शनिवार, अक्तूबर 30, 2010

शिशु जिज्ञासाएं और हाथियों के सौदे


व्यंग्य
शिशु जिज्ञासाएं और हाथियों के सौदे
वीरेन्द्र जैन
दीवाली सिर पर आ गयी थी ओर ढेर सारे काम करने को पड़े थे। यथा राजा तथा प्रजा- हमारा हाल भी नेताओं की तरह है कि जब चुनाव सिर पर आ जाते हैं तब याद आता है कि दलित एजेन्डा निकालना है, महिलाओं को आरक्षण आदि देना है,किसानों के पांच हार्स पावर के बिल माफ करने हैं सवर्णों के आरक्षण का प्रस्ताव केन्द्र को भेजना है, सच्चर कमेटी और श्रीकृष्ण आयोग की रिपोर्टों पर विचार करना है बगैरह बगैरह।
रास्ते में याद आया कि रक्षाबंधन के अवसर पर बहिनों को लाने की तरह दीवाली पर लक्ष्मीजी को घर पर लाना है- चूंकि लक्षमीजी तो घर पर आ नहीं सकतीं इसलिए उनका फोटो ही आ जाये तो ठीक है। मैंने लक्ष्मी जी का पना, जो शायद उस पन्ना का अपभृंश है जिस पर छपा हुआ लक्ष्मी जी का फोटो बाजार में मिलता है, खरीद लिया। जो छोटी बच्ची उसे बेच रही थी उसने शायद कभी उसे गौर से देखा नहीं होगा, जैसे पत्रिकाएं बेचने वाले उन्हें कभी पढते नहीं हैं।
घर लौटा तो देखा कि उसी उम्र की पड़ौसी की छोटी बच्ची मेरे घर खेल रही थी, लक्ष्मी का पना देख कर पूछा ''यह क्या लाये अंकल, मैं देखूं?''
मैंने उस चित्र को बहुत नरमी से उसके हाथ में दिया ताकि लक्ष्मीजी और मेरी गृहलक्षमीजी की भावनाएं आहत न हों, क्योंकि मुझे लक्ष्मीजी से उम्मीदें और गृहलक्ष्मी से भय अभी भी है। सुना है कि लक्ष्मीजी दीवाली के दिन चुनावों के दिनों की तरह दीवाली को खूब राहतें लुटाती हैं, हो सकता है एकाध मुझे भी मिल जाये।
'' ये क्या है अंकल?'' बच्ची ने फिर पूछा
'' ये लक्ष्मीजी हैं बेटे'' मैंने स्वर में इतनी श्रद्धा लपेट कर कहा जितना कौर निगलने से पहले उसमें लार लपेटी जाती है।
'' ये वाटर में क्यों खड़ी हैं, इन्हें क्या बहुत गरमी लगती है अंकल ?''
'' हाँ बेटे ये धन की देवी हैं, और पैसों में बहुत गरमी होती है इसलिए इन्हें बहुत गरमी लगती होगी। देखो गरमी कम करने के लिए इनके हाथ से मैल की तरह पैसे छूट रहे हैं''
'' हाँ मेरे पापा भी कहते हैं कि पैसा हाथों का मैल होता है, पर अंकल मेरे हाथ जब गंदे हो जाते हैं तो मम्मी उन्हें धुलवा देती हैं पर उनमें से तो कभी भी पैसे नहीं निकलते?''
'' हाँ बेटे यह लक्ष्मीजी के ही हाथों का मैल होता है।''
बच्ची मान गयी पर फिर पूछा ''लक्ष्मीजी के दोनों ओर क्या हैं अंकल?''
''ये हाथी हैं बेटे''
'' आपको पक्का पता है?''
'' हाँ बेटे, आपके स्कूल में भी किताब में ऐलीफैंट का चित्र दिखाया गया है''
''हाँ अंकल वो तो पता है, पर ये हाथी ही क्यों है, उसकी वाइफ हथिनी क्यों नहीं है ?''
मैं चकरा गया, दोनों हाथी आधे पानी में डूबे हुए थे, मैंने इस दिशा में कभी सोचा भी नहीं था। अचकचा कर बोला ''बेटे सवारी गांठने और अंकुश चुभाने के लिए पुल्लिंग ही चुना जाता है, इसलिए ये हाथी ही है''
'' पर मैंने तो सुना है कि लक्ष्मीजी हाथी पर कभी नहीं बैठतीं, उनकी सवारी तो उल्लू है''
'' हाँ बेटे वे रोड और रेल मार्ग से यात्रा नहीं करती, हमेशा वायु मार्ग से आवागमन करती हैं इसलिए उनकी सवारी उल्लू होती है। हाथी तो दिखाने और सलामी देने के लिए खड़े कर रखे हैं।''
'' पर अंकल मैंने उनका ऐसा कोई चित्र नहीं देखा जिसमें वे उल्लू पर सवार हों, जब भी देखा है उन्हें कमल के फूल पर खड़े देखा है। उनके घर चेयर नहीं हैं क्या ?''
''बेटे उन्हें जब भी जरूरत होती है वे कमल के फूल को ही कुर्सी बनाती हैं या उल्लू पर सवार होकर फुर्र हो जाती हैं। उनका उल्लू बहुत तेज उड़ता है इसलिए वह फोटों में नहीं आ पाता''
''ये हाथी क्यों पालती हैं बेच क्यों नहीं देतीं जबकि इनके पास उल्लू और कमल का फूल दोनों ही हैं''
बच्ची की माया मेरी समझ में नहीं आ रही थी। उसके सवालों के आगे मैं लक्ष्मीवाहन का पट्ठा नजर आने लगा था मैंने झुंझला कर कहा- बेटे हाथी बिकने के लिए ही होते हैं, बिकेंगे बस कोई ठीक ठाक दाम चुकाने वाला भर मिल जाये। वे कर्नाटक में बिकेंगे, वे लखनउ में बिकेंगे, कहीं भी बिकेंगे। हाथी मंहगा बिकता है तथा ज्यादा पैसे वाला ही उसको खरीद पाता है- और हाँ अब तुम घर जाओं क्योंकि बहुत देर हो चुकी है।''
देश की जनता की तरह मासूम बच्ची नमस्ते अंकल कहती हुयी घर चली गयी और मैं हाथी के भविष्य पर विचार करने लगां
ऐसा लगा कि पना की लक्ष्मी मेरे ऊपर कुटिलता से मुस्करा रहीं थीं।

वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
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