शनिवार, दिसंबर 28, 2013

व्यंग्य - सत्य की अदालत में जीत

व्यंग्य
सत्य की अदालत में जीत
वीरेन्द्र जैन

किसी कवि ने कहा है कि-
सत्य अहिंसा दया धर्म से उनका बस इतना नाता है,
दीवालों पर लिख देते हैं दीवाली पर पुत जाता है
इसी तर्ज पर राष्ट्रीय स्तर पर हमारे यहाँ सरकारी संस्थाओं में ‘सत्यमेव जयते’ लिखा हुआ देखता रहा हूं। पर अभी अभी अदालत के एक फैसले के पक्ष में आने पर हिन्दू ह्रदय सम्राट ने ‘सत्यमेव जयते’ इस तरह व्यक्त किया जैसे कि सूरज के पूरब से निकलने की बात सुन रहे हों। रामभरोसे को तो उसी दिन सूरज के पूरब से निकलने पर सन्देह होने लगा। जब वह तेज भागता हुआ मेरे पास आया तो मैंने कहा कि भाई इतना तेज क्यों दौड़ रहे थे क्या कोई रेस जीतना है।
                “ जीतना ही पड़ेगी तब ही मेरा अस्तित्व सिद्ध हो पायेगा वह बोला।
                “क्या मतलब है तुम्हारा मैं समझा नहीं? मैंने अपने मुँह को सवालिया निशान में बदलते हुए पूछा।
                “ आदमी जीत कर ही सत्य सिद्ध हो सकता है जैसे अभी अभी वे अपनी अदालती जीत के बाद सत्य सिद्ध हुये, और उन्होंने गोआ से लौटकर सत्यमेव जयते कहा
                “ इसका मतलब दिल्ली में ‘आप’ के अरविन्द केजरीवाल सत्य हो गये है और मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान, हाँ छत्तीसगढ में जरूर कांग्रेस सत्य होते होते बच गयी पर मिज़ोरम में हो ही गयी
                “यही सवाल तो मुझे मथ रहा था इसलिए तो मैं भागता भागता आया हूं
                “कौन सा सवाल?
                “ यह कि अपने यहाँ अदालतों के कई स्तर हैं, और लोअर कोर्ट ने आरोपों के प्रमाणित न होने के आधार पर फैसला सुनाते हुये शिकायतकर्ता को आगे अपर कोर्ट में अपील करने का सुझाव दिया
       ‘हाँ, यह तो न्याय में व्यव्स्था है     
                “ पर मेरा सवाल यह है कि अगर अपर कोर्ट ने फैसले को बदल दिया तो सत्य बदल जायेगा, और उससे ऊपर के कोर्ट ने फिर बदल दिया तो फिर बदल जायेगा। अर्थात, सत्य अदालती फैसलों के सापेक्ष हो गया। इसी तरह पश्चिम बंगाल में पहले बाममोर्चा सत्य हुआ करता था और अब तृणमूल कांग्रेस सत्य है।
                “हाँ सत्य जब विजय से जुड़ेगा तो यही होगा मुझसे यही कहते बना।
                “ उसी तरह यूपी में पहले मायावती सत्य थीं और अब मुलायम अखिलेश और आज़म खान हो गये हैं, सत्य वोटों, गवाहों, सबूतों पर निर्भर हो गया है। सुनते थे कि सत्य ही ईश्वर है या ईश्वर ही सत्य है जिसे अब गवाह तय करेंगे। पर मुश्किल यह है कि पिछले दिनों एक सुप्रीम कोर्ट के जज ने कहा था कि हमारी न्यायव्यवस्था में तीस प्रतिशत जज भ्रष्ट हैं तो सत्य अर्थात ईश्वर भी इस बात से तय होगा कि आप न्यायधीश को कितना और कैसे संतुष्ट कर पाते हैं। जो अच्छा वकील कर लेंगे सत्य वही कहलायेंगे क्योंकि जीत उन्हें ही मिलेगी और अच्छे वकील के लिए मात्रा में अच्छे पैसे चाहिए। मतलब दरिद्र का नारायण होना सम्भव नहीं। जिसके पास लक्ष्मी है वही नारायण है।
       रामभरोसे मुझे उलझा देता है और मैं निरुत्तर हो जाता हूं, फिर नींद नहीं आती।
सुखिया सब संसार है खावै और सोवै
दुखिया दास कबीर है जागै और रोवै     
कृष्ण बिहारी नूर का एक शे’र थोड़ा सुकून देता है, जो कहता है कि सत्य तो सीमित है पर झूठ ही असीम और अनंत है-
कुछ घटे या बढे तो सच न रहे
झूठ की कोई इंतिहा ही नहीं  
वीरेन्द्र जैन
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