व्यंग्य
झूठ बोलती प्रार्थनाएं
वीरेन्द्र जैन
भक्त आरती गा रहा है-
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा
अन्धन खों आंख देत, कोढिन को काया
बांझन खों पुत्र देत निर्धन को माया।
ऐसा लगता है जैसे गणेश जी ने आरती लिखने के लिए किसी
राजनीतिक दल के घोषणा पत्र लिखने वाले को अनुबंधित करा दिया हो और वह लिख रहा हो कि
प्रतिवर्ष एक करोड़ लोगों को रोजगार दिया जायेगा
तथा प्रत्येक गांव में पीने को पानी की सुचारू
व्यवस्था की जावेगी, सारे गांवों को सड़कों से जोड़ने
में करोडों रूपये लगाये जायेगें व उन पर प्रधानमंत्री के फोटो सहित होर्डिग लगाये जायेगे, विकलांगों को आरक्षित कोटे का बैकलाग भरा जायेगा आदि। यनि जिसके
पास जो कमी है वह पूरी किये जाने का लालच जगा के वोट झटक लो।
मैं एक अंधे को पिछले दस वर्ष से गणेश उत्सव में यही
आरती गाते देख रहा हूँ पर आंख की तो छोडिये उसकी छड़ी तक कोई चुरा कर ले गया पर उसने
गाना नहीं छोड़ा कि अन्धन खों आंख देत । गणेश जी यदि कोढ़ियों को काया देना शुरू कर दें
तो बहुत उत्तम होगा। वैसे मुझे या मेरे आस पास के किसी व्यक्ति को ऐसी कोई शिकायत नहीं
है पर मेरा एक दुश्मन ' एमड़ीटी ख़ाओं कुष्ठ मिटाओं करता हुआ कुष्ठ निवारण मिशन में नौकरी पर
लग गया है और गणेश जी कोढिन को काया दे दें तो उसकी नौकरी से छुट्टी हो जायेगी। पर
असल में ऐसा होता नहीं है कई बार तो आरती गाने
वालों को कुष्ठ होते तो देखा है पर आरती गा कर काया पाता हुआ कोई कोढ़ी नही मिला।
यदि लढुअन कौ भोग लगाने के बाद संत सेवा करते रहें तो
अंधन खों आंख देने की फुरसत किसे मिलेगी और क्यों मिलनी चाहिए। पत्नी पैर दबाती रहे तो आदमी को भी शेष नाग
पर लेटे हुये नींद आ जाये, देवताओं की तो बात ही और है। हमारे
देवता वैसे भी सोने के लिए मशहूर हैं और मूर्ख
जनता समझती है कि वे समाधि में हैं जिसमें केवल मुद्रा का फर्क होता है। चिड़िया तो पेड़ पै बैठे बैठे सो लेती है
और घोड़ा खड़े खड़े सो लेता है पर उसे तो हम नहीं
कहते कि वह समाधि में हैं। श्रद्वा ऐसी ही चीज होती है जो भोजन को भोग में और सोने को समाधि का सम्मान प्रदान करती है। वर्षाऋतु में
देवता सोते हैं तो फिर वर्षा बाद ही उठते हैं और उनके उठने वाले दिन देवोत्थान एकादशी
का त्यौहार मनाया जाता है। जिन्हें रोज सुबह सुबह
उठ कर काम पर जाना पड़ता है उनके लिए तो रोज ही एकादशी होती है। लम्बे सोने की
सुविधा देवताओं को ही प्राप्त है।
वैसे तो मेरे
मुहल्ले में कई गोबर गणेश मिल जाते हैं। मैं उनकी बात नही करता पर मुझे लगता है
कि देवताओं में भी एकाधिक गणेश हुये हैं। शायद
यही कारण है उनकी अलग पहचान बताने के लिए आरती गाने वालों ने आरती में ही उनकी बल्दियत बताना जरूरी समझा है।
वह कहता है कि - माता जा की पारवती,
पिता महादेवा - अर्थात आप किसी दूसरे गणेश की जय मत करने लग जाना,
असली यही हैं।
प्रार्थनाओं में अपने आराध्य की अतिरंजित स्तुति ही काफी
नहीं होती अपितु दूसरे देवताओं की छवि खराब
करना भी जरूरी समझा जाता है। कांग्रेस और भाजपा में भले ही एक ही पार्टी के सदस्य रहते हों पर गुट और नेता तो अलग अलग होते
हैं। हर गुट के सदस्य को अपने नेता की प्रशंसा और दूसरे गुट के नेता की निन्दा अनिवार्य होती है। तुलसीदास
ने भी ज्ञान गुण सागर हनुमान जी की हनुमान चालीसा में स्तुति करते हुए दूसरे देवताओं
की छवि भी अंकित करने की कोशिश की है। वे कहते है कि:-
और देवता चित्त न धरई
हनुमत वीर सदा सुख करई
अर्थात नेताओं की तरह दूसरे देवता तो ध्यान नहीं देते
पर हनुमत वीर सदा ही सुख करते हैं। रामचरित्र
मानस को स्वान्त: सुखाय घोषित करने वाले तुलसीदास
अपनी पुस्तक की विशेषताएं बताते हुए कहते है कि ' जो यह पढ़े हनुमान चालिसा होय सिद्व साकी
गौरी सा अर्थात रेपिडैक्स खरीदिये और सौ दिन
में अंग्रेजी सीखिये।
ऐलोपेथी के प्रचार में एक प्रार्थना ने बहुत सहायता की
है। मेरे एक एमबीबीएस मित्र अपने क्लीनिक में
जय जगदीश हरे की प्रार्थना का चार्ट भी अन्य चार्टो की तरह लटकाये हुऐ है जिनमें
शरीर को चीर फाड़ कर भीतरी अंग दर्शाये गये है। जब मैने उनसे कारण पूछा तो वे बोले यह
हमारी प्रचार नीति का मुख्य गीत है जिसमें भक्त जनन के संकट पल में दूर करने वाले हरे
जगदीश की स्तुति की गयी है। इस प्रार्थना के कारण
भक्त लम्बे समय वाली आयुर्वेदिक या होम्योपैथिक चिकित्सा पद्वति के चक्कर में
नहीं फंसता। वह संकट को पल में दूर करने वाली ऐलोपैथी के पास ही दौड़ा चला आता है। वो
जमाने लद गये जब भक्त को भरोसा था तथा वह मानता
था कि- कबहुं दीन दयाल के भनक परेगी कान। अब
तो वो आके कहता है कि डाक्टर साब आप दीन दयाल के कानों में मशीन फिट कर दो ताकि वे
जल्दी सुन लिया करें।
मैं अपने सफाई कर्मचारी देवीदयाल को कट्टर जैन मानता
हूँ क्योकि जब शाम को वह नगरपालिका इंसपेक्टर को गाली देता हुआ निकलता है उसी समय मेरी
पत्नी एक जैन प्रार्थना का कैसिट लगा कर भजन सुनती है जिसमें कहा गया है कि - मन में
हो सो वचन उचरियें, वचन होय सो तन सों करिये। इन्सपेक्टर
साहब की मॉ स्वर्गवासी हो चुकी हैं तथा बहिन कोई है नहीं अन्यथा बहुत सम्भव था कि वह
वचन को कर्म में परिवर्तित करने की कोशिश करता हुआ और सच्चा जैन
साबित होता। मै शाम को बाजार जा रहा होता हूँ तभी जैन भजन का वह भाग बजता है जिसमें कहा गया है कि ' संसार में विषबेल नारी
तज गये योगीश्वरा'। तब मैं पत्नी की ओर नही
देखता।
वीरेन्द्र जैन
2/1 शालीमार स्टर्लिंग रायसेन
रोड
अप्सरा टाकीज के पास भोपाल
मप्र
फोन 9425674629
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