बुधवार, जून 27, 2012

व्यंग्य- राष्ट्रपति पद प्रत्याशी की तलाश


व्यंग्य
राष्ट्रपति पद प्रत्याशी की तलाश
वीरेन्द्र जैन
       पुराने जमाने की कई कहानियों में आता है कि जब किसी राज्य के राजा का निधन हो जाता और उसका कोई उत्तराधिकारी नहीं होता था तो मंत्रिपरिषद यह तय करती थी कि प्रातः जो भी व्यक्ति सबसे पहले नगर के मुख्य द्वार से प्रवेश करेगा उसे ही हम अपना राजा मान लेंगे। राजा के चुनाव की इस विधि में कई मुंगेरीलालों की किस्मत खुल जाती थी और पूरा राज्य कहानियों के उत्पादन का बड़ा केन्द्र बन जाता था। इन कहानियों को सुन सुन कर हम सोचा करते थे कि हाय हम न हुए वो पहले आदमी जो उस नगर में प्रवेश कर पाये। हमारे देश में भी पुरातन काल से अटूट प्रेम करने वाली एक राजनीतिक पार्टी है जो इसी फार्मूले से राष्ट्राध्यक्ष का चुनाव करने में भरोसा करती है। उसके पास भले ही राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने वाला कोई नेता न हो पर वह किसी न किसी को चुनाव जरूर लड़वाना चाहती है, और प्रत्याशी का चुनाव लगभग इसी तरह करना चाहती है।
       इसी तलाश में वे राम भरोसे के पास भी आये थे और उससे राष्ट्रपति पद प्रत्याशी बनने की विनय करने लगे थे पर रामभरोसे ने साफ मना कर दिया।
        मैंने पूछा कि भाई क्यों नहीं बने तो बोला मुझे खाना बनाना नहीं आता
        मैंने कहा कि भाई वहाँ खाना बनाने की कोई बात नहीं राष्ट्रपति भवन में बहुत सारे रसोइए होते हैं, और फिर यह तो दूसरी पार्टी है यहाँ खाना बनाना जरूरी नहीं यह बम बनाने वाले को भी राष्ट्रपति पद प्रत्याशी बना सकती है।
       तो फिर बम बनाने वाले ने क्यों मना कर दिया? उसने प्रति प्रश्न किया।
      
अरे भाई उन्होंने मना नहीं किया अपितु समझदारी से काम लिया कि जब जीतना ही नहीं है तो एनडीए के विस्तार की सम्भावनाओं के लिए क्यों अपनी इज्जत का कचरा करवाया जाये। इसके बाद ही वे दूसरे उम्मीदवार की तलाश में भटकने लगे और तुम्हारे पास इसलिए आये क्योंकि तुम्हें इज्जत का कोई खतरा नहीं है, वह पहले ही मिट्टी में मिल चुकी है, और तब से ही मिट्टी अपनी इज्जत की चिंता कर रही है मैंने उसे समझाया।  
       पर मेरे साथ समस्या दूसरी थी वह फुसफुसा कर बोला तो मुझे एक्सक्लूजिव स्टोरी सुनते पत्रकार की तरह सतर्क हो जाना पड़ा।
                “वह क्या  समस्या थी? मैंने भी फुसफुसा कर पूछा।
       बात यह है कि मुझे सर्दियों से बहुत डर लगता है और राष्ट्रपति को 26 जनवरी जैसी कड़कड़ाती सर्दी में परेड की सलामी लेनी पड़ती है। इतनी ठंड में सलामी लेना मेरे बस की बात नहीं है, सो मैंने कह दिया कि मुसद्दी लाल को बना दो मुझे नहीं बनना। उसने राज जाहिर किया।
      
पर मुसद्दी लाल को क्यों? मैंने पूछा
      
मैं उससे बदला लेना चाहता हूं उसने वैसे ही फुसफुसा कर कहा। और उसके बाद वे चले गये
       इसके बाद वे कई और जगह भी गये होंगे पर कहीं बात नहीं बनी। एक विवादीलाल से तो उन्होंने कहा कि हम आपको एनडीए की ओर से प्रत्याशी बनाना चाहते हैं तो उसने पूछ लिया कि एनडीए में कौन कौन है। जब उन्होंने अपनी पार्टी के साथ जनता दल [यू], शिव सेना, अकाली दल, आदि का नाम लिया तो उसने एक बुन्देली कहानी ही सुना दी। कहानी कुछ इस प्रकार थी-
       एक बार एक कवि ने जब सब कुछ बेच खाया पर उसकी कविताएं नहीं बिकीं तो घर का आखिरी आइटम बेचने निकला जो कि चारपाई का एक पाया था। अतिरंजना के अभ्यस्त उस कवि ने गलियों में यह कहते हुए आवाज लगायी- 
खाट लो खाट,
सियरा नईंयां, पाटी नईंयां,
बीच का झकझोल नईंयां,
 चार में से तीन नईंयां
खाट लो खाट, खाट लो खाट
जाहिर है कि उसके बाद वे मुसद्दी लाल के यहाँ से भी चले आये क्योंकि उनके साथ भी कुछ कुछ ऐसी ही हालत थी।
       राष्ट्रपति के लिए सहमति बनाने निकले थे, वह तो नहीं बनी, प्रधानमंत्री का सवाल अलग से गले में हड्डी की तरह पड़ गया। नमाज छुड़ाने चले थे रोजे गले पड़ गये।
       फिर संयोग से उन्हें एक बना बनाया प्रत्याशी मिल गया जो प्रस्तावक, समर्थक तलाशे बिना पहले से ही अपने गले में माला डाले फिर रहा था। उसके घर के वोट ने साथ नहीं दिया था, उसकी पार्टी ने साथ नहीं दिया था पर वह प्रत्याशी बना घूम रहा था, सो उन्होंने सोचा कि चलो इसको ही समर्थन दे दो। ईसाई है तो क्या हुआ, नहीं करेंगे कुछ दिनों तक चर्चों पर हमले, नहीं जलायेंगे कुछ पादरियों को उनके मासूम बच्चों सहित जीप में, नहीं करेंगे धर्मांतरण के नाम पर ननों की हत्या कुछ दिन तक , पर लोग ये तो नहीं कह पायेंगे कि 2014 में सरकार बनाने के ख्वाब देख रहे थे एक ठो राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी भी नहीं तलाश पाये।
       वह तो टिका दिया पर अभी उपराष्ट्रपति का चुनाव बाकी है।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा सिनेमा के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मोबाइल 9425674629
    

शनिवार, जून 16, 2012

व्यंग्य- नये नामकरण करने वाले


व्यंग्य
नये नामकरण करने वाले
वीरेन्द्र जैन
       घर में पंडाल सजा हुआ था तथा अपने सबसे अच्छे समझे जाने वाले कपड़े पहिने लोग इधर से उधर हो रहे थे [फिर भी कहीं नहीं पहुँच पा रहे थे, गोया लोग न होकर मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए के सरकार हो]। बात यह थी कि घर में एक आयोजन था जिसे नामकरण संस्कार के नाम से जाना जाता है। अगर शेक्सपियर भी हिन्दुस्तानी होता तो वो भी ये नहीं कहता कि ‘नाम में क्या रखा है’। अरे भाई नाम में और कुछ रखा हो या न रखा हो कम से कम नामकरण संस्कार तो रखा ही है जिसमें सुन्दर स्वादिष्ट भोजन मिष्ठान्न के अलावा पण्डित को भरपूर दक्षिणा का सुख तो रखा ही है।
       मध्य प्रदेश में तो आजकल इसका महत्व बहुत ही बढ गया है। दर असल मध्य प्रदेश में अच्छे पंडित नहीं पाये जाते थे इसलिए प्रदेश की सरकार ने एक बिहारी पंडित का आयात कर लिया जो यहाँ के नासमझों को समझा रहा है कि नामकरण कैसे किया जाता है। उसने न केवल योजनाओं के ही नाम बदलवा दिये अपितु व्यक्तियों के नाम बदलवाने पर भी उतारू हो गया है। लाड़लीलक्ष्मी, कन्यादान, जलाभिषेक, बलराम योजना, से वही काम हो सकता है जो शिक्षा में सरस्वती शिशु मन्दिर के प्रवेश से हो सकता है, अर्थात शिक्षा का साम्प्रदायीकरण। उजाड़ मस्ज़िद को मन्दिर बनाने के पीछे धार्मिक कारण थोड़े ही होते हैं वो तो इसलिए किये जाते हैं ताकि अलग अलग समुदाय के लोग आपस में लड़ने लगें। रही मन्दिर की सो हजारों मन्दिर उजाड़ पड़े हैं जिनमें कोई दिया भी नहीं जलाता। इस बिहारी पंडित ने नामकरण के सिलसिले में नया शगूफा यह छोड़ा है कि उसने प्रदेश की राजधानी भोपाल नगर की प्रथम नागरिक अर्थात मेयर श्रीमती कृष्णा गौर से शुरुआत की है और उनका नाम कृष्णा गौर से कृष्णा यादव गौर कर दिया है। मजे की बात यह है यह काम उस राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक रहे व्यक्ति ने किया है जिसका दावा है कि वे जातिवाद का विरोध करने के लिए व्यक्तियों को उसके जातिसूचक उपनाम से पुकारे जाने की जगह उसके प्रथम नाम से पुकारते हैं जैसे के अटल बिहारी वाजपेयी को वाजपेयी जी न कह कर अटलजी कहते हैं। पर जबसे संघ मोदी के चरणों में शरणागत हुआ है तब से उसके अनुशासन का कचूमर बन गया है। इसलिए यह उम्मीद करना कि नामकरण पुराने तरीके से होगा, एक कोरी कल्पना से अधिक कुछ नहीं है।
       मैं सोचता हूं कि यह परम्परा और आगे बढेगी और इसका जो स्वरूप बनेगा वो कुछ कुछ निम्न प्रकार ही होगा- 
·         सुन्दरलाल पटवा का नाम सुन्दरलाल जैन पटवा हो जायेगा
·         शिवराज सिंह चौहान का नाम शिवराज सिंह कुर्मी चौहान हो जायेगा
·         ईश्वरदास रोहाणी का नाम ईश्वरदास सिन्धी रोहाणी हो जायेगा
·         बाबूलाल गौर का नाम बाबूलाल यादव गौर हो जायेगा
·         उमा शंकर गुप्ता का नाम उमाशंकर वैश्य गुप्ता हो जायेगा
·         कैलाश विजयवर्गीय का नाम कैलाश ब्राम्हण विजयवर्गीय हो जायेगा
·         सरताज सिंह का नाम सरताज सरदार सिंह हो सकता है
पर इस बिहारी पंडित को पिछड़ों व दलितों के नामकरण में बड़ी दिक्कतें आ सकती हैं। दलित उत्पीड़न का आरोप लगेगा तो जमानत तक नहीं होगी। जिन महिलाओं ने अंतर्जातीय विवाह के बाद अपना नाम नहीं बदला है उनके नाम में परेशानियां आयेंगीं। उमा भारती जैसी साध्वियाँ जो जब साध्वी के चोले में प्रगट होती हैं तो ‘जाति न पूछो साधु की’ वाला रूप रखती हैं किंतु जब चुनाव में खड़ी होती हैं तो लोधी हो जाती हैं, पता नहीं उनके साथ क्या होगा!
  रामलीला पार्टी को कुछ न कुछ स्वांग भरते रहना होता है, अगर इस में न उलझाये तो लोग पानी सड़क बिजली की बात करने लगते हैं।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
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व्यंग्य- कारन कवन नाथ मोहि मारा


व्यंग्य
कारन कवन नाथ मोहि मारा
वीरेन्द्र जैन
       संजय जोशी निकाल बाहर किये गये। और यह मामला गुपचुप नहीं हुआ, अपितु भरी सभा में हुआ। भीष्म, गुरुद्रोण बगैरह बगैरह सब देखते रह गये और द्रोपदी का चीर हरण हो गया। द्रोपदी का चीर तो कृष्ण ने बढा दिया था पर इस महाभारत की लीला में तो कोई लीलाधर सामने नहीं आया। जिन्होंने संजय जोशी को अन्दर किया था वे ही उसे आया है सो जायेगा, राजा, रंक, फकीर की तरह बाहर जाते देखते रहे। गालिब चचा कह गये हैं कि-
निकलना खल्द से आदम का सुनते आये थे लेकिन
बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले
पर वहाँ एक कूचे के बाद दूसरी गलियाँ तो मिलती हैं, यहाँ तो जहाँ जहाँ गये वहाँ वहाँ से निकाले गये, मुम्बई से लखनऊ जाने के रास्ते को भी तय करने की कोशिश की गयी कि वो गुजरात से होकर न हो। हवा में गन्ध तक न पहुँचे। तानाशाह की शान में गुस्ताखी न पड़े। ऐसा हुआ भी पर जहाँ भेजा वहाँ भी नहीं रहने दिया गया। वहाँ से भी निकलना पड़ा। चल उड़ जा रे पंछी कि अब ये देश हुआ बेगाना। कश्मीरी पंडित तो राज्य के एक हिस्से को छोड़ कर दूसरे हिस्से में रह रहे हैं, उस पर इतनी हाय तोबा है कि सरकार को इन विस्थापित नागरिकों को गत दो दशक से  प्रतिमाह आर्थिक मदद दे रही है जो चार हजार रुपये प्रतिमाह, नौ किलो गेंहूँ, दो किलो चावल, और एक किलो चीनी तक सीमित है। धरती की जन्नत छोड़कर आने वालों को दस गुणा बारह का टीन की छत वाला एक आश्रय उपलब्ध कराया गया है। पर संजय जोशी को तो वह भी नहीं मिला। कश्मीरी पंडितों के लिए स्यापा करने वाले तो बहुत सारे रुदाले हैं पर संजय जोशी के लिए कोई आंसू नहीं बहा रहा कि कहीं मोदी न देख ले। अब वे घर के रहे न घाट के। जिन शिवराज सिंह चौहान का राजतिलक करवाया था वे भी मुँह में दही जमा कर बैठे रहे। जिन उमाभारती के साथ पार्टी में अन्दर किया गया था वे भी ध्यानमग्न हो गयीं।
       जो अपने साथी पर हुए अन्याय के खिलाफ आवाज नहीं उठा सके वे कहते हैं कि हम जनता के साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ आवाज उठाएंगे। गर्वीले गुजरात ने मराठा साम्राज्य ध्वस्त कर दिया। अध्यक्ष ने विशेष अधिकार से सम्मेलन गुजरात में नहीं होने दिया था और अपने महाराष्ट्र में आयोजित किया, पर फिर भी चली गुजरात की।
       वैसे भाजपा में ये तो चलता ही रहता है,  यह तो मौल्लिचन्द्र शर्मा के समय से चला आ रहा है, बलराज मधोक ने तो बड़ों बड़ों के खिलाफ किताबें लिख मारी थीं पर दुर्भाग्य कि वे ब्रेल लिपि में नहीं थी और जिनकी दृष्टि बाँध दी गयी हो उन्हें क्या दिखता है? कल्याण सिंह का तो पता है, पर आज मदनलाल खुराना कहाँ हैं, उमाभारती भाजपा में तो चुहिया बनकर वापिस घुस गयीं पर उनके गुरू गोबिन्दाचार्य तो भटक भटक कर रामदेव को भजने को विवश हो गये हैं। थिंक टैंक से सड़ाँध आने लगी है। उमा भारती का भी मध्यप्रदेश निकाला हो गया है, खबरदार जो मध्यप्रदेश की धरती पर झांका। दूर से ही गाती रहो, ‘ये मेरे प्यारे वतन, ये मेरे उजड़े चमन, तुझ पर दिल कुर्बान’। अपने बीमार भाई और देव दर्शन का बहाना बना कर आना पड़ता है तब भी सरकारी सीआईडी सक्रिय रहती है।
       रामचरित मानस में बाली राम से पूछता है – मैं बैरी, सुग्रीव पियारा, कारन कवन नाथ मोहि मारा। बेचारे संजय जोशी तो यह भी नहीं पूछ पा रहे हैं। जिस मध्यप्रदेश की पुलिस से सीडी के बारे में क्लीनचिट मिली थी कहीं फिर से दबाव में आकर वही पुलिस ये न कह दे कि सीडी तो सही थी। ऐसी सीडियाँ आत्मा की तरह होती हैं जो कभी नष्ट नहीं होती भले ही उसके पात्रों को क्लीनचिट मिल गयी हो। जब क्लीनचिट मिलने के बाद भी बनवास झेलना पड़ा था तो दुबारा सीडी खुलने के बाद तो न जाने क्या होगा।
      
भले ही झूठी सही पर सवाल तो यह है कि सीडी बनवाई किसने थी और जिस सीडी को पार्टी की ही एक सरकार फर्जी बता रही है उस फर्जी काम को करवाने का सन्देही सबके सिर पर बैठ गया है। संस्कृत के एक श्लोक में कहा गया है कि जिसके पास पैसा है वही मनुष्य़ कुलीन है, वही विद्वान है, वही पंडित है, वही श्रोता है, वही गुणी है, वही सुदर्शनीय है, सारे के सारे गुण सोने में बसते हैं. [सर्वे गुणः कांचनं आसवंते]। गुजरात में आने वाली परियोजनाओं में पैसा ही पैसा है जनवरी, 2011 में महात्मा (गांधी) मंदिर में गुजरात के मुख्य मंत्री नरेंद्र मोदी ने 100 देशों से आये 10,000 अंतर्राष्ट्रीय कारोबारियों के सम्मेलन की अध्यक्षता की थी। मीडिया की रिपोर्टों के अनुसार उन्होंने गुजरात में 45,000 करोड़ डॉलर निवेश करने का वादा किया है। इसलिए भाजपा गुजरात को कबीर के हीरा पायो गाँठ, गठियाओ की तरह छोड़ना नहीं चाहती चाहे कुछ भी हो जाये इसलिए सारे गुण आजकल मोदी में बसते हैं, जिनके लिए संजय जोशी तो क्या अडवाणी तक को हकाला जा सकता है। नेतृत्व की हालत यह हो गयी है कि सौ सौ जूते खाँय, तमाशा घुस के देखेंगे। अडवाणीजी, प्रधानमंत्री बनें न बनें पर ब्लाग लेखक तो बन ही जायेंगे, ब्लागर्स की ओर से स्वागत है अडवाणीजी।
वीरेन्द्र जैन
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