सोमवार, अक्तूबर 24, 2011

हनुमतभक्ति के पुनर्जागरण का समय

      व्यंग्य
                     ओबामा की हनुमत भक्ति क्या फिर से जगेगी
                                                               वीरेन्द्र जैन
      अमेरिका में फिर से चुनाव आने वाले हैं और बराक ओबामा हमारे अडवाणीजी की तरह फिर से उम्मीदवार बनने के लिए नारद लीला खेलेंगे। चुनावी अभियान में अमेरिका के मतदाता तो उनसे हिसाब माँगेंगे ही माँगेंगे पर इस अवसर पर कुछ हिसाब उनसे हमें भी माँगना है। लोकतंत्र में हिसाब चुकता करने की दीवाली आमचुनाव ही होते हैं।
      पिछले चुनाव में उन्होंने अमेरिका में रह रहे हिन्दुस्तान के लाखों प्रवासियों के साथ साथ हिन्दुस्तान के धर्मप्रेमियों का दिल वगैरह जीत लिया था। जब ये पता चला था कि वे पवन सुत अंजनिनन्दन हनुमानजी के भक्त हैं और पेंट की जेब में जो टोटके डाल कर चलते हैं उनमें चाबी के छल्ले जैसी एक धातु से बनी पर्वत लेकर उड़ते हुए हनुमानजी की मूर्ति भी है, तो हम उनकी बलैयां लेने लग गये थे। दिल्ली में रहने वाले बजरंगबली के भक्तों ने तो पीतल की एक बड़ी मूर्ति भी उन्हें फ्री भेजी थी। वे सोचते थे कि अमरीका में भी
वहीं अर्थात व्हाइट हाउस में मन्दिर बन जायेगा। पर चुनाव जीतने के बाद वे भी भाजपा हो गये और उनकी हनुमत भक्ति का कहीं कोई अता पता नहीं चला, जबकि बजरंगदल वाले तो उन्हें अपना सदस्य बनाने कट्टा लेकर जाने वाले थे, कट्टा माने वो वाला कट्टा नहीं, रसीद कट्टा। सोचते थे कि लगे हाथ दुनिया के सबसे बड़े सेठ से गौशालाओं, रामलीला, गणेश भगवान और दुर्गाजी की झाँकियों के लिए चन्दा भी लेते आयेंगे। धर्म के काम में कोई मना कैसे कर सकता है! पर वे नहीं गये। हो सकता है कि वे ये सोच के रुक गये हों कि ओबामाजी के समय में न केवल वहाँ के बैंक ही धड़ाधड़ रूप से फेल हुए अपितु पूरी वित्त व्यवस्था ही मन्दी के दौर में आ गयी। अब इन गरीबों से क्या तो माँगना, जो खुद ही दूसरे देशों की लुटाई करने के लिए कभी ओसामा के छुपे होने का बहाना लेता है तो कभी जैविक हथियारों के बहाने ईराक पर हमला कर सद्दाम को फाँसी चढा देते हैं।
      भाजपा वाले उन्हें विदेशी मदद की ओट लेने वाली अपनी जेबी संस्था अब्राड फ्रैंड्स आफ बीजेपी में शामिल करना चाहते थे क्योंकि ओबामा को इसलिए वे संस्था की सदस्यता के लिए सुपात्र समझते थे कि वे भी उन्हीं की तरह चुनावों के समय धार्मिक प्रतीकों से मतदाता को बहकाने की कूटनीति अपनाते हैं। जैसे भाजपा ने केन्द्र में सत्ता पाने के बाद राममन्दिर के मुद्दे को फिलहाल दबा कर रख दिया था वैसे ही ओबामाजी ने व्हाइट हाउस में दिल्ली वालों की भेजी गयी मूर्ति को उठाकर रख दिया होगा। हो सकता है कि अब चुनाव आने पर उसे फिर से धो पौंछ कर सामने ले आयें। विश्व हिन्दू परिषद को चन्दा देने वाली जिस सोनल शाह को उन्होंने अपना सलाहकार बनाया था उन्होंने बाद में उन्हें कौन कौन सी सलाहें दीं ये पता ही नहीं चला, पर अमेरिका का भट्टा जरूर बैठ गया और अगर हिन्दुस्तान अमेरिका की सलाहों पर चलता रहेगा तो उसका भट्टा जो अभी खड़ा भी नहीं हुआ है वह बिल्कुल ही धसक जायेगा। हो सकता है कि ये सोनल शाह की ही सलाह हो कि हिन्दुस्तान में अगला चुनाव नरेन्द्र मोदी और राहुल गान्धी के बीच करा दिया जाये। हो सकता है कि उन्होंने मोदी का वीजा भी क्लीयर करवा दिया हो, क्योंकि मत्था टेकने तो वहीं जायेंगे।
      हाँ जाने से पहले वे जार्ज फर्नांडीज के साथ उनके अनुभवों को साझा कर सकते हैं बशर्ते कि जार्ज की याददाश्त वापिस लौट आयी हो, और वे अपनी सगी पत्नी व सगी मित्र और सगे इकलौते मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से बोलने की अनुमति प्राप्त कर सकें।
वीरेन्द्र जैन
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मंगलवार, अक्तूबर 11, 2011

व्यंग्य- टोपी और सद्भावना

व्यंग्य
टोपी और सद्भावना
वीरेन्द्र जैन
      नरेन्द्र मोदी ने अपने सद्भावना उपवास में टोपी न पहिन कर अपनी सद्भावना की रक्षा कर ली। ठीक किया। ये भी कोई बात हुयी कि नौटंकी की स्क्रिप्ट हमारी और डायलाग आप अपने डालने लगें। ये तो मौलाना थे, कल के दिन कोई दिगम्बर जैन मुनि आ जाता और अपने अनुसार आग्रह करने लगता तो क्या होता। वैसे भी दुनिया भरके मीडिया और जाँच आयोगों ने कौनसी कसर छोड़ रखी है।  छह करोड़ गुजरातियों के गर्वीले मुख्यमंत्री जैसी चाहें सद्भावना बनायें और जैसी चाहें बिगाड़ें उनकी मर्जी। उनका हर काम प्रतिनिधित्व में होता है, पिछले दिनों उन्हें दस्त लग गये थे तब उन्होंने एक पत्रकार से फोन पर बात करते हुए बताया था कि छह करोड़ गुजरातियों को दस्त लग रहे हैं।
      वैसे भी सद्भावना का कोई तयशुदा मौसम या त्योहार तो होता नहीं है इसलिए भाजपा के मुख्यमंत्री को ही तय करना होता है कि अपने प्रदेश में कब सद्भावना बिगाड़ना है और कब बनाना है। वे कोई कांग्रेस के मुख्यमन्त्री तो हैं नहीं कि ईद के दिन जालीदार गोल टोपी पहिनकर गले मिल लिये और हो गयी सद्भावना, बाकी समय संघ और सिमि पर छोड़ दिया कि जितनी बिगड़ना हो सो बिगाड़ लो। इतना ही नहीं कैसे बनाना है और कैसे बिगाड़ना है यह भी मुख्यमंत्री के ही विभागों में आता है। पिछले दिनों गलती हो गयी थी सद्भावना बनाने बिगाड़ने का काम दूसरे मंत्रियों पर छोड़ दिया था सो एक जेल में है और दूसरे को तड़ीपार रहने के आदेश हुए हैं। कानून के लम्बे हाथों से बचने के तरीके सब को तो नहीं आते।  
      उन्होंने सद्भावना के लिए उपवास करना तय किया जबकि बिगाड़ने के लिए क्रिया की प्रतिक्रिया तय की थी। अब ये बात दूसरी है कि क्रिया किसी ने की हो और प्रतिक्रिया किसी पर की जा रही हो। जब एक मुख्यमंत्री क्रिया की अन्धी प्रतिक्रिया करा रहा हो तो वह अपनी सरकार की नाकामी तो पहले ही से मानकर चल रहा होगा, बरना प्रतिक्रिया के लिए तो पुलिस और न्याय विभाग बनाये ही गये हैं। क्रिया प्रतिक्रिया के लिए किसी धर्म के सभी अनुयायियों को एक मान लेते हैं पर संसाधनों के बंटवारे के लिए सब अलग अलग हैं। खीर मैं सौंझ, महेरी में न्यारे। ये भी नहीं कहते कि सारे मुसलमानों की सम्पत्ति को भी एक कर दें और सारे हिन्दुओं की सम्पत्तियों को एक कर दें जिससे लोग कम से कम अपनी मौलिक जरूरतें पूरी कर सकें। पूरे गुजरात की सद्भावना बनाना है तो छह करोड़ गर्वीले गुजरातियों की सम्पत्ति को ही एक कर दें। पर यह वे सोचते भी नहीं।
      वैसे 2002 के समय जब सद्भावना बिगाड़ी गयी थी तो जो लोग मारे गये थे वे भी गर्वीले गुजराती ही थे और जो पुलिस उनकी रक्षा करने की जगह जब हाथ पर धरे बैठने को मजबूर कर दी गयी थी, वह भी गर्वीले गुजरात की ही थी। जो लोग मार रहे थे वे भी गुजराती ही थे और जो मर रहे थे वे भी गुजराती ही थे। गली गली में गीता का पाठ गूँज रहा था। सब में एक ही आत्मा का बास है। वैसे गोधरा घटना के कुछ ही घंटों बाद देश के तत्कालीन गृहमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने इसमें पाकिस्तान का हाथ बता दिया था जिससे उम्मीद बँधती थी कि प्रतिक्रिया पाकिस्तान के खिलाफ होगी पर हुयी गर्वीले गुजरातियों के एक हिस्से पर। पता नहीं उनका पाकिस्तान कहाँ पर है। मोदीजी किस गुजरात की अस्मिता पर किससे खतरा महसूस करते हैं। वे कहने लगते हैं कि वे केन्द्र सरकार को टैक्स देना बन्द कर देंगे, जैसे गुजरात देश से बाहर हो। उन्हीं की तर्ज पर बिगड़े मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री अपना स्वर्णिम मध्य प्रदेश अलग बना कर उसका अलग से मध्य प्रदेश गान बनवा लेते हैं। अपने पार्टी हित में देश को छोटे छोटे राज्यों में तोड़े जाने की हिमायती यही पार्टी राष्ट्रभक्ति का लबादा ओढे फिरती है। छोटे राज्यों में सामान्य तौर पर बहुमत क्षीण होता है जिससे कुछ ही विधायक खरीदने पर सरकार बनाने का मौका मिल जाता है। एक बार सरकार बनाने का मौका मिल जाये तो मधु कौड़ा बनते देर नहीं लगती, सब वसूल हो जाता है।
      नरेन्द्र भाई दामोदरदास मोदीजी ने सद्भावना के लिए उपवास करने का तब सोचा जब सद्भावना के सामने कोई बड़ा खतरा नहीं था। गान्धी जयंती के दिन एक तथाकथित गान्धीवादी नेता गान्धी की मूर्ति के नीचे मगरमच्छी आंसू बहाते हुए कह रहे थे, बापू आप क्यों चले गये, हम अनाथ हो गये हैं............. वगैरह वगैरह। बापू को उनके आंसू देख कर दया आ गयी और वे मूर्ति में से प्रकट हो कर बोले बेटे मैं आ गया हूं। गान्धी को देख कर नेता सकते में आ गया और उसने जेब से पिस्तौल निकाल कर पूरी छह गोलियां गान्धी के सीने में उतार दीं।
      मोदी की सद्भावना भी ऐसी ही आभासी थी। टोपी पहिनाने वाले को गलतफहमी हो गयी थी सो मोदी ने सुधार दी। भोले भाले लोग जीवन और अभिनय में फर्क ही नहीं समझते।
वीरेन्द्र जैन
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