सोमवार, मार्च 03, 2014

व्यंग्य - अन्ना की रतौन्धी

व्यंग्य
अन्ना की रतौन्धी
वीरेन्द्र जैन
       कहते हैं कि, कभी किसी को मुक्कमिल जहाँ नहीं मिलता, कभी ज़मीं तो कभी आसमां नहीं मिलता।      कुछ लोग जन्म से सूरदास होते हैं, पर उनके अन्दर की दृष्टि इतनी प्रखर हो जाती है कि वे आँखों वाले लोगों से ज्यादा देख लेते हैं। दृष्टिहीन बताये जाने वाले महाकवि सूरदास ने कुछ देख कर ही कहा होगा कि-
आज हरि नयन उनींदे आये ,बिनगुन माल, पयोधर मुद्रा, कंगन पीठ गड़ाये
किंतु कुछ लोग होते हैं जो आँख होते हुये भी आँखों पर महाभारत कथा की गान्धारी जैसी पट्टी बाँध लेते हैं या रामकथा के लक्षमण की तरह केवल चरणों से ऊपर ही नहीं देखते और वर्षों साथ रह कर भी अपनी माता तुल्य भाभी को भी नहीं पहचान सकते।
       अन्ना हजारे का हाल भी कुछ कुछ लक्षमण जैसा ही है, अपनी बेटी तुल्य ममता बनर्जी से भले ही कोलकता जाकर पैर छुआ आये हों पर वे ममता को पैरों से अलग देख ही नहीं पाते। और पैर तक तो लक्षमणजी सीमित थे, अन्ना तो हवाई चप्पल से ऊपर ही नहीं देख पाते। उन्होंने ममता की हवाई चप्पल देखी और उनके भौंपू बनने के लिए निकल पड़े। सुनो सुनो सुनो, हर आम और खास को इत्तिला की जाती है कि कहा सबने पर किया केवल ममता ने, और जो बंगाल में किया वह पूरे देश में करेंगी, सुनो सुनो सुनो।
       अन्ना को अपनी रतौन्धी में हरियाणा के उद्योगपति केडी सिंह नहीं दिखे जो झारखण्ड से राज्यसभा के लिए जीमएम के टिकिट पर चुने गये और बाद में तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गये थे। ईमानदार अन्ना को पता ही नहीं कि आयकर छापों के बाद देशहित के लिए बाइस करोड़ रुपये सरेंडर करने वाले के डी सिंह का यह उत्थान पूरी झारखण्डी परम्परागत ईमानदारी से हुआ था। पर अन्ना को तो केवल बाटा या लखानी की हवाई चप्पलें ही दिखती हैं। अन्ना को नहीं दिखता कि पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के दौरान इन्हीं केडी सिंह के पास से चुनाव आयोग ने हवाई अड्डे पर सत्तावन लाख रुपये नगद बरामद किये थे और तृणमूल कांग्रेस को नोटिस दिया था। अन्ना को यह भी नहीं पता होगा कि उनकी बेटी बहुत अच्छी पेंटर भी हैं और उनकी पेंटिंग पिछले दिनों एक करोड़ रुपये में बिकी थी जिसे खरीदा था बंगाल की उस चिटफंड कम्पनी के संचालक ने जिस पर कई हजार करोड़ रुपयों का घोटाला करके लाखों लोगों कंगाल बना दिया है। चप्पलदर्शी अन्ना को त्रिपुरा के मुख्यमंत्री की सादगी दिखाई ही नहीं देती।
       अन्ना को यह भी नहीं दिखता कि गत 21 दिसम्बर 2013 को ममता द्वारा शासित बंगाल के हावड़ा जिले में जिस टक्सी ड्राइवर की बेटी के साथ बलात्कार हुआ था उसकी रिपोर्ट करने की कोशिश में दुबारा बलात्कार हुआ और बाद में उसे ज़िन्दा जला कर मार डाला गया पर ममता की पुलिस ने तब तक उस पर ध्यान नहीं दिया जब तक कि उस पर एक आन्दोलन खड़ा नहीं हो गया। अन्ना को नहीं दिखता कि खुद ममता ने उस आन्दोलन को राजनीति से प्रेरित और उनकी सरकार को बदनाम करने की साजिश वाला बतलाया था।
       शक तो मुझे पहले भी हुआ था जब रामलीला मैदान के अनशन ड्रामे के दौरान मुम्बई महानगर पालिका के कमिश्नर रहे अपनी ईमानदारी के लिए मुख्यमंत्रियों से टकराने वाले खैरनार ने कहा था कि अन्ना अनशन के दौरान जो पानी पीते हैं वह शुद्ध पानी ही नहीं होता अपितु उसमें बहुत कुछ शक्तिवर्धक मिला होता है। पर अब समझ में आया कि उनका नहीं उनकी दृष्टि का दोष था, जिसे वे पानी समझ कर पी रहे थे। शायद इसी दृष्टि दोष के कारण उनको पता नहीं चला होगा कि अनशन के ड्रामे के दौरान जो भरपेट पूड़ी सब्जियां खिलायी जा रही थीं उनका इंतज़ाम संघ के लोग कर रहे थे। उन दिनों जब ‘मैं अन्ना हूं’ नाम की टोपियां पहनायी जा रही थीं तब एक कार्टून प्रकाशित हुआ था जिसमें ‘मैं अन्ना हूं’ कि टोपी को नकारते हुये उसके सामने खड़ा हुआ व्यक्ति प्रतिउत्तर में कह रहा है- और मैं अन्धा हूं। अब ऐसी कोई विडम्बना नहीं है, अन्ना और अन्धा एक हो गये हैं।
       अब सुना है कि वे उन सारे स्थानों पर ममता की पार्टी के लोगों को खड़ा करवाने जा रहे हैं जहाँ जहाँ से आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार भाजपा को टक्कर देने जा रहे होंगे वे वहाँ वहाँ जाकर उनका प्रचार करेंगे, और अरविन्द की काट की तरह पेश किये जायेंगे।
       वो तो अच्छा हुआ कि महोदय ने समय रहते सेना की ड्राइवरी की नौकरी छोड़ दी बरना पता नहीं अपनी दृष्टि दोष में सेना के वाहनों को कहाँ गिराते! जनरल वीके सिंह को भी लगता है कि समय रहते उनकी दृष्टि क्षमता के बारे में पता चल गया इसलिए वे उनको छोड़कर भाजपा में सम्मलित हो गये जहाँ सारे गिद्ध दृष्टि, वको ध्यानम वाले लोग हैं।
       काश वे ममता की जगह जयललिता के पास पैर छुलाने गये होते तो वो उनको चेन्नई के प्रसिद्ध शंकर नेत्र चिकित्सालय भेज कर इलाज तो कर देतीं। सम्भावनाएं अभी बाकी हैं।     
वीरेन्द्र जैन
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