शुक्रवार, जुलाई 27, 2012

व्यंग्य- चमत्कार जो नहीं हुआ


व्यंग्य
                                   चमत्कार जो नहीं हुआ
                                                                              वीरेन्द्र जैन
चचा का एक शे’र है,  हाँ यार चचा माने चचा ग़ालिब -
हमने सोचा था कि ग़ालिब के उड़ेंगे पुर्जे
देखने हम भी गये थे, पै तमाशा न हुआ
इसी तर्ज पर पीए संगमा साब पर भरोसा करके अपुन सोच रहे थे कि राष्ट्रपति चुनाव में चमत्कार होगा, पर नहीं हुआ। राष्ट्रपति चुने जाने के लिए वे जिस तरह से गले में ढोल टांग कर नाचे और जगह जगह जाकर भाजपाइयों से बड़े बड़े सिन्दूरी टीके लगवाये उससे कई लोग उनकी बात का भरोसा करने लगते थे कि कहीं हो ही न जाये चमत्कार। पर नहीं हुआ। प्रणव मुखर्जी साब ने कहा था कि उन्हें चमत्कारों पर भरोसा नहीं है और वे सही साबित हुए और गणित के हिसाब से जीत गये जिसमें दो और दो चार ही होते हैं। भाजपाई के अफवाह फैलाऊ दस्ते तो सोशल मीडिया पै सक्रिय ही हो गये थे कि सोनिया गान्धी ने इन्दिरा गान्धी की तरह ट्रिक चली है और फार्म किसी का भरा है और जितवा किसी को देंगीं जिससे एक ईसाई राष्ट्रपति बन सके व प्रणव दादा से राजीव के सामने प्रधानमंत्री बनने की जुर्रत का बदला ले सकें। पर इन अफवाहों के झांसे में कोई नहीं आया।
       पर ठहरिए! अगर आप इसे चमत्कार मानें तो एक चमत्कार अवश्य हुआ कि इस देश की जनता को पता चल गया कि वोट माँगना और वोट देना दो अलग अलग बातें हैं। जनता से वोट माँगने वालों को वोट देना नहीं आता। इस देश के भाग्यविधाता जिनके वोट से हमारे लिए कानून बनते हैं उनमें से 15 सांसदों और 49 विधायकों ने उस मतपत्र पर भी गलती की जिसमें कुल दो ही उम्मीदवार थे, जो किसी भी चुनाव की न्यूनतम संख्या होती है। रक्षामंत्री पद के एक आकांक्षी ने तो पहले दूसरे को वोट दे दिया फिर मतपत्र को ही फाड़ डाला। इस चमत्कार में राज्य विशेष से कोई फर्क नहीं पड़ा। संघ के शब्दों में कहें तो अटक से कटक तक और हिमालय से कन्या कुमारी तक सारा भारत एक है। आन्ध्र प्रदेश में पाँच वोटों ने चमत्कार किया, अरुणाचल में तीन ने, असम में दो ने बिहार में तीन ने, छत्तीसगढ में एक ने, हरियाणा में आठ ने, हिमाचल में एक ने जम्मूकश्मीर में दो ने, झारखण्ड में एक ने, कर्नाटक में तीन ने, केरल में एक ने, हमारे स्वर्णिम मध्यप्रदेश में चार ने, मणिपुर में एक ने, मेघालय में दो ने, मिज़ोरम में एक ने, नगालेंड में दो ने, पंजाब में दो ने, सिक्किम में दो ने, तामिलनाडु में चार ने, चमत्कार किया। मैंने बड़ी कोशिश की कि इन गौरवशाली जनप्रतिनिधियों की पार्टी और उनके शुभ नाम पता चल जाएं पर अभी तक सफल नहीं हुआ हूं। पीए संगमा साब को जरूर इन लोगों का सम्मान करना चाहिए, जिन्होंने चमत्कार कर के उनके वचनों की लाज रख ली। यह जरूर पता चल गया कि इन लोगों की आत्मा आवाज नहीं करती, या कम से कम उनके पक्ष में तो नहीं ही करती, जिसे उन्होंने बार बार आवाज दी थी।
       जब से खनन मास्टर येदुरप्पा साब ने भाजपा हाईकमान को तिगड़ी का नाच नचा कर अपने दूसरे पट्ठे को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा दिया है तबसे वे राष्ट्रीय स्तर से कम का सोचते ही नहीं हैं। उन्होंने भी लगे हाथ पीए संगमा साब को सलाह दे डाली है राष्ट्रपति चुनाव के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाकर अपनी और दुर्गति न कराएं। उल्लेखनीय यह भी है कि उनके कर्नाटक में ही 14 भाजपा विधायकों ने पार्टी लाइन से अलग जाकर प्रणव मुखर्जी साब को महामहिम बनने के लिए वोट दिया। बहुत सम्भव है कि इन 14 में येदुरप्पा साब खुद भी शामिल हों, भले ही वे इंकार कर रहे हैं। इंकार तो उन्होंने पहले भी बहुत सारे आरोपों का किया था। मेरे एक मित्र बीमार होने से बहुत डरते हैं। उनके इस डर में बीमारी की तकलीफों से ज्यादा उन बेबकूफ दोस्तों की सलाहों का डर ज्यादा होता है, जिनमें से कोई भी अपनी सलाह देने से पीछे नहीं रहना चाहता।
       मुसीबत जसवंत सिंह की है जिनके पीछे आरएसएस लाइफबाय से हाथ धोकर पड़ा है। वे भाजपाइयों में सबसे शिष्ट शालीन और वरिष्ठ दिखते हैं पर शाखा से नहीं फौज से निकले हैं इसलिए संघ चाहता है कि वे किसी भी तरह पीछा छोड़ें। पर वे उस दिल की तरह हो गये हैं जो मानता ही नहीं। जब कन्धार में अपह्रत विमान छुड़वाने के लिए जाने की बात आयी तो भारत माँ के श्री चरणों में बलि बलि जाने वाले नेकरधारी सब पीछे हट गये, और जसवंत सिंह को ही आतंकियों के साथ भेजा गया। गोरखालेंड आन्दोलनकारियों से सौदे में खरीदी सीट से जब बंगाल में चुनाव लड़ने की बात सामने आयी तो फिर जसवंत सिंह को ये सोच कर आगे कर दिया गया कि जीते तो जीत भाजपा की और हारे तो जसवंत सिंह से छुट्टी मिली। सन्योग से वे प्रह्लाद की तरह जीत भी गये और बंगाल में भाजपा से सांसद चुने जाने का इतिहास बनाया। राजस्थान से किसी भी सम्भावनाशील नेता को दूर रखने के काम में प्राण प्रण से जुटी वसुन्धरा राजे ने उन पर नारकोटिक्स नियमों का उल्लंघन करने का मुकदमा लदवा दिया। जब लोकसभा में संसदीय दल का नेता चुनने का सवाल आया तो उन्हें ज़िन्ना पर पुस्तक लिखने के आरोप में पार्टी से ही बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। तब उनने अटल बिहारी के दफ्तर में अमेरिकी एजेंट होने से लेकर गुजरात नरसंहार के समय स्तीफा देने तक के कई राज खोलने शुरू किये तो उन्हें वापिस पार्टी में ले लिया गया। अब जब उपराष्ट्रपति पद पर जीत की कोई सम्भावना नहीं है तब उन्हें तिलक लगा कर माला पहिना कर आगे कर दिया गया और पीछे से उनके संघर्ष करने पर साथ देने वाले नारे लग रहे हैं। जब वे कह रहे हैं कि उपराष्ट्रपति का पद विपक्ष को मिलना चाहिए तो उन्हें जबाब मिल रहा है कि यह बात तो राष्ट्रपति के चुनाव के समय उनकी पार्टी को सोचना चाहिए थी।
       गनीमत है कि उन्होंने भाजपा में रहते हुए भी अभी तक किसी चमत्कार की बात नहीं की है। और यह भी कोई कम चमत्कार थोड़े ही है।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
अप्सरा सिनेमा के पास भोपाल [म.प्र.] 462023
मोबाइल 9425674629
             

शुक्रवार, जुलाई 13, 2012

व्यंग्य- बलात्कार प्रधान देश


व्यंग्य
                बलात्कार प्रधान देश
                                                                                    वीरेन्द्र जैन
       आखिर ये मुँह ही तो थक चुका था यह कहते कहते कि भारत एक कृषि प्रधान देश है ,भारत एक कृषि प्रधान देश है। इस वाक्य को मंत्र की तरह बार बार, बार बार दुहराना होता था। लेखों में तो, भाषणों में तो, सभी जगह कृषि प्रधान देश था भारत। किसान सूखे से तबाह हो जाता था, बाढ में चौपट हो जाता था, फसल पर पाला पड़ जाता था, खलिहान में आग लग जाती थी, बेमौसम की बरसात किये कराये पर पानी फेर देती थी, पर देश कृषि प्रधान ही बना रहता। हम इसे अपनी मौलिक सोच की तरह कहते थे तो पता चलता था कि ये तो नकल है और जब दूसरे भी यही दुहराते तो ऐसा लगता था जैसे कि मेरी नकल कर रहे हों । झल्लाहट होती थी यह सुन सुन कर कि कौन किसकी नकल कर रहा है- मातृवत परदारेषु जैसा मामला था कि हमारी बीबी तुम्हारी माता, तुम्हारी बीबी हमारी माता पता नहीं कि हम तुम्हारे बाप या तुम हमारे।      
       आजादी आने के बाद भी लम्बे समय तक देश कृषि प्रधान ही बना रहा, यहाँ तक कि शर्म आने लगी कि यह  अभी तक कृषि प्रधान ही बना हुआ है। दूसरे देश कहाँ से कहाँ तक की प्रधानी पर पहुँच गये और एक हम हैं कि अभी तक वहीं के वहीं डले हुए हैं। बगल वाला पाकिस्तान तक आतंक प्रधान देश बन गया पर हम कुछ नहीं कर सके।
हम से क्या हो सका मुहब्बत में,                                                                 तुमने तो खैर बेबफाई की
       अब लगता है कि माहौल कुछ कुछ बदल रहा है, देश कई दिशाओं में प्रधानता की ओर बढ रहा है। भ्रष्टाचार में शायद ही किसी एकाध देश से पीछे होगा पर यह तो कह ही सकते हैं कि भारत एक बलात्कार प्रधान देश है। हालात यह हो गये हैं कि अगर देश में बलात्कार बन्द हो जायें तो बेचारे अखबारों का क्या होगा वे कब तक और कहाँ तक लौकी के पकौड़े और बरसात में स्वस्थ कैसे रहें छापते रहेंगे। पूरे अखबार में कम से कम एकाध दो बलात्कार तो चाहिए ही चाहिए। इस कमी को पूरा करने के लिए हमने एक पूरी कौम पैदा कर ली है। हमारे देश में तीसरे खंभे के नाम से जाने जाने वाले लम्पट दलों के छुटभैए नेताओं और नवधनाड्यों के नौजवानों की कृपा से देश का चौथा खम्भा बचा हुआ है और समाचार पत्र पत्रिकाओं से लेकर सत्य कथाएं तक दूधों नहा कर पूतों फल रही हैं।
       बलात्कारों ने पूरे देश को राष्ट्रीय एकता के सूत्र में बाँधने में अपूर्व योगदान दिया है। आदमी चाहे असमी बोलता हो या तामिल, गुजराती बोलने वाला हो या पंजाबी बोलने वाला कोलकते का हो या काझीकोड का अपनी भाषा के अपने अखबार के लोकल पेज पर बलात्कार की खबर जरूर पढता है। हिमालय से कन्या कुमारी तक और अटक से कटक तक पूरा भारत एक है। हमारे द्वारा प्यार से ‘सुरक्षित’ रखे गये कश्मीर से लेकर पीओके अर्थात पाकिस्तान ओक्यूपाइड कश्मीर तक इन खबरों में समानता बनी हुयी है। न जाति का भेद है न धर्म का, सवर्णों से लेकर दलित तक, और शैव, शाक्त, वैष्णव, मुस्लिम, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी, बिना किसी भेद भाव के समाज में धर्मनिरपेक्षता का वातावरण बनाने के लिए बलात्कार कर रहे हैं।
       इस देश और समाज की एकता के लिए चिंतित लोगों ने देश के चप्पे चप्पे को बलात्कारमयी बनाने की कोशिश की है और वे इसमें असफल भी नहीं कहे जा सकते हैं। कृषि प्रधान देश के खेत और घर तो इसके लिए परम्परा से ही सबसे प्रिय जगह रही है पर अब तो स्कूलों में, कालेजों में, पार्कों में, आश्रमों में, पूजा स्थलों में, प्रार्थना स्थलों में, अस्पतालों में, कार्यालयों में, गलियारों में, यहाँ तक कि शौचालयों तक में इन खबरों के कार्यक्रम स्थल बन रहे हैं। गतिमान दशा में पहले यह काम यदा कदा ट्रेनों के कूपों में हुआ सुना जाता था पर वाहनों के विकास ने इसे गति के साथ जोड़ दिया जाता है। एकाध सप्ताह ही बीतता है कि राम भरोसे कहने लगता है कि बहुत दिन हो गये चलती कार में बलात्कार के समाचार नहीं आ रहे हैं कहीं पैट्रोल की मँहगाई का असर तो नहीं है। दो दिन बाद ही पैट्रोल के दाम एक रुपया सत्तर पैसे सस्ते होने और चलती सफारी में मंत्रीजी के भतीजे और गैंग द्वारा रास्ते से उठायी गयी लड़की से बलात्कार की खबर एक साथ आ जाती है, भले ही पैट्रोल के एक रुपए सत्तर पैसे सस्ता होने से उसका कोई सम्बन्ध नहीं हो। सहकारी आन्दोलन अगर कहीं सफल होता नजर आ रहा है तो वह यही क्षेत्र है। ‘गैंग रेप’ शब्द को हिन्दी के शब्दकोष में सम्मलित किये जाने पर विचार चल रहा है। लगता है कि ट्रैनों, बसों, कारों, जीपों, के निरंतर आरामदायक बनाये जाने के विज्ञापन इस को प्रोत्साहित करने के लिए ही दिये जाते हैं। हमारे मध्य प्रदेश में [मेरा मतलब राज्य से ही है] तो गत दिनों एक सरकारी एम्बुलेंस वाले ने एक महिला मरीज की रास्ते में ही प्राकृतिक चिकित्सा कर देने के समाचार प्राप्त हुए हैं।
       अस्पतालों में डाक्टर इसी ओवरटाइम में लगे सुने जाते हैं, तो थानों में पुलिस अधिकारी, कालेजों में प्रोफेसर, या जहाँ जो काम करता है वहाँ ओवर टाइम कर रहा है। व्यापारिक कार्यालयों और गैर सरकारी कार्यालय के अधिकारी इस मामले में कोई भेद नहीं मानते। साहब के देर होते ही उनकी पत्नियों के दिमागों में एक ब्लू फिल्म के साथ हथकड़ी लगे जेल ले जाये जाते हुए दृष्य कौंधने लगते है और वेतन के साथ उससे चौगुनी ऊपरी कमाई पर संकट आने के दौरे पड़ने लगते हैं। सेना के कई अधिकारी तक यह मानने लगे हैं कि उनका काम विदेशी हमलावरों से रक्षा करना है और देश तो अपने परिवार की तरह है।
       हमारे पुराणों में तो यदा कदा कोई इन्द्र किसी गौतम ऋषि के घर में कूदता होगा पर आज के इस पवित्र पावन विश्वगुरु देश में सभी इन्द्र होते जा रहे हैं। मन्दिर मस्ज़िद के नाम पर धर्म की रक्षा करने वाले तक अपने धर्म का झंडा उठाये हुए दूसरे धर्मों की महिलाओं से बलात्कार करने को पुण्य का काम मानते हैं और ज़न्नत में अपनी जगह पक्की करवाने में लगे हैं। अगर इतने और ऐसे लोग स्वर्गवासी हो जायेंगे तो या खुदा, स्वर्ग के अपने चरित्र का क्या होगा?
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन रोड
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