बुधवार, जनवरी 01, 2014

व्यंग्य---- जीवेत शरदः शतम

व्यंग्य
जीवेत शरदः शतम

वीरेन्द्र जैन
       मेरे जन्मदिन पर रामभरोसे का शुभकामना सन्देश आया है। उस सन्देश में लिखा है- जीवेत शरदः शतम। संस्कृत के टीचर से अनुवाद कराने पर पता चला कि इसका अर्थ होता है कि आप सौ शरद ऋतुओं तक जियें। रामभरोसे चालाक है, गाली भी शुभकामना की तरह देता है। वह कहना चाहता तो कह सकता था कि आप सौ बसंत देखें, पर उसने ऐसा नहीं कहा। भाषा में शब्दों के चयन का बड़ा महत्व है। जैसे माला बनाने के लिए गेन्दा गुलाब के फूल ही चुने जाते हैं तथा सब्जी बनाने के लिए गोभी का फूल चुना जाता है। लड़कियों के बारे में जब भी बात की जाती है तो कहा जाता है कि उसने सोलह सावन या बसंत देखे हैं। उनके साथ शरद ऋतु को नहीं जोड़ा जाता, जब उनकी त्वचा खुश्क हो जाती है और चिपचिपाहट कम हो जाती है। सर्दी में वैसे भी लड़की कम से कम दिखाई देती है क्योंकि उसके शरीर का बड़ा भाग मोटे मोटे ऊनी कपड़ों से ढँका रहता है। पैरों में मोजे और हाथों में दस्ताने होते हैं। आइसक्रीम और चाट के ठेलों पर केवल उनकी आत्मा घूमती है जो अदृश्य होती है। झुटपुटा होते ही उन्हें निर्भया होने का डर सताने लगता है और वे अपने अपने घरों में घुस जाती हैं।
       रामभरोसे दिल से यही चाहता भी होगा कि मैं जीवन के सौ शरद देखूं, क्योंकि उसे मालूम है कि सर्दी के मारे मेरी केवल एड़ियां ही नहीं फँटतीं, अपितु पूरा शरीर काँपने लगता है। दाँत बजने लगते हैं और हड्डियां कड़कड़ाने लगती हैं। स्वेटर, टोपा और कोट पहन कर मैं ऊदबिलाव  बना फिरता हूं, तथा समझ में आता है कि पश्चिम के ठंडे देशों में दिगम्बर साधुओं और नागा बाबाओं की जगह सांताक्लाज क्यों होते हैं। सर्दियों में ठंड के मारे बिल्लियों का रोना और बुजुर्गों का मरना एक साथ होता है और हम दोनों का सम्बन्ध जोड़ कर शकुन अपशकुन मानने लगते हैं। रामभरोसे शुभकामनाओं के बदले कठिन परीक्षा ले रहा है। सौ बसंत जीना आसान होता है लेकिन सौ सर्दियां निकालना मुश्किल होता है- विशेष रूप से साठ की उम्र पार करने के बाद। हर सर्दी के बाद लगता है कि इस साल तो बच गये।  
       गर्मियों में तन और गरीबी ढँकना अपेक्षाकृत सरल होता है। कम कपड़ों में तन ढँक जाने पर यह जाहिर नहीं होता कि इसके पास कपड़े नहीं हैं, पर सर्दियों में पोल खुल जाती है। वर्षों पुराने बाबा आदम के ज़माने के कोट में हाथ डाले डाले आप कितने दिन तक अपनी औकात छुपा सकते हैं। गर्मियों में झोला झौआ बनियान पहिन कर भी यदि आप मुस्कान ओढ सकते हैं तो लोग यही कहेंगे कि बुद्धिजीवी भाईसाहब लूजर पहिने हुये हैं। पर अगर सर्दियों में ऐसा किया तो लोग तुरंत पूछ्ने लगेंगे कि क्या यह कोट इज्तिमा से खरीदा है। गर्मियों में एक रुपये के नींबू से चार गिलास नमकीन शिकंजी बना कर अच्छे मेजबान हो सकते हैं पर सर्दियों में चार काफी साठ रुपये से कम की नहीं पड़ती। दिन में जब कुनकुनी धूप विटामिन डी लुटा रही होती है तब आप दफ्तर में ठिठुर रहे होते हैं और जब शाम को ठंडी हवायें हड्डियां कँपाती हैं तो आपको सब्जी ब्रेड बगैरह खरीदने बाहर जाना पड़ता है और सोचना पड़ता है कि रिटायरमेंट के कितने दिन और बचे हैं?
       मैं रामभरोसे को अच्छी तरह समझता हूं, उसकी हर बात में पेंच होता है। मैं भी उसके जन्मदिन पर बदला लेने का सोच रहा हूं। उसे शुभकामनाएं दूंगा कि वह दो सौ सर्दियों तक जिये और उन वर्षों में सर्दियों के दिन भी दुगने हों। उत्तरप्रदेश के अधिकारियों का वह बयान भी साथ में नत्थी कर दूंगा जिसमें उन्होंने कहा है कि सर्दियों से कोई नहीं मरता।
वीरेन्द्र जैन
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