बुधवार, जून 29, 2011

व्यंग्य- मांगे मिले न मौत


व्यंग्य

बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले न मौत

वीरेन्द्र जैन

मध्य प्रदेश में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष जानते थे कि जब भी वे केन्द्र सरकार से कुछ मांगेंगे तो वो मिलने वाला नहीं है इसलिए उन्हें मौत मांगते संकोच नहीं हुआ। दूसरी ओर जनता बिना मौत माँगे ही मरी जा रही है। वो चिल्ला चिल्ला कर कह रही है कि मुझे बचाओ, पर सरकार है कि उसके कान पर जूं ही नहीं रेंग रही है।

इससे एक बात तो तय होती है कि भाजपा हमेशा जनता के विपरीत सोचती है, जब जनता जिन्दगी के लिए गुहार लगा रही है तब वे मौत माँग रहे हैं। किसी समय जब पंजाब में आतंकवाद चल रहा था तब कहा जाता है कि उस आतंकवाद को रोकने में मनमोहन सिंह जी की बड़ी भूमिका थी। उन्होंने चुपचाप जाकर आतंकियों से कहा था कि क्यों लोगों को गोलियों से मारते हो कुछ दिनों बाद मैं ऐसी आर्थिक नीतियां लागू करूंगा कि साले अपने आप मर जायेंगे। उनकी बात पर भरोसा करके आतंकियों ने लोगों को मारना छोड़ दिया था। वे अभी भी मनमोहन सिंह पर भरोसा करते हैं। एक पुरानी बोधकथा के अनुसार जब एक लकड़हारा जीवन की कठिनाइयों से बहुत हार गया तो उसने लकड़ी का गट्ठर जमीन पर पटकते हुए कहा कि इससे तो अच्छा ही है कि मौत आ जाये। संयोग मौत कहीं आसपास ही घूम रही थी सो तुरंत ही ऐसे चली आयी जैसे कि 108 नम्बर की एम्बुलेंस हो, और बोली कि कहो मुझे काहे के लिए बुलाया है। लकड़हारे को भी इतनी फास्ट सर्विस का भरोसा नहीं था सो डर गया और बोला कि मैंने इसलिए बुलाया था ताकि ये गट्ठर उठवा कर मेरे सिर पर कोई रखवा दे।

अब वैसे तो सरकार से बिना पूछे दो लाख किसानों ने आत्महत्या कर ली तो सरकार ने कुछ नहीं बोला, पर इसमें अनुमति देने का नियम ही नहीं है। हाथ के चुनाव चिन्ह वाली पार्टी के कानून मंत्री ने हाथ खड़े कर दिये हैं क्योंकि उनके हाथ कानून से बँधे हैं। वैसे आत्महत्या का एक तरीका सचमुच के अनशन पर बैठ जाना भी होता है बशर्ते कोई मुरारी बापू या श्री श्री रविशंकर के आज्ञाकारी न हों। उमाभारती ने गुजरात के विधानसभा चुनावों में भाजश के अपने उम्मीदवार गुरूजी के बहाने से बैठा लिए थे। धर्म और गुरुओं की ओट लेने में भाजपा नेताओं को कमाल हासिल है। शतरंज के खिलाड़ियों को उनसे सीखना चाहिए। सुषमा स्वराज ने सोनिया गान्धी के प्रधानमंत्री बनने की स्तिथि में हिन्दू विधवाओं की तरह सिर घुटा लेने जमीन पर सोने और चने खाने की धमकी दी थी तो उमा भारती ने भी उनसे आगे बढ ऐसा ही करके उन्हें और सोनिया गान्धी दोनों को ही चुनौती दे दी थी।

राजनीति में हथकण्डों के स्तेमाल पर किसी को शोध करना हो तो दुनिया में भाजपा के इतिहास से बेहतर कोई सामग्री नहीं मिल सकती। चार सौ साल पुराने रामजन्म भूमि मन्दिर विवाद को नये राम मन्दिर निर्माण में बदलने, ईंटें जोड़ने को रामशिला पूजन में बदल देने या रामसेतु की चिंता करके देश की अर्थव्यवस्था को होने वाले लाभ को रोकने आदि के नाम वोटों की फसल पैदा करने के वे कुशल कलाकार हैं। पता नहीं कि गिन्नीज बुक आफ वर्ल्ड रिकार्ड वालों का ध्यान उन तक क्यों नहीं पहुँचा।

हो सकता है कि आमरण अनशन कहने में उन्हें गान्धी की बू आती हो क्योंकि संघ वालों को गान्धी हजम नहीं हो पाते और वैसे भी इन दिनों अन्ना हजारे और बाबा रामदेव ने अनशन का ऐसा कापीराइट ले रखा है कि बाबा रामदेव द्वारा बोतल से ग्लूकोज सेवन करने वाले अस्पताल में ही निगमानन्द अनशन करते करते मर गये पर उनके अनशन को अनशन नहीं ही माना गया। रबीन्द्र नाथ त्यागी ने लिखा है कि आत्महत्या बहुत खतरनाक चीज है, इसमें कभी कभी जान जाने का खतरा भी रहता है।

इन ड्रामों के इंटरवल में दुष्यंत कुमार का एक सलाहनुमा शेर याद आ रहा है, हो सकता है कि किसी के काम आ जाये, बशर्ते वह दिल की जगह राजनीति पढ ले-

इस दिल की बात कर तो सभी दर्द मत उड़ेल

अब लोग पूछते हैं कि गजल है कि मर्सिया

वीरेन्द्र जैन

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सोमवार, जून 27, 2011

व्यंग्य राहुल गान्धी की नई टीचर



व्यंग्य

राहुल गान्धी की नई टीचर

वीरेन्द्र जैन

राहुल गान्धी को सारे के सारे लोग ही पाठ पढाने लग गये हैं। उमाभारती उनकी नई टीचर बनने की कोशिश कर रही हैं। राहुल के जन्मदिन पर उन्होंने पाठ पढाया कि उन्हें संघ और बढों का सम्मान करना चाहिए। इसके लिए उन्होंने उन्हें उनके पिता के नाना जवाहरलाल नेहरू का उदाहरण दिया जिन्होंने 1962 में चीन के साथ चल रहे युद्ध के दौरान संघ को दिल्ली का ट्रैफिक सम्हालने की जिम्मेवारी सौंपी थी। यह ऐसा ही है कि घर में आग लगने पर अगर कोई पड़ोसी की छत पर कूद जाये तो बदले में पड़ोसी रोज रोज रात बिरात उसकी छत पर कूदने का अधिकार जमाने लगे। पर वे यह भूल गयीं कि बंगलादेश के स्वतंत्रता अभियान के समय पाकिस्तान के साथ युद्ध में अटल बिहारी वाजपेयी ने श्रीमती इन्दिरा गान्धी को दुर्गा कहा था।

संघ परिवार इतिहास को उतना ही याद रखना चाहता है जितने से उसे राजनीतिक लाभ मिले। मीठा मीठा गप, कढुवा कढुवा थू। उन्हें यह याद नहीं आया कि 1948 में नेहरूजी ने महात्मा गान्धी की हत्या के बाद ही संघ पर प्रतिबन्ध लगा दिया था या राहुल की दादी ने इमरजेंसी के दौरान अटल बिहारी बाजपेयी समेत संघ के सैकड़ों कार्यकर्ताओं को जेल में डाल दिया था जहाँ से वे माफी माँग माँग कर बाहर निकले थे और फिर उसके लिए ऐसे पेंशन माँगने लगे थे, जैसे महात्मा गान्धी रोजगार गारण्टी योजना के अंतर्गत मजदूरी कर के आये हों।

मजे की बात यह भी है कि सम्मान की यह सलाह सुश्री उमा भारती दे रही हैं, जिनके द्वारा 2006 में प्रैस के सामने उन अडवाणीजी का किया गया सम्मान, जिन्हें वे पितातुल्य बताती रही हैं, सबकी स्मृति में है। 2003 में जब उन्हें उनके अनचाहे केन्द्र में मंत्री पद से वंचित कर मध्य प्रदेश में चुनाव लड़ने भेज दिया गया था तब उन्होंने अपने बड़े भाई तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के खिलाफ अपने मुखारबिन्द से जो सम्मान सूचक उद्गार व्यक्त किये थे, वे सबकी स्मृति में हैं। उन्होंने कहा था कि दिग्विजय सिंह को सड़क के गड्ढों में पटक पटक कर बिजली का करंट लगाना चाहिए। जब उन्होंने किसी काम के लिए उनसे हैलीकाप्टर माँगा था और किसी ने मिलने पर सन्देह व्यक्त किया था तो उनका कहना था कि हैलीकाप्टर क्या दिग्विजय सिंह के बाप का है, जो नहीं मिलेगा। साध्वी के भेष में रहने वाली उमाजी ने गुड़ खाना रोकने वाले बाबाजी की कहानी नहीं सुनी! कैसे सुनेंगीं क्योंकि उन्हें तो आजकल एक ही बाबा रामदेव नजर आते हैं जिन्हें वे आडवाणीजी के प्रत्याशी होते हुए भी प्रधानमंत्री बनवाने की इच्छा रखती हैं।

उमाजी ने यह सलाह वरुण गान्धी को नहीं दी जो अब उन्हीं की पार्टी के सांसद हैं और जो मुसलमानों के हाथ काटने का आवाहन करते समय उम्र की कोई सीमा तय नहीं करते कि छोटे मुसलमान के साथ क्या करेंगे और बड़े मुसलमान के साथ क्या करेंगे।

मध्य प्रदेश के जिन मुख्यमंत्री पर उन्होंने उनकी हत्या करवाने का आरोप लगाया था, अब उन्हीं के दरवाजे पर ढोक देने के बाद भी उन्हें प्रदेश में प्रवेश न करने की शर्त पर पार्टी में जगह दी गयी, और शर्त यहाँ तक कठोर है कि अपने बीमार भाई को देखने आने के लिए भी उन्हें छुप छुपा कर आना पड़ता है, -मैं तुमसे मिलने आयी,मन्दिर जाने के बहाने - की तरह। वे जिस प्रदेश में मुख्यमंत्री रहीं, जहाँ उन्होंने हिम्मत हारे नेताओं में आकर अपनी पार्टी की सरकार बनवायी, और उस सरकार को अपना बच्चा बताती रहीं, उसी को अब जशोदा जी पाल रही हैं, उसी प्रदेश में उनका प्रवेश वर्जित है- नो एंट्री। मम्मीजी अपने बच्चे का दुख दर्द भी नहीं पूछ सकतीं, कि हाय पप्पू कैसे हो। मामला कुछ कुछ अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी जैसा हो रहा है। जब उनके अपने प्रदेश में कोई उनसे पाठ पढने की हिम्मत नहीं जुटा सकता तो दूसरे प्रदेश के लोग क्या तैयार होंगे।

मथुरा की गोपियां तो पहले से ही शिक्षा और आचरण के भेद को रेखांकित करती रही हैं और कहती रही हैं कि तुम कौन सी पाटी पढे हो लला, मन लेहु पै देहु छटाक नहीं। अब जब राहुल उमा भारती की पाटी पढ लेंगे तो क्या अपने छोटे भाई वरुण की तरह शाखा में ध्वज प्रणाम करने लगेंगे। दलित परिवार के घर में रात बिताने के बाद सुबह जल्दी उठ कर कहेंगे कि कोई खाकी नेकर पड़ा हो तो दे दो मुझे शाखा में जाना है। वैसे अगर वे ऐसा करने भी लगें तो भी संघ परिवार के लोग कहेंगे कि विदेशी मूल की संतानें नमस्ते सदा वत्सले मातृभूमे नहीं कह सकतीं।

लगता है कि शिक्षा गारण्टी योजना लागू होने के बाद भी कुछ लोगों को अनपढ बने रहना होगा। वैसे भी उमा भारती की क्लास ज्वाइन करने से तो यह बेहतर ही होगा।

वीरेन्द्र जैन

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मंगलवार, जून 21, 2011

व्यंग्य़ लाशों की खबरें



व्यंग्य लाशों की खबरें
वीरेन्द्र जैन
इन दिनों के अखबार लाशों ही लाशों की खबरों से भरे होते हैं। हालात ये हो गये हैं कि अखबार में जिन्दा बचे लोगों को अपने चमचों से जन्मदिन की बधाई के विज्ञापन छपवाने पड़ते हैं नहीं तो शायद लोग उन्हें जिन्दा मानने से ही इंकार कर दें। अभी पिछले दिनों ही मुखपृष्ठ पर भोपाल के एक अस्पताल की खबर थी जिसके अनुसार वहाँ इस बात पर हंगामा हो गया कि जब तक मृतक के रिश्तेदार बिल चुकाने की व्यवस्था करने गये तब तक एक लाश को चूहों ने कुतर डाला था। मृतक के रिश्तेदार डिफेक्टिव माल लेने को तैयार नहीं थे और अस्पताल के पास फ्रेश माल बचा नहीं था अन्यथा वे उसको बदल के दे देते। बदलने में तो उन्हें कमाल हासिल है। और हो भी क्यों न जब वे आये दिन बच्चे बदलते रहते हैं तो डिफेक्टिव लाश किसी गरीब को यह कहते हुये टिपा देते कि समय पर बाजार से दवाइयाँ नहीं लाये तो देखो उसका क्या हाल हो गया है।
मरीज के रिश्तेदार कहते कि ये तो हमारी लाश नहीं है, तो अस्पताल के कर्मचारी कहते कि तुम्हारी कैसे हो सकती है तुम तो अभी भरती भी नहीं हुये हो। पहले भरती होओ तब तुम्हारी लाश तैयार होगी। हम किसी मंत्री के प्राइवेट कालेज नहीं सच्चे अस्पताल हैं, बिना एडमीशन के डैथ सार्टिफिकेट नहीं देते। “हमारा मतलब है कि हमारे उस रिश्तेदार की लाश नहीं है जिसे भरती कराया था, और यह कटी फटी भी है” वे कहते ।
‘अब जैसी है वैसी ही ले जाओ नहीं तो ये भी नहीं मिलेगी, एक मरीज के भरती होने पर एक लाश देने का नियम है सो तुम्हें दे रहे हैं, जलाने के बाद सभी लाशें राख हो जाती हैं। हम तो जिन्दा में भेद नहीं करते और एक को दिया जाने वाला इंजेक्शन दूसरे को लगा देते हैं, मनुष्य-मनुष्य़ सब बराबर, सब को एक दिन बाया अस्पताल परमात्मा के पास जाना है, और तुम हो कि लाश में भी भेद कर रहे हो।
अस्पताल ने शिकायतकर्ता से कहा कि भाई जब तक यह जिन्दा था हमने चूहे वूहे को नहीं खाने दिया, इसके नाम पर जो कुछ भी सौ पचास रुपये तुमने खिलाये सब अस्पताल के कर्मचारियों ने ही मिल कर खाये। अब सोचो कि काम कितना है कि हम जिन्दा तक की तो देख रेख कर नहीं पाते लाशों की कैसे करें। लाश का जो भी बकाया बिल का पैसा मिलना सब अस्पताल को मिलेगा, हमें क्या मिलेगा। वैसे तुम चाहो तो हम कटी फटी जगह पर पट्टी बगैरह बाँधे देते हैं। ऊपर तो आत्मा जाती है जो न चूहों से कटती है न फटती है, न जलती है, ऐसा गीता में तक कहा गया है। सोचो महाभारत के युद्ध में कितन अक्षोहिणी सेना के सिपाही कट गये होंगे उनकी शिकायत किसने कहाँ की। देह कैसी भी हो वह तो यहीं जल जाती है, डैथ सार्टिफिकेट में भी लाश की कंडीशन का कोई जिक्र नहीं होता। मर गया माने मर गया। जमीन, जायजाद, बैंक, पोस्ट-आफिस, बीमा कहीं भी सार्टिफिकेट ले के चले जाओ और क्लेम सैटिल करा लो। ऐसा नहीं है कि चूहों से कटी लाश का पैसा उसी अनुपात में कम हो जाये, चाय पानी का पैसा देने के बाद वो तो पूरा मिलेगा, और चाय पानी का पैसा तो पूरी लाश वाले का भी उतना ही लगता है जितना कि चूहों से कटी लाश का। नहीं ले जाओगे तो यहाँ मेडिकल कालेज वालों के पास चली जायेगी जहाँ चूहों से छूटे हुये बाकी हिस्सों का भी वही हाल होगा।
लाश पर भी क्या झगड़ा करना, अरे अस्पताल में भरती हो के मरे हैं कोई अनशन करके तो मरे नहीं कि घर वाले और आश्रम वाले आपस में लड़ें कि मुआवजा किसको मिलेगा। इनका तो पता नहीं कि बीमा भी होगा या नहीं। लाश पर झगड़ा तो कारगिल युद्ध के एक शहीद के बारे में हुआ था जिसे पूरा देश श्रद्धांजलि दे रहा था और उसके माँ बाप शिकायत कर रहे थे कि शहीद की पत्नी मुआवजे का पूरा पैसा लेकर मायके चली गयी व बूढे माँ बाप पैसे पैसे को मोहताज हो गये हैं। सरकार लाशों पर ही मुआवजा देती है इसलिए जिन्दा आदमी की कोई फिक्र नहीं करता। भोपाल में गैस काण्ड में मरे लोगों के किसी उत्तराधिकारी ने नहीं कहा कि मेरे माँ बाप मुझ से अलग रहते थे, मैं उनकी कोई सेवा नहीं कर पाया था इसलिए मैं मुआवजे का अधिकारी नहीं हूं। सरकार जिन्दा आदमी का लैटर बाक्स जैसा पेट नहीं भर सकती पर मर जाये तो हिसाब चुकता कर देती है।
यही कारण है कि जहाँ देखो वहाँ लाशें ही लाशें बिछी रहती हैं, कुछ तो मरने के बाद भी सालों अखबार में प्रथम पुण्य़ तिथि से लेकर बीस पच्चीसवीं पुण्यतिथि तक भरे रहते हैं। वहाँ उनको सर्वोत्तम स्थान प्राप्त है।


वीरेन्द्र
जैन
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शुक्रवार, जून 17, 2011

रोचक संस्मरण - उसकी पत्नी की शादी के बाद उसकी दूसरी शादी


रोचक संस्मरण
उसकी पत्नी की शादी के बाद उसकी दूसरी शादी
वीरेन्द्र जैन
पिछले दिनों मेरठ में एक शादी ऐसी हुयी थी जिसमें शादी के बाद जब पति को पता चला कि उसकी पत्नी की उसके पिता ने जबरदस्ती शादी करा दी है और वह किसी और को प्यार करती है व उससे पहले ही शादी कर चुकी है, तो उसने उसके प्रेमी से मिलाने के लिए मीडिया के सामने उसे बहिन बना लिया। अब वह उसके प्रेमी से उसकी शादी कराने के लिए जुट गया है। इससे भी अधिक पेंचदार एक घटना गुजरात में घट चुकी है जिसका जिक्र गुजरात के सुप्रसिद्ध व्यंग्य लेखक विनोद भट्ट ने अपनी पुस्तक में किया है। घटना इस तरह है कि जब एक चित्रकार को पता चला कि उसकी पत्नी शादी से पहले किसी और को प्रेम करती रही है व उसका प्रेम अभी भी जिन्दा है तो उसने स्वयं जाकर उसकी शादी उसके प्रेमी से करा दी। उसके इस अहसान से दोनों इतने दबे कि उस चित्रकार के सबसे अच्छे मित्र बन गये। इस घटना के कुछ साल बाद वह प्रेमिका गम्भीर रूप से बीमार हुयी तो दोनों ने ही जी जान से जुट कर उसकी तीमारदारी की, पर वह बच नहीं सकी। मरते समय उसका एक हाथ अपने पति के हाथ में था तो दूसरा पूर्व पति के हाथ में। उसकी मृत्यु से उसका प्रेमी पति चित्रकार के कन्धे पर सिर रख फूट फूट कर रोने लगा तो उसने उसकी पीठ पर हाथ फेरते हुए सांत्वना देते हुए कहा- घबराओ नहीं, मैं फिर शादी कर रहा हूं।

वीरेन्द्र जैन
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बुधवार, जून 08, 2011

व्यंग्य- एक सांस्कृतिक कार्यक्रम के पक्ष में


व्यंग्य
एक सांस्कृतिक कार्यक्रम के पक्ष में
वीरेन्द्र जैन
ये कांग्रेसी बहुत ही असांस्कृतिक लोग हैं और हों भी क्यों न आखिर शाखा से थोड़े ही निकले हैं। जो लोग संघ की शाखाओं से निकले हुए होते हैं वे सांस्कृतिक होते हैं क्योंकि संघ की नियमावली में लिखा हुआ है कि संघ एक सांस्कृतिक संगठन है और जो एक सांस्कृतिक संगठन है उससे निकले हुए लोग असांस्कृतिक कैसे हो सकते हैं।
अब जब भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद की वैकल्पिक प्रत्याशी, लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने राजघाट पर नृत्य दिखा दिया तो ये कांग्रेसी कह रहे हैं कि राजघाट अपवित्र हो गया। ये कैसी नासमझी की बातें हैं। नाचना गाना भले ही कैसा भी हो किंतु यदि उसे नृत्य संगीत और राष्ट्रगीत जैसे संस्कृतनिष्ठ शब्द दे दिये जायें तो उसमें एक गरिमा आ जाती है। सारा प्रताप शब्दों का ही तो है, अडवाणीजी डीसीएम टोयटा को रथ कह कर लोकसभा में अपनी दो सीटों की संख्या को छियासी और फिर दो सौ तक बढा लेते हैं। अब अगर वे डीसीएम टोयटा यात्रा पर निकालते तो रामभक्त टोयटा-यात्री को टाटा कर देते। इसलिए पूरा संघ परिवार शब्दों के प्रयोग में बहुत चतुराई से काम लेता है। अपने स्कूलों को मन्दिर कहता है जिससे दूसरे धर्मों के लोग अपने बच्चों को भेजने से वैसे ही कतरा जाते हैं। सरस्वती शिशु मन्दिरों में मुसलमान बच्चे प्रविष्ट नहीं हो पाते हो जायें तो भोजन मंत्र पढने के बाद ही खाना खा पायेंगे। क्षमा करें मैं संघ के सांस्कृतिक शब्द जाल में वैसे ही उलझ गया था जैसे मैथली शरण गुप्त की पंचवटी में सूर्पणखा का बाँया हाथ चिकुर जाल में उलझ गया था। हाँ तो मैं कह रहा था कि सुषमाजी ने नृत्य किया तो ठीक किया आखिर बाबा रामदेव को फाइव स्टार होटल में मंत्रमंडलीय स्वागत के बाद महिलाओं के बीच छुपकर और उधार मांगे हुए सलवार कुर्ते में दुपट्टे से मुँह छुपा कर भागने को मजबूर करने का अपराध जो केन्द्र सरकार ने किया था, उसका विरोध तो करना था। सबके विरोध का अपना अपना तरीका होता है, सुषमाजी का तरीका सांस्कृतिक है सो वे सोनिया गान्धी के प्रधानमंत्री बनने का विरोध सिर मुँढा, जमीन पर सो और चने खाकर करना चाहती थीं तथा बाबा पर हुए हमले का विरोध राजघाट पर नाच कर करना चाहती हैं।
मैं इस छिद्रांन्वेषण में नहीं जाना चाहता कि राजघाट एक समाधि स्थल है और शांति व सादगी ही उसकी सुन्दरता है उसे धरनास्थल बनाना ही गलत है व बना भी लिया तो नाचना और ठुमका लगाना गलत है। अरे भैया जिस पार्टी की वरिष्ठ उपाध्यक्ष हेमामालिनी जैसी एक सुप्रसिद्ध नृत्यांगना हो जो अच्छों को केंट वाटर प्योरीफायर का पानी पिला देती हैं, तो उसके बाकी के सदस्य नाच गाने से कैसे दूर रह सकते हैं, चाहे अवसर दुख का हो या सुख का हो। मेरा सैंय्या छैल छबीला मैं तो नाचूंगी। भोपाल में जब पंचज कार्यक्रम वाली मुख्यमंत्री उमा भारती बनीं तब भाजपा कार्यालय के सामने महिलाओं के नाचते हुए फोटो समाचार पत्रों में छपे, जब उमाजी को निकलवाकर गोकुल ग्राम वाले गौर साब सीएम बने तब भी फोटो छपे और जब उमाभारती की लोकतंत्र की माँग को दरकिनार करते हुए स्वर्णिम मध्य प्रदेश वाले शिवराज सिंह चौहान सीएम बने तब भी वैसे ही फोटो छपे जिनमें महत्वपूर्ण यह रहा कि हर अवसर पर नाचने वाली महिलाएं वही की वही रहीं। कोउ सीएम होय हमें का हानी , हमें तो नाचना है। मुख्यमंत्री कोई हो, अवसर कोई हो, सांस्कृतिक पार्टी को तो संस्कृति से काम, सांवरे की बंशी को बजने से काम...............।
नाचने में नृत्य, गीत, संगीत सब सम्मलित रहते हैं। यह हमारी परम्परा का हिस्सा है, पुराणकथाओं के अनुसार शिव जी का तांडव और डमरू दोनों ही प्रसिद्ध हैं, तो रास रचाते श्री कृष्ण तो कुंजन कुंजन में रासलीला करते रहते थे। कर्नाटक में इसी सांस्कृतिक पार्टी की सरकार भ्रष्टाचार का नंगा नाच नाच रही है पर उसे आशीर्वाद देने का श्रेय कोई नेता नहीं लेना चाहता। रेड्डी बन्धु मुख्यमंत्री येदुरप्पा को उंगलियों पर नचा रहे हैं और मुख्यमंत्री पार्टी को नचा रहे हैं, जाओ नहीं देते स्तीफा। मुख्यमंत्री के परम शत्रु अनंत कुमार के बारे में एक नई प्रकाशित किताब में आर के आनन्द ने लिखा है कि उन्होंने उन्हें अपने पड़ोस में स्थित नीरा राडिया के फार्म हाउस में उसके साथ पश्चिमी धुनों पर थिरकते देखा है।
उधर भाजपा में किसी तरह पुनर्प्रवेश के लिए उमाभारती तकली जैसा नाच रही थीं, कभी नागपुर के संघ कार्यालय तो कभी गडकरी के दरबार में कभी यूपी तो कभी एमपी कभी उत्तराखण्ड। कभी बाबा रामदेव को प्रधानमंत्री बनवाने लगती थीं, तो कभी अन्ना हजारे के अनशन स्थल से खदेड़ी जाती थीं, पर कहीं गति नहीं मिल रही थी, किसी गुरू किसी देवता का आशीर्वाद काम नहीं आ रहा था। उनके लिए भाजपा का दरवाजा सुई का छेद हुआ जा रहा था, पर उन्होंने नाचना नहीं छोड़ा गाना नहीं छोड़ा और पूरे छह साल बाद भगवान ने उनकी नैय्या पार लगा दी, बस घाट बदल दिया।
भ्रष्टाचार के लालच से नेत्र मूंदे कांग्रेसियो जरा समझो यार सब ओर नाच चल रहा है, धरती नाच रही है, सूरज नाच रहा है चन्दा नाच रहा है, काला सफेद पैसा नाच रहा है, रिंगमास्टर के कोड़े पर सरकस का शेर तक नाच के दिखा रहा है, इसलिए नाचने दो भाई। जब ए राजा की बारात का बाजा बज गया है तो बाकी बकरों की अम्मा कब तक खैर मनायेगी। चलो तुम भी थोड़े सांस्कृतिक बन जाओ, चलो उठो, अच्छे अमूल बेबी जिद नहीं करते ।

वीरेन्द्र जैन
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