रविवार, जनवरी 05, 2014

व्यंग्य -- पड़ौसी प्रेम

व्यंग्य                         
                              पड़ौसी प्रेम
                                                                     वीरेन्द्र जैन


            जिनसे हमारे सबंध खराब होते हैं, वे मुझे पड़ोसी की तरह लगने लगते हैं क्योकि किसी पड़ोसी से हमारे सबंध कभी अच्छे नहीं रहे। इस मामले में हमारा हाल भारत सरकार जैसा है न उनके सबंध पड़ोसियों से अच्छे रहते है, और न हमारे। पाकिस्तान से तो हमारे खराब सम्बंधों का इतिहास उतना ही पुराना है कि जितना कि खुद पाकिस्तान। फिर हमें अपने शत्रुओं की संख्या में कुछ कमी नजर आयी तो हमने पाकिस्तान को दो टुकड़े होने में अपना पूरा आत्मीय समर्थन दिया जिससे हमारे एक ही जगह दो दुश्मन हो गये। पाकिस्तान हमारे सैनिकों की लाशें सिर काट कर भेजता है तो बंगलादेश भी हमारे सैनिकों केी लाशों को बांस पा टांग कर वापिस भेजता है। त्रिपुरा और असम, नागालैण्ड और मणिपुर सहित सभी उत्तरपूर्व  के आंतकवादी उसी तरह बंगलादेश में मेहमाननवाजी करते है, जैसे कि कश्मीर के आंतकवादी पाकिस्तान में। श्रीलंका के सैनिक हमारे प्रधानमंत्री को बट प्रहार से सलामी देते हैं और भूतपूर्व प्रधानमंत्री हो जाने पर उन्हें बम से उड़ा देते है। नेपाल के बहुत सारे लोग सुबह सुबह उठकर भगवान पशुपतिनाथ का नाम बाद  में लेते हैं, हमारे देश को गाली पहले देते है। मुझे गर्व है कि मैं भी सच्चा भारतवासी हूं, और मेरे पड़ोसी भी मुझे अपने देश का सच्चा प्रतिनिधि बनाये रखने में पूरा योगदान देते हैं।

            अपने देश की सरकार जैसा सुख मुझे भी अपने पड़ोसियों से प्राप्त है चाहे वे हमारे दायें वालें हो या बायें वाले उपर वाले हों या नीचे वाले। मै बड़ी शान से कह सकता हूं कि देश की नीतियों पर ठीक तरह से चलने वाले नागरिकों में मेरा वही स्थान है जो गाजर के हलुवे  में काजू का होता है। पड़ोसियों के दो ही तो कर्तव्य होते हैं- एक-सार्वजनिक सुविधाओं का अधिकतम हिस्सा अपने लिए हड़पना और दूसरा- ऐसा ही करने वाले अपने पड़ोसियों को न करने देना- और कर रहें हों तो उनसे लड़ना।

            मनुष्य को एक सामाजिक प्राणी माना जाता है जिसका अर्थ होता है कि कोई उसके पड़ोस में रहता है तथा वह किसी के पड़ोस  में रहता है। इस आस पास अलग- अलग रहने को ही सामाजिकता और प्रकारान्तर में पड़ोस कहते हैं। इन सामाजिक प्राणियों के सामाजिक सम्बध होते है जो आमतौर पर '' करेले और नीम चढ़े '' के होते है। एक तो बेचारा नीम पूरी बेल को अपने ऊपर चढ़ाये रहता है तथा फिर भी उसके मूल दुर्गण को बढ़ने में अपने ऊपर दोष भी सहता है।

            इतिहास बताता है कि पड़ोसियों के बीच पुरान समय में ही सम्बंध अच्छे नहीं रहते थे। यही कारण है कि ईसा मसीह को अपने भक्तों से कहना पड़ा कि अपने पड़ोसियों से प्रेम करो। अगर वे पहले ही ऐसा करते होते तो ईसा मसीह को ये उपदेश देने की जरूरत ही नहीं पड़ती।

            फिल्मों में भी पड़ोस के प्रेम के ज्यादा उदाहरण नहीं मिलते। देवदास, तेरे घर के सामने, पड़ोसन प्यार दिये जा आदि में भी पड़ोसी और पड़ोसिनों के प्रेम के उदाहरण जरूर मिलते हैं पर पड़ोसी पडोसी  के बीच तो दुश्मनी  ही चलती रहती  है। पड़ोसी के बीच ईर्षा चलती है, द्वेष चलता है, चुगलियां चलती है, पर प्रेम नहीं चलता।

            बहुमंजिले भवनों और नई कालोनियों में रहने वाले तो जन्मजात शत्रु ही होते है। उनके घरों के दरवाजे खुले कम और बन्द ज्यादा रहते हैं आमने सामने रहने वाले शर्मा जी को वर्मा जी की और वर्मा जी को शर्मा जी शक्ल कम और दरवाजे पर लटकी नेम प्लेट ज्यादा नजर आती है। पड़ोसियों के कारण ही दीवारों  में कान हुआ करते थे और अब तो दरवाजों में आंख पैदा हो गयी है। वर्मा जी दरवाजा खोलने से पहले देख लेते हैं कि शर्मा जी तो नहीं निकल रहे और यही काम शर्मा जी के दरवाजे की आंख से भी होता है।

            रहीम ने तो '' निन्दक नियरे राखिये '' कहकर पड़ोसी के चरित्र चिंतन में कोई कसर ही बाकी नहीं छोड़ी। घर छोड़ कर हिमालय की कन्दराओं में बसने की जरूरत  पड़ोसी के कारण ही पड़ती होगी क्योकि पडोस छोड़े बिना शन्ति कहॉ सम्भव है।
वीरेन्द्र जैन
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