शनिवार, दिसंबर 20, 2014

व्यंग्य कथा - लौट के हिन्दू घर को आये



व्यंग्य कथा

लौट के हिन्दू घर को आये



वीरेन्द्र जैन
       ये हिन्दुओं की घर वापिसी का युग है, पिछले आठसौ साल के बाद कोई हिन्दू राज आया है। वे लोग भी घर लौट रहे हैं जिन्हें पता ही नहीं है कि उनका घर कहाँ है और वे किस घर से कब और कहाँ गये थे। पर लौट रहे हैं। ऐसे ही एक घर लौटे हिन्दू ने एक विहिप वाले ठाकुरसाब की कोठी का दरवाजा खटखटा दिया।
कौन है बे? कोठी वाले हिन्दू वीर की आवाज़ गरजी।
मैं हूं शेख मुहम्मद उसने उत्तर दिया
क्या बात है?, तुम्हें क्या घर वापिसी करना है? उन्होंने पूछा
नहीं, वह तो मैं आपके साथ ही हवन करके कर चुका हूं
तो क्या पैसे नहीं मिले?
नहीं नहीं वैसी कोई बात नहीं
तो क्या बात है? उन्होंने खिड़की से मुँह निकाल कर पूछा
मैं पूछ रहा था कि अपना सामान कहाँ रख दूं वह बोला
कैसा सामान?
यही घरेलू सामान
घरेलू सामान! क्या मतलब है तेरा?
अब पुराना घर छोड़ आया हूं तो सामान साथ ले कर आ गया हूं, उसे कैसे छोड़ आता?
घर छोड़ने की क्या जरूरत थी?
बिना घर छोड़े घर वापिसी कैसे होती? अब उस पुराने घर में कैसे रह सकता हूं! उसने सिर का बोझ नीचे पटकते हुए कहा।
अरे नहीं नहीं यह घर वापिसी वैसी नहीं है, इसका यह मतलब नहीं कि तुम अपना झोपड़ा छोड़ कर आ जाओ। वैसे जहाँ तुम रहते थे, वहाँ क्या तकलीफ थी?
तकलीफ तो कोई नहीं थी पर अब जब आपकी इमदाद से ठाकुर बन कर घर वापिस आ गया हूं तो उन मुसलमानों के मुहल्ले में कैसे रह सकता हूं जहाँ थोड़ी सी दूर पर ही नीची जातियों के मकान भी हैं। क़्या यह एक ठाकुर की आन को ठेस पहुँचाने वाली बात नहीं होती!  
घर वापिसी करने का यह मतलब थोड़ी ही है कि तुम हमारे घर में घुस आओ!  
घर में वापिस आने के बाद और कहाँ जायें अब? उसने वहीं तीतर लड़ाने की मुद्रा में उकड़ूं बैठते हुए कहा। पैर पसार कर उसकी बीबी और बच्चे भी वहीं बैठ गये। उन्होंने डिब्बे से रोटी निकाली और खाने लगे।
हिन्दू वीर परेशान हो गये। वहाँ से गुजर रहे एक चैनल के स्ट्रिंगर दृश्य देख कर फिल्माने लगे। यह तो मुसीबत गले पड़ गयी। उन्होंने कोठी से बाहर बहुत सारी ज़मीन पर अतिक्रमण करके लान बना रखा था उस पर नये बने ठाकुर हिन्दू के बच्चे खेलने लगे थे। उन्होंने पुलिस को फोन किया कि कुछ लोग उनके घर में जबरदस्ती घुस आये  हैं। पुलिस दौड़ी दौड़ी आयी क्योंकि धर्मांतरण के मामले में उसकी काफी किरकिरी पहले ही हो चुकी थी। उसने मामले को समझा और शेख मुहम्मद से पूछा तुम यहाँ कैसे अपना डेरा डंडा लेकर आ गये?
हमारी घर वापिसी हुयी है हुजूर, और हम अपने घर वापिस लौट कर आ गये हैं। वह बोला
क्या पहले तुम्हारा यही घर था?
यही होगा, साब
होगा से क्या मतलब कोई प्रमाण है तुम्हारे पास?
नहीं हुजूर पर जब एक घर से दूसरे घर गये हैं तो कोई घर तो रहा ही होगा। शायद यही हो। मुझे तो याद नहीं पर ठाकुरसाब ने हमारे पिछले घर की याद रखी है तो इनके आसपास ही होगा। इसलिए हम यहाँ आ गये
क्या तुम्हारे पास कोई कागज हैं जो यहाँ आ गये, जबकि इनके पास हैं
ठाकुरसाब तुरंत अन्दर गये अपने कागज़ ले आये और दिखाने लगे। पुलिस के लोग शेख मुहम्मद से बोले देख लो
अब हम क्या देखें साब आप ही कागज से नाप कर इनकी जगह तय कर दें, हम उसके बाद अपना डेरा बना लेंगे।
ठाकुरसाब कहने लगे अब यह काम पुलिस के अफसर थोड़े ही करेंगे। उन्हें डर था कि अभी उनके अतिक्रमण की पोल खुल जायेगी। पर पुलिस वालों को उनकी बात अपमानजनक लगी, बोले अगर विवाद सुलझता है तो हम नाप जोख भी कर सकते हैं
शेख मुहम्मद बोला साब जब ठाकुर बन कर लौट आये हैं तो रहना तो ठाकुरवाड़ी में ही होगा। इनकी जमीन के पास से हम अपना डेरा शुरू कर देंगे। ठाकुरसाब ने अपना माथा पीट लिया।
वीरेन्द्र जैन                                                                          
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