैसी। वे लापरवाह रहे और लुट गये। इतने नोट निकले इतने नोट निकले कि गिनने वाले थक गये पर नोट कम नहीं हुये। झख मार कर नोट गिनने की मशीन बुलवाना पड़ी तब कहीं दो दिन में गिनती पूरी हुयी।
छापा मारने वालों की दशा देख कर वह अफसर जिसके यहाँ छापा पड़ा था हँसने लगा तो उन लोगों ने पूछा कि क्यों हँस रहे हो। उत्तर में वह बोला कि जब हमारे यहाँ छापा मारने में तुम्हारा यह हाल हो रहा है तो जब तुम मंत्री जी के यहाँ छापा मारोगे तो क्या हाल होगा!
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629

सोमवार, फ़रवरी 01, 2010

व्यंग्य- बिना माल के दलाल्

व्यंग्य
माल बिना घूमता दलाल
वीरेन्द्र जैन
दलाल का काम होता है कि वह बेचने वाले और खरीदने वाले के बीच मेल बैठाये। बेचने वाले के पास माल होता है और खरीदने वाले के पास पैसा होता है और दोनों ही अन्धे होते हैं। इन दोनों के बीच गाल बज़ाने वाले को दलाल कहते हैं जो दोनों के बीच में रहकर दोनों से ही माल काटता है। चूंकि पूंजीवादी दुनिया में सारे सम्बन्ध व्यवसाय में बदलते जाते हैं और जहां व्यवसाय होगा तो वहां दलाल भी मिलेगा। हमारे देश की राजनीति में भी ऐसे कलाकार मिलते हैं और ज़रूरत पर देश के प्रधानमंत्री तक दलाल सलाम करने लगते हैं। वह फिल्मी कलाकारों की लोकप्रियता को वोटों से भुनवाने के लिये उन्हें राजनीतिज्ञों से मिलवाता है और कलाकारों को नेताओं के सौजन्य से सरकारी सुविधाये दिलवाता है। इधर का माल उधर, और उधर का माल इधर ।
आम तौर पर दलाल की दलाली तभी तक शिखर पर रहती है जब तक कि वह खुद उत्पादक या व्यापारी नहीं बनता, पर जब वह खुद ही व्यापार करने लगता है तो वह सन्दिग्ध हो जाता है।
दलाल के लिये ज़रूरी होता है कि माल वाले से उसका जुड़ाव बना रहे क्योंकि जब माल ही नहीं होगा तो वह क्या बेचेगा! पर कुछ दलालों को यह समझ कुछ देर से आती है। वे मुँह के ज़बर होते हैं जिन्हें सज्जनता की भाषा में वाकपटु कहा जाता है। माल खतम हो जाने की बाद भी वे सौदा करने के लिये फेरी लगाते रहते हैं। जब कवि सच्चे और स्वाभिमानी होते थे उस समय की एक लोक कथा है कि किसी कवि की कविताओं को छोड़ कर बाकी सब कुछ बिक गया केवल चारपाई का एक पाया शेष रहा। वह उसे ही बाज़ार में बेचने निकला। पुराने ज़माने में अपना माल बेचने का इकलौता तरीका यही होता था कि फेरी लगा कर आवाज़ लगाते हुये सामान बेचा जाये। वह गलियों गलियों यह कहते हुये घूमा-
खाट लो खाट
सियरा [सिरा] नईंयां [नहीं है],
पाटी नईंयां
बीच का झकझोल नईंयां
चार में से तीन नईंयां
खाट लो खाट
दलाल के पास बातें तो बहुत होती हैं, और बहुत क्या बातें ही बातें होती हैं, पर वह बात का धनी नहीं होता। उसके पास न बफादारी होती है, न बज़नदारी। सच्चाई तो उसके पास से नाक मूंद कर ऐसे दूर भागती है जैसे कि किसी सार्वजनिक पेशाबघर के पास से गुज़र रही हो। कभी वह ऐसा बीमार होना प्रदर्शित करता है कि शायद गंगाजल पीने और गौदान करने के अलावा और कुछ न कर सके, पर कुछ ही क्षणों में वह पलट कर पुराने पहलवानों से कुश्ती लड़ने के लिये तैयार हो जाता है। वह देश भर की यात्रायें करने लगता है और चैनल दर चैनल नल की तरह बहने लगता है।
स्वाभिमान तो उसके लिये अछूत होता है। वह दाँत निपोर कर किसी के भी साथ चिपक किसी की भी दावत में बिना बुलाये जा सकता है और डकार लेकर बाहर आने के बाद वह उसी को आंखें दिखा सकता है। अहसान किस चिड़िया का नाम है वह नहीं जानता, इसी लिये किसी का अहसान नहीं मानता। वह जहाँ से लतियाया जा चुका होता है उसी दरवाजे फिर से सलाम करने पहुँच जाता है। जिनको दिन में गाली देता है उन्हीं से रात में मिलता है और इसे वकील और क्लाइंट की भेंट बताता है, क्योंकि उसे दूसरा कोई वकील नहीं मिलता।
दलाल बातों में ही नहीं शरीर से भी गोलमटोल होता है। उसकी ज़ुबान कैंची की तरह चलती है और जब कैंची को कुछ नहीं मिलता तो अपनी ही बात को काटने लगती है। दलाल चाहे जो रूप धारण कर ले पर वह हमेशा दलाल रहता है। वह नेता भी बन जाये फिर भी उसका दलालत्व अमर रहता है।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629