शुक्रवार, अप्रैल 23, 2010

व्यंग्य - डाकिये और कुत्ते

व्यंग्य
डाकिये और कुत्ते
वीरेन्द्र जैन
डाकिया बेचारा क्या करे। दर दर भटकना उसकी मजबूरी है। भिखारी और डाकिये में इतना ही फर्क होता है कि भिखारी लेने के लिए आता है और डाकिया देने के लिए आता है। भिखारी टेर लगाता है, एडवांस में दुआएं लुटाता है जबकि डाकिया चुपचाप डाक डाल कर चला जाना चाहता है पर ऐसा हो नही पाता! बंगलों पर बंगले में रहने वालों के नाम पट के साथ कुत्तों से सावधान रहने के बोर्ड भी लगे होते हैं। अब बेचारा कुत्तों से सावधान रहने के चक्कर में रहे तो डाक नही बांट सकेगा और उसकी नौकरी खतरे में पड़ सकती है। पर सावधान न रहने पर जिन्दगी खतरे में पड़ सकती है। बहुत धर्म संकट रहता है बिल्कुल उत्तर भारत के मतदाओं जैसा कि इधर कांग्रेस् उधर भाजपा, यहॉ कुंआ वहां खाई- कहॉ जायें भाई।

बंगलों और कुत्तों का नेता और चमचों जैसा चोली- दामन नुमा साथ होता है। ऐसा लगता है जैसे बंगले बनाये ही कुत्तों के लिए जाते हों। बंगलें में चाहे ड्राइंग रूम, लॉन, पोर्च आदि हो या न हो पर कुत्ता जरूर होता है- गोया बंगले के साथ फ्री मिलता हो। घंटी बजने के उत्तर में सबसे पहले कुत्ता ही उत्तर देता है जिससे डाकिये की टांगे थरथराने लगती हैं। बंगले वालों की डाक वह बाहर से भी नहीं फेंक सकता। उनकी डाक में ज्यादातर शेयरों के एलाटमेन्ट या वापिसी के चैक आते हैं जो रजिस्टर्ड डाक से आने के कारण उनको दस्तखत कराके देना पड़ते है। दरवाजा खुलते ही सबसे पहले कुत्ता ही निकलता है। उसकी समझ में नहीं आता कि मालकिन को बिना बाहों वाले वस्त्रों में देखकर श्रृंगार भाव जगाये या कुत्ते के भय से भयभीत हो। इधर दिल मचलता है तो उधर पेंट गीली हो जाने का खतरा मंडराता है। डाकिये के पास गैस सिलेन्डर वाले जैसा भारी भरकम सामान भी नही होता कि कुत्ते के काटने की दिशा में उस पर पटक देने की सुविधा हो, ना ही वह अखबार वाले की तरह पुंगी बना कर फेंक सकता है। उसे तो धीरे से किवाड़ के नीचे से सरकाने या पर्सनल लैटर बॉक्स (यदि लगा हो) में डालना होती है। कोई हाथ में ले ले तो और भी अच्छा ।

एक बार एक भौंकते हुऐ कुत्ते को देखकर डाकिये ने बाहर से ही पूछा था- यह काटता तो नहीं है ?

'' आ जाओं, आ जाओं '' मालिक ने उत्तर में कहा था।
'' मै पूछ रहा था यह काटता तो नहीं है,'' डाकिये ने प्रश्न दुहराया था।
'' आ जाओं कुत्ता नया खरीदा है और इसकी यही जॉच करनी है, बेचने वाले ने तो कहा था कि बाहरी आदमी को देखते ही टूट पड़ेगा'' मालिक ने स्थिति साफ की थी।

कुत्तों के बारे में मित्र लोग दूसरों को यह सलाह देते हैं कि कुत्ते के भोंकने पर भागना नहीं चाहिए। वैसे ऐसी सलाह देने वाले लोगों को सबसे पहले भागते हुए देखा जाता है। जिस बंगले का कुत्ता काटने दौड़ता है उस बंगले के आसपास वाले दो तीन बंगलों की डाक बिना बंटी ही रह जाती है।

पहले डाकियों की वर्दी का रंग गलत था। वह पुलिस वालों जैसे खाकी वर्दी पहनते थे। भले ही उस वर्दी पर पुलिस वालों जैसा कलफ नहीं लगा रहता तथा उनकी वर्दी की धुलाई का एलाउन्स अन्य कामों में आता हो पर कुत्तों को तो यह ज्ञान नहीं होता वे तो उन्हें खाकी वर्दी में देखकर अपनी ही जाति का समझ कर ही गुर्राने लगते थे। अब अच्छा हुआ हैं कि उनकी वर्दी का रंग नीला कर दिया गया है।

सुधारों के इस क्रम में डाकियों की भर्ती के समय जो आवश्यक बातें जॉचना चाहिए वे इस प्रकार हो सकती हैं कि:-

1- डाकिये को अच्छा दौड़ने वाला होना चाहिए।

2- वह चप्पल पहिनने वाला नहीं होना चाहिए।

3- उसे चरित्र का मजबूत होना चाहिए जो मालकिन और कुत्ते के एक साथ प्रकट होने पर कुत्ते से अधिक सावधान रहे।

4- उसे पेट में लगने वाले इन्जेक्शनों के प्रति भयग्रस्त नही होना चाहिए।

5- उसे कुत्ते वाले बंगलों की डाक को पंच तत्व में विलीन कर अंतिम संस्कार की क्रिया में भी पारंगत होना चाहिए ताकि वक्त जरूरत पर काम आ सके।

श- उसे गाय के महत्व पर एक प्रवचन याद होना चाहिए ताकि वह कुत्ते पालने वालों को गाय का महत्व समझा सके।

7- उसे नई तकनीक जैसे- फोन, फेक्स, ई- मेल और कोरियर सेवा के बारे में अच्छी जानकारी होना चाहिए तथा मौका मिलते ही उनके महत्व को समझाना चाहिए। खास तौर पर कुत्ते वाले बंगलों वालों को।

8- सम्भव हो सके तो उसे जिरह बख्तर पहना कर डियूटी पर भेजा जाना चाहिए ताकि लोग महाराणाप्रताप को नहीं भूलें।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629

बुधवार, अप्रैल 14, 2010

एक लतीफा - माँ मैं तुम्हें मिस कर रहा हूँ

एक लतीफा
माँ मैं तुम्हें मिस कर रहा हूं
एक पोस्ट का शीर्षक पढते पढते अचानक ही एक लतीफा हो गया तो सोचा कि
उसे आपसे शेयर कर लिय जाये
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बेटे का हास्टल से फोन आया तो माँ और बेटा दोनों ही भावुक हो गये। बेटा बोला माँ मैं तुम्हें मिस कर रहा हूं.....। सुन कर माँ शर्मा गयी और बोली बेटे पहले मैं मिस ही थी पर तुम्हारे पिताजी ने ही मुझे मिसेज बना दिया। ये तो वन वे ट्रैफिक है अब में दुबारा मिस नहीं हो सकती।
veerendra jain
2/1 shaalimaar sterling
raisen road BHOPAL
9425674629

सोमवार, अप्रैल 12, 2010

द्वार खटखटाती मालिन

व्यंग्य
द्वार खटखटाती मालिन
वीरेन्द्र जैन

रेडियो मिर्ची पर गाना बज रहा है। गाना मधुर है पर कुछ नेताओं को गाना मीठा लगने की जगह मिर्ची सा लग रहा है। गाना कुछ यूं है-

मेरा नाम है चमेली
में हूं मालन अलबेली
चली आई मैं अकेली बीकानेर से
ओ दरोगा बाबू बोलो
जरा दरबज्जा तो खोलो
खड़ी हूँ मैं दरबज्जे पै कितनी देर से

द्वार खटखटाये जा रहे हैं पर दरोगा बाबू हैं कि दरबज्जा ही नहीं खोल रहे हैं। वे कह रहे हैं अब मालिन की जरूरत नहीं हैं, हमारे पास मालिनी है, हेमा मालिनी। जब मालिन की जरूरत थी, तब थी। अब मालिनी ज्यादा भीड़ जुटा रही है।
मालिन कह रही है कि मैं तो सर्वेंट क्वार्टर में ही रह लूंगी तुम्हारे ड्राईंग, ड्रैसिंग, और डायनिंग रूम में नहीं आऊंगी पर दरोगा बाबू पसीज ही नहीं रहा है कहता है कि बाहर तुम से पहले ही लौटने वाले बुद्धू लाइन लगा कर खड़े हैं जिनमें कई तो भक्त प्रह्लाद जैसे हैं पर क्या करें हमारा ही ठिकाना नहीं है, चौबेजी छब्बे बनने निकले हैं पर पता नहीं दुबे भी रह पाते हैं या नहीं! कवि केदारनाथ अग्रवाल कह गये हैं कि-
कागज की नावें हैं, तैरेंगीं तैरेंगीं
लेकिन वे डूबेंगीं
डूबेंगीं
डूबेंगीं
पूरब पशचिम उत्तर दक्षिण सब तरफ से लोग भाग रहे हैं। मालिन कह रही है कि वो जसवंत सिंह वाला कमरा खाली हो गया है उसी को दे दो। अब तो उसका मुक़दमा भी निबट गया है। दरोगा कहता है कि मैं क्या कर सकता हूँ हमारे ऊपर भी एसपी है डीआइजी है आईजी है और ये नीचे वाले भी हैं, जो तुमसे खार खाये बैठे हैं अगर मैंने दरबज्जा खोल दिया तो आंगन में दीवार उठ जायेगी। मुझे भी बाहर का रास्ता दिखा दिया जायेगा। पहले भी एक बार ऐसा हो चुका है। बड़ी मुश्किल से दुरुस्ती हुयी है।
मालिन फिर से घर की बेटी बनना चाहती है पर दरोगाबाबू बाप बनने को तैयार नहीं है। वह अपने आप को लौहपुरूष कहलवाता फिरता है। पिछले दिनों जंग लग गयी थी तो बड़ी मुशिकिल से मिट्टी का तेल लगवा कर छुटवायी है अब कोई खतरा मोल नहीं लेगा। इस घर में कभी भी शादी व्याह का अवसर आ सकता है और काम करने वालों की जरूरत भी है पर दरोगा बाबू टंटा मोल नहीं लेना चाहता। पिछले दिनों अपने वाले ही ढाई करोड़ रुपये लेकर चंपत हो गये थे पर किसकी रिपोर्ट करते! इस घर को आग लग गई घर के चिराग से। और तुम तो सीधी फायर ब्रांड कहलाती हो एक बार में ही मुँह झुलसाये बैठे हैं।
जाओ बाई बाहर बाहर जो करना हो सो करो, इस घर में तुम्हारी कोई जगह नहीं है। अब कह दिया सो कह दिया, अब जाओ चाहे कुम्भ के मेले में जाओ या केदारनाथ जाओ। तुम घर में घुसना चाह रही हो और तुम्हारे टैंक रूट मैप पूछ रहे हैं। अब रूट मैप बताना हमारे वश का नहीं है, प्लीज़ गो आउट।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629

गुरुवार, अप्रैल 08, 2010

लघुकथा[व्यंग्य] अनुशासित टिकिटार्थी

लघुकथा[व्यंग्य]
अनुशासित टिकिटार्थी
वीरेन्द्र जैन
देश में अचानक चुनाव आ गये थे। बिना न्यूनतम साझा कार्यक्रम के गठबन्धन बनाने पर चुनाव भी मौत की तरह कभी आ सकते हैं। ताबड़तोड़ चुनावी तैय्यारीं शुरू हो गयीं। हमारे देश में चुनाव आने पर सबसे पहले अपने ही दल के लोगों से टकराना पड़ता है क्योंकि अपना टिकिट पाने के लिए दूसरे का कटवाना ज़रूरी होता है। सबसे पहले दूसरे टिकिट चाहने वालों के दबे छुपे सारे अवगुण उज़ागर करने होते हैं और अपने गुण बताने होते हैं।
एक राष्ट्रवादी, हिन्दुत्ववादी, दल के ऐसे ही एक प्रत्याशी ने अपने दल की वरिष्ठ उपाध्यक्ष जो एक प्रसिद्ध नृत्यांगना और फिल्म अभिनेत्री हैं, को अपना बायोडेटा भेजते समय विशेष उल्लेख में लिखा-
बैंक खाता - बैंक ओफ राजस्थान
पानी - हमेशा केंट का
पत्रिका - मेरी सहेली
नहाने का साबुन - पियर्स सोप
पसन्दीदा फिल्में - शोले, चरस, सीता और गीता, जुगुनू, बर्निंग ट्रेन, त्रिशूल ,जोशीला, लाल पत्थर, बाग़वान, वीर ज़ारा आदि अतिरिक्त
पसन्दीदा टीवी शो - लाफ्टर चैलेंज[सिद्धू वाला]
शराब - डिप्लोमट /बैग पाइपर्[शत्रुघ्न सिन्हा निर्देशित]
कपड़े धोने का साबुन - निरमा[दीपिका चिखलिया वाला]
आवेदक ने बैंक आफ राजस्थान की पास बुक की फोटोकापी, साबुनों के रेपर, पत्रिका का कवर पेज, सिनेमा के फटे हुये टिकिट और वाटर फिल्टर की रशीद संलग्न की। अब वह टिकिट की प्रतीक्षा में रामायण पाठ में लगा हुआ है। उसे भरोसा है कि टिकिट मिल ही जायेगा।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र
फोन 9425674629