शनिवार, अगस्त 21, 2010

व्यंग्य- पाकिस्तान में बाढ़


व्यंग्य
पाकिस्तान में बाढ
वीरेन्द्र जैन
“पाकिस्तान में बाढ आयी है और हमारे नेता परेशान हैं” राम भरोसे कुछ खीझ कर बोला।
“मानवीयता के नाते यह स्वाभाविक है” मेरी प्रतिक्रिया थी।
इसे सुनकर राम भरोसे कुटिलितापूर्वक मुस्कराया और बोला- इस सरकार के नेता, जो कहते हैं कि गेंहूं सड़ा देंगे पर गरीबों में नहीं बाँटेंगे, और मानवीयता?
“तो फिर?” मैने उसका मन टटोलना चाहा।
“उनमें से कई सोच रहे होंगे कि कामन वैल्थ गेम्स की तरह वहाँ से भी बाढ राहत का चेक देने पर दस परसेंट कमीशन मिल जायेगा जैसा अपने यहाँ से मिलता है”
“पर उन्होंने तो लेने से मना कर दिया था”
“उनके राष्ट्रपति खुद ही मिस्टर दस परसेंट के नाम से जाने जाते हैं और ऐसा ही क्रम चलता तो अंत में प्रार्थना ही बचती सो उन्होंने सोचा होगा कि प्रार्थना के लिए फालतू का अहसान क्यों लिया जाये”
“सुना है इसके लिए भी अमेरिका से सिफारिश लगवाना पड़ी है”
“अब इस महाद्वीप में अमेरिका की सिफारिश के बिना कुछ भी नहीं हो पाता, पाकिस्तान के प्रधान मंत्री की पत्नी पूछती होगी कि आज लंच के लिए चिकिन बिरयानी बनवा लें तो वे उत्तर देते होंगे हमसे क्या पूछती हो अमेरिका से पूछ लो, वे कह दें तो बनवा लेना। इसी तरह भारत की ओर से पचास लाख डालर की सहायता के लिये जब अमेरिका ने हाँ कह दी तभी उन्होंने स्वीकारी। हमारे नेता कहते हैं कि गेंहूं सड़ा देंगे पर गरीबों को नहीं देंगे और वहाँ के नेता कहते हैं कि चाहे बाढ पीढित मर जायें पर भारत की सहायता नहीं लेने देंगे। निदा फाजली ने कहा है न-
खूंखार दरिन्दों के फकत नाम अलग हैं
इंसान में शैतान यहाँ भी है वहाँ भी “
“पर डर है कि अगर बाढ पीढितों को सहायता नहीं मिली तो वे चालीस लाख लोग तालिबानों के प्रभाव में आ जायेंगे” “पता नहीं यह उनका डर है या अमेरिका को डराने का तरीका है। अभी जितने लोग तालिबानों के प्रभाव में आ गये हैं वे क्या बाढ पीढित हैं या अमेरिका पीढित!”
“पर हमारे यहाँ के नेता क्यों परेशान है?”
“इसलिए, क्योंकि बाढ हमारे यहाँ नहीं आयी और सूखे के न आने की भी भविष्यवाणियाँ की जा रही हैं! बेचारे! सूखी तनखा पर गुजर करेंगे “

वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629

रविवार, अगस्त 15, 2010

सरकार का जुआ और कामन वैल्थ गेम्स


व्यंग्य
सरकार का जुआ और कामन वैल्थ गेम्स
वीरेन्द्र जैन
ममताजी उस प्रधानमंत्री की केबिनेट की सदस्य हैं जो माओवादियों को सबसे बड़ा खतरा बताते नहीं थकते। दूसरी ओर वे माओवादियों के साथ भी रैली करती हैं और उनके नेता की मौत को सरकारी हत्या बताते हुए निन्दा करती हैं।
पत्रकार ने ममताजी से पूछा कि आप यह सब कैसे कर लेती हैं तो वे बोलीं – “इसमें नया क्या है, हम तो तब से खतरों के खिलाड़ी हैं जब हम खेल मंत्री हुआ करते थे। तुम अभी नये हो और तुमको पता नहीं कि हम तो नरसिंह राव मंत्रिमण्डल में खेल मंत्री भी रहे है और हमने कलकत्ता के ब्रिग्रेड परेड ग्राउंड में अपनी सरकार के ही खिलाफ रैली करने की इजाजत मांगी थी क्योंकि हमारी सरकार खुल कर नहीं खेलने दे रही थी। बाद में नरसिंह राव ने मुझे मंत्रिमण्डल से बाहर निकाल दिया था। हम तो जो कुछ भी करते हैं अपने वालों के खिलाफ ही करते हैं।“ ममताजी गलत भी नहीं हैं। वे उस छोटे से बच्चे की तरह हैं जो अपनी ही माँ की गोद में लेटा हुआ उसके मुँह की तरफ लातें चलाता रहता है। न गोद से उतरता है और न ही लातें चलाना बन्द करता है। कांग्रेस में रहते हुये साफ कांग्रेस की माँग उठाते उठाते उन्होंने बंगाल से कांग्रेस को ही साफ कर दिया। एक बार कलकत्ता के अलीपुर में भाषण देते देते उन्होंने एक शाल अपने गले में लपेट लिया और उसकी गाँठ लगाने का खेल दिखा कर आत्महत्या-आत्महत्या खेलने लगीं। 1996 में जब उनकी पार्टी सरकार का हिस्सा थी, तब भी वे पेट्रोल कीमतों में वृद्धि के खिलाफ सदन के गर्भ गृह में उतर गयीं, और उस समय के समाजवादी पार्टी के हनुमान अमर सिंह की कालर पकड़ ली थी। खेल खेल में सब चलता है।
खेल खेलने में उन्होंने तत्कालीन रेल मंत्री राम विलास पासवान को भी नहीं छोड़ा और जिस दिन उन्होंने रेल बजट प्रस्तुत किया था तो उन्होंने अपना शाल उनके मुँह पर यह कहते हुए दे मारा था कि उन्होंने बजट में बंगाल की उपेक्षा की थी। इसके साथ ही उन्होंने खेल खेल में अपना स्तीफा भी दे दिया था। उस समय के रेफरी पी ए संगमा ने उनका स्तीफा स्वीकार नहीं किया था और संतोष मोहन देव ने मध्यस्थता करके खेल खेल में उनसे स्तीफा वापिस करवा दिया था। 1998 में एक बार फिर जब महिला आरक्षण बिल पर चर्चा हो रही थी और समाजवादी पार्टी गर्भ गृह में नारे लगा रही थी तब ममता बनर्जी ने समाजवादी पार्टी के सांसद दरोगा प्रसाद सरोज का कालर पकड़ कर घसीटते हुए उन्हें गर्भ गृह से बाहर खींच लिया था।
इसी खेल खेल में 1999 में वे अटल बिहारी वाजपेयी वाली एनडीए सरकार में सम्मलित हो गयीं और किसी बच्चे की तरह खिलोने की तरह रेल [मंत्रालय] लेने की जिद कर बैठीं जिसे अल्पमत सरकार को पूरा करना पड़ा। यहाँ भी उन्होंने खेल खेलना नहीं छोड़ा और 2001 में एनडीए सरकार पर आरोप लगाती हुयी केबिनिट के बैठक से बाहर निकल आयीं। बाहर आकर उन्होंने सोनिया गान्धी के नेतृत्व वाली कांग्रेस से समझौता कर लिया क्योंकि बंगाल में चुनाव आने वाले थे और वहाँ भाजपा का कोई समर्थन नहीं था। इस चुनाव में हार जाने के बाद 2004 में वे फिर से अटल बिहारी मंत्रिमण्डल में सम्मलित हो गयीं और कोयला और खनिज मंत्रालय को सुशोभित किया। इसी साल हुये शाइनिंग इंडिया की चमक के चुनाव में अपनी पार्टी से वे अकेली ही चुनाव जीत सकीं। वैसे तो वे सब कुछ खेल खेल में करती हैं पर चुनावों को खेल भावना से नहीं लेतीं और हार जाने के बाद हमेशा आरोप लगाती हैं कि चुनावों में रिगिंग ही नहीं वैज्ञानिक रिगिंग हुयी। बहरहाल जीत जाने के बाद चुनाव ठीक हुये होते हैं। फिर कभी वे नन्दीग्राम को खेल का मैदान बना देती हैं तो कभी सिंगूर को, तो कभी लालगढ को।
ममताजी पैसे का खेल नहीं खेलतीं। यह खेल उनके दूसरे साथी खेलते हैं और उनके खेल में मदद करते हैं। अब वे बारूद के खेल में शामिल हो रही हैं और गा रही हैं मेरी मर्जी.........। असल में ममताजी के तरह तरह के खेलों के होते हुए कामन वेल्थ गेम कराने की जरूरत नहीं थी पर अगर उन्हें नहीं कराते तो करोड़ों, अरबों रुपयों का खेल कैसे हो पाता ! खेल की भावना इतनी प्रबल है कि सरकार देश से जुआ खेल रही है।


वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड अप्सरा टाकीज के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मो. 9425674629

बुधवार, अगस्त 11, 2010

व्यंग्य - प्रेरणा की प्रेरणा

व्यंग्य
प्रेरणा की प्रेरणा
वीरेन्द्र जैन
वो तो अच्छा है कि लोग बाग आज के सत्तारूढ़ नेताओं की सलाहों पर ध्यान नही देते हैं बरना बेचारे बारहों महीने प्रेरणा लेते लेते परेशान हो जाते। सुबह से चाहे टीवी ख़ोलो या अखबार पढ़ो, उसमें कोई राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री या जम्बो जैट मंत्रिमण्डल के दीगर मंत्री कहीं न कहीं कहते मिल जायेंगे कि देश की जनता को फलां फलां के जीवन से प्रेरणा लेना चाहिए। इन नेताओं की बात मानकर यदि कोई नागरिक प्रेरणा लेना शुरू कर दे तो बेचारा सब्जी लेने कब जायेगा। छत्तीस करोड़ देवता और दीगर महापुरूषों के इस देश में पॉच वक्त की नमाज की तरह पॉच वक्त प्रेरणा लेना भी शुरू कर दे तब भी प्रेरणा देने वाले कम नही पड़ेंगे पर आदमी के पास समय कम पड़ जायेगा।
सुबह सुबह प्रेरणा लेने के लिए निकले आदमी को देखकर चबूतरे पर स्थायी स्तंभ की तरह जमें बूढे आादमी- औरतें टोके बिना थोडे ही मानेंगे और पूछ ही लेंगे
- काय भईया सबेरें सबेरें कितै चले ?
- कउं नईं बाई, आज राणा प्रताप जयंती है सौ सोची कि नैक उनके जीवन से प्रेरणा लै आयें।
- हऔ भईया ऐन लैं आओ, नैकाद हमाये लानें भी लेत अईयों।
कस्बे में यह सबसे बुरी बीमारी पायी जाती है कि मुहल्ले के लोग टोके बिना नहीं मानते। । आप अकेले कुछ नही कर सकते मिलने जुलने वाले आपकी हर चीज में शमिल होना चाहते हैं। यदि आप उनसे यह भी कह दें कि हम तो प्रेम करने जा रहें हैं तो वे उसमें भी जोड़ देंगे कि थोड़ा हमारी ओर से भी कर लेना। शहरों में ऐसा नही है। एक तो आपका पड़ोसी भी आपको ठीक से नहीं पहचानता और पहचानता भी हो तथा उससे आप कहें कि मैं तो मरने जा रहा हूँ तो वो कहेगा - औ क़े बैस्ट ऑफ लक- और स्कूटर स्टार्ट करके फुर्र से उड़ जायेगा।
नेता सुबह गांधी के जीवन से प्रेरणा लेने की सलाह देता है तो शाम को सुभाष चन्द्र बोस के जीवन से प्रेरणा लेने की सलाह देता है। गणेश शंकर विद्यार्थी और श्यामा प्रसाद मुखर्जी दोनो से ही प्रेरणा लेने की सलाह एक साथ दी जा सकती है। गांधी के ठीक सामने सावरकर का चित्र लटकवाया जा सकता है और दोनों से ही एक साथ प्रेरणा लेने की प्रेरणा दी जा सकती है। सरकारी कार्यालयों और स्कूलों में महापुरूषों की जयन्तियों व पुण्यतिथियों के दिन इसीलिए तो छट्टी रखी जाती है कि कर्मचारी और विद्यार्थी जिन्हें आम तौर पर कम समय मिलता है वे महापुरूषों से प्रेरणा ले सकें। यदि सरकार छुट्टियों में कटौती करेगी तो महापुरूषों से प्रेरणा लेने वालों की संख्या में कमी आयेगी। प्रेरणा के उचित आदान प्रदान के लिए छुट्टी बहुत अनिवार्य होती है। लोग सोचने लगते हैं कि ऐसे आदमी से क्या प्रेरणा लेना जो अपने जन्म दिन पर छुट्टी भी घोषित नही करवा सकता। जिस दिन छुट्टी होती है उस दिन आदमी भरपूर नींद लेता है, भारी नाश्ता लेता है और फिर तीसरी चाय लेकर प्रेरणा लेने निकल पड़ता है । बाहर गुप्ता जी पौधों में पानी दे रहे होते है वह पूछता है - चल रहे हो गुप्ता जी ?
' कहॉ ? गुप्ता जी पूछते हैं।
'वही, प्रेरणा लेने, और कहॉ!'
'अब, अरे हम तो सबेरे से ही ले आये- दूध लेने गये थे सो सोचा प्रेरणा भी लेते चलें फिर, बाद में कौन आयेगा। ग्यारह बजे ठेकेदार से अपना हिस्सा लेने जाना है। तुम्हें बहुत लगती है और तुम्हारे पास टैम है सो लेते रहो प्रेरणा। हम तो थोड़ी सी प्रेरणा में ही काम चला लेते हैं।
जिस समय यह कहावत बनी थी कि - पंडित, वैध्य मशालची, इनकी उल्टी रीत, औरन गैल बताय कैं, आपहु नाकें भीत - उस समय तक नेता नामक प्राणी ने अवतार नहीं लिया होगा, वरना उसका भी नाम इसमें जुड़ा होता। नेता प्रतिदिन कहता रहता है कि इससे प्रेरणा लो, उससे प्रेरणा लो, पर खुद कभी प्रेरणा नही लेता । वो अगर प्रेरणा लेने लगे तो फिर रिशवत कौन लेगा, संविधान की झूठी शपथ कौन लेगा, डालरों में चन्दा कौन लेगा, इसलिए प्रेरणा लेने का काम जनता पर छोड़ दिया है कि लेते रहो प्रेरणा। .....वाह सुनील बाबू बढ़िया है।
प्रेरणा लेकर घर लोटे पति के सामने बाल्टी पटक कर पत्नी कहती है- ले आये प्रेरणा- अब हैण्डपम्प से दो बाल्टी पानी ले आओ! नल न आये हुए आज तीसरा दिन है। बिना पानी के प्रेरणा कैसे चाटोगे! उसकी दृष्टि में प्रेरणा लाने की तुलना में पानी लाना ज्यादा जरूरी है। बच्चे पूछते हैं कि हमारी किताबें लाये? मॉ पूछती है कि हमारी दवाई लाये ? इन सब जरूरतों की कमी इस नेता द्वारा दिलाई जा रही प्रेरणा से पूरी नहीं होती है।
कोई ऐसी प्रेरणा नही दिलाता जिससे आदमी के रोटी कपड़ा और मकान की जरूरतें पूरी होने लगें।
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-- वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल मप्र फोन 9425674629

सोमवार, अगस्त 02, 2010

व्यंग्य- उपयोगितानुसार वापिसी

व्यंग्य
उपयोगितानुसार वापिसी
वीरेन्द्र जैन
राम भरोसे आज मूड में था। मेरे पूछने से पहले ही बोल उठा- आज एक मनोरोग चकित्सिक के पास एक स्वस्थ नौजवान आया और मरीजों वाले स्टूल पर बैठ गया। डाक्टर ने बहुत ही नम्रता से पूछा कि किसे दिखाना है तो वह बोला कि खुद को। डाक्टर के यह पूछने पर कि क्या शिकायत है वह बोला
“डाक्साब शिकायत यह है कि मुझे जूते की तुलना में चप्पलें ज्यादा पसन्द हैं।“ डाक्टर ने उसे नीचे से ऊपर तक गौर से देखा तो पाया कि वह बेहद सभ्य और शालीन नजर आ रहा था व उसने करीने से कपड़े पहिन रखे थे, उन्हें उसमें कोई भी असामान्य चीज नहीं दिखाई दी तो वे बोले- इसमें परेशानी की क्या बात है, मुझे भी जूते की तुलना में चप्पलें ज्यादा पसन्द हैं।“
“वो तो ठीक है डाक्साब, पर आप उन्हें भून कर खाना पसन्द करते होंगे और मैं उबाल कर खाना।“ अब डाक्टर कभी उस की तरफ देख रहा था और कभी मेरी तरफ।
इतना कह कर राम भरोसे हो हो हो कह कर हँस दिया। मैंने कहा राम भरोसे ये पुराना लतीफा है
राम भरोसे गम्भीर होते हुये बोला होगा, पर सन्दर्भ नया है।
“कैसे?” मुझे उत्सुकता जगी।
“अरे भाई तुमने एम जी वैद्य का वह बयान नहीं पढा जिसमें उन्होंने कहा है कि जसवंत सिंह की तुलना में उमा भारती ज्यादा उपयोगी थीं, पर उन्हें पुनर्प्रवेश देने की जगह जसवंत सिंह को पुनर्प्रवेश दे दिया गया। बकौल शायर- रहा न दिल में वो बेदर्द, और दर्द रहा
मकीम कौन हुआ है, मकाम किसका था”
“तो इसमें गलत ही क्या है यह उपयोगितावाद का ही युग है- यूज एंड थ्रो। भाजपा में लोगों का महत्व उपयोगिता से ही है न कि उनके त्याग, तपस्या, बलिदान, समर्पण, और सिद्धांतवादिता से। हेमा मालिनी, स्मृति ईरानी, वाणी त्रिपाठी, शत्रुघ्न सिंन्हा, विनोद खन्ना, दारा सिंह, अरविन्द त्रिवेदी, दीपिका चिखलिया, नवजोत सिंह सिद्धू, चेतन चौहान, मनेका गान्धी, वरुण गान्धी, वसुन्धरा राजे, यशोधरा राजे, सब उपयोगी वस्तु की तरह ही आयात किये जाते हैं।
चुनाव जिताने के लिए उपयोगी होने तक धर्मेन्द्र को उम्मीदवार बना दिया, बाद में उन्हें कहना पड़ा कि भाजपा ने मुझे इमोशनली ब्लेकमेल किया। अब जब भाजपा अध्यक्ष खुद ही धर्मेन्द्र के डायलोग बोलने लगे हैं तो धर्मेन्द्र की क्या जरूरत!अब तो कुत्ते का खून पी जाने वाले और भी हैं काके। गोबिन्दाचार्य तो जिन्दगी भर भाजपा के टेंक होने का भ्रम पाले रहे किंतु उपयोगिता घटते ही उन्हें नाली के पानी की तरह बाहर का रास्ता दिखा गया। लम्बे समय तक वे समझते रहे कि वे भाजपा को रास्ता दिखाते हैं किंतु अब स्वयं रोड मैप पूछते नजर आ रहे हैं, कौन से रस्ते से आऊँ, खिड़की से, दरवाजे से, रोशनदान से, या छत से। बता दे कोई कौन गली गये श्याम – रोड मैप का पुराना प्रश्न।“ सर्व श्रेष्ठ सांसद का सम्मान पाने वाले जसवंत सिंह की तुलना में उमा भारती की उपयोगिता सचमुच ही अब ज्यादा होना चाहिए बरना विवादित स्थलों पर मस्जिद गिराने की खुशी में मुरली मनोहर जोशी के कंधों पर कौन सवार होगा! विवादित ईदगाह मैदान पर तिरंगा फहराने के बहाने साम्प्रदायिकता की भूमि कौन तैयार करेगा! किसी लिब्राहन आयोग के आगे गवाही के लिए बुलाये जाने पर कौन सब कुछ भूल जायेगा और कहेगा कि मुझे कुछ भी याद नहीं है कि उस दिन क्या हुआ था!
याद नहीं अब कुछ,
भूल गयी सब कुछ
बस ये ही बात न भूली, जूली........ नहीं नहीं कुर्सी.......।
आज नेताओं के मुँह से जो गालियाँ निकल रही हैं उसकी शुरुआत तो उमा जी बरसों पहले कर चुकी थीं जब उन्होंने अपने विरोधी दल के मुख्यमंत्री से हेलीकाप्टर माँगते हुये अपने सन्देह में घिरे साथी से कहा था कि वे देंगे कैसे नहीं, हेलीकोप्टर क्या उनके बाप का है! चुनावी भाषणों में वे कहती रही हैं कि इस दिग्विजय सिंह को तो सड़क के गड्ढों में पटक पटक कर बिजली का करंट लगाना चाहिए। सच कह रहे हैं वैद्य साब कि उनकी उपयोगिता अब जसवंत सिंह से ज्यादा है, अब जब तक सरकार नहीं है तो कौन सा आतंकवादियों को कन्धार छोड़ने जाना है। अरे अगर भविष्य में सोनिया गान्धी प्रधान मंत्री चुनी जाती हैं, तो सिर मुढा कर, चने खाकर, जमीन में सोने की धमकी क्या जसवंत सिंह देंगे!
उमाजी ही क्यों हमारे वैद्य साब तो संजय जोशी को भी वापिस लेने के लिए उतावले हैं जबकि देश की जनता को यह भी नहीं पता कि उन्हें कब पार्टी से बाहर कर दिया गया था और अगर कर दिया गया था तो मध्य प्रदेश पुलिस से क्लीन चिट प्राप्त इस नेता को किस आरोप में बाहर किया गया था ये तो बता ही देते।
इसलिए भैय्या राम भरोसे ये उनकी समस्या है कि वे जूते से चप्पल को ज्यादा पसन्द करें और भूनने के बजाय उबाल कर खाने को बेहतर समझें। और कहें- मेरी मर्जी।